बदहाली की मार झेल रहा 18वीं सदी का ऐतिहासिक पक्की तालाब, 15 साल पहले जीर्णोद्धार की राशि पर लीपापोती
नालंदा में 18वीं सदी का ऐतिहासिक पक्की तालाब बदहाली की मार झेल रहा है। 15 साल पहले इसके जीर्णोद्धार के लिए आवंटित राशि का सही उपयोग नहीं हुआ। रखरखाव क ...और पढ़ें
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18वीं सदी का ऐतिहासिक पक्की तालाब। फोटो जागरण
मुरलीधर केसरी, इस्लामपुर। नगर के पक्की तालाब पर स्थित अठारहवीं शताब्दी का ऐतिहासिक तालाब उपेक्षा और बदहाली का दंश झेल रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि तालाब की वर्तमान स्थिति उसकी पुरानी गरिमा के बिल्कुल विपरीत है।
इस तालाब का निर्माण तत्कालीन जमींदार सृजन चौधरी ने किया था, ताकि क्षेत्र के लोग तैराकी में निपुण बन सकें और स्थानीय युवाओं को पहचान मिले। इसके पीछे यह सोच भी थी कि गरीब और मजदूर तबके के लोगों को रोजगार मिल सके।
वास्तुकला का अद्भुत नमूना
पक्की तालाब की संरचना अपने आप में अद्वितीय है। चारों दिशाओं में चार विशाल द्वार हैं। वर्षा से बचने के लिए परिसर में छह बड़े ताखे बनाए गए और दक्षिण में शिवमंदिर स्थित है। मंदिर से सटा एक विशेष गेट है, जिससे स्नान के बाद श्रद्धालु सीधे पूजा करने जा सकें।
तालाब को मुहाने नदी से पईन के माध्यम से जोड़ा गया था। नदी में पानी आने पर तालाब में भी पानी स्वतः भर जाता था। नदी सूखने पर तालाब का अतिरिक्त पानी वापस नदी में चला जाता था। उत्तर-पूर्व दिशा में फुलवारी के पटवन के लिए तालाब का पानी सिंचाई का स्रोत भी था।
जीर्णोद्धार की राशि पर लीपापोती
करीब 15 वर्ष पहले तत्कालीन विधायक राजीव रंजन ने जनता की मांग पर इसके जीर्णोद्धार के लिए लगभग 15 लाख रुपये स्वीकृत किए थे। लेकिन, स्थानीय लोगों का आरोप है कि संवेदक ने केवल औपचारिकता निभाई और संतोषजनक कार्य नहीं किया। शिकायतों के बाद जांच के आदेश दिए गए, किंतु कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी।
अब वर्तमान विधायक से उम्मीदें
तालाब आज भी जीर्ण-शीर्ण हालत में है और पुनर्विकास की प्रतीक्षा कर रहा है। स्थानीय लोगों को वर्तमान विधायक रुहेल रंजन से काफी उम्मीदें हैं कि वे इस ऐतिहासिक धरोहर को उसकी मूल पहचान दिलाने के लिए ठोस कदम उठाएंगे। इस्लामपुर का पक्की तालाब कभी गौरव का प्रतीक था, अब संवेदनशील हस्तक्षेप की प्रतीक्षा में खड़ा है।

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