मां आशापुरी मंदिर : यहां महिलाओं के प्रवेश पर रहती है रोक
शहर से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित घोसरावां गांव में मां आशापुरी का मंदिर है।
नालंदा। शहर से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित घोसरावां गांव में मां आशापुरी का मंदिर है। इस मंदिर की महिमा जिले में ही नहीं, बल्कि आस-पास के जिले से दूर-दूर तक फैली हुई है। सबसे बड़ी बात यह है कि यहां पर नवरात्र में दस दिनों तक तांत्रिक पूजा होती है। इस दौरान नवरात्र में महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर पूरी तरह से रोक रहती है। यह परंपरा आदि काल से चली आ रही है। नवरात्र के समय कोई भी महिला मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती है। इसके लिए यहां के पुजारी व गांव वाले पूरी तरह से सतर्क रहते हैं। कहा जाता है कि नवरात्र के समय तांत्रिक यहां पर दस दिन तक सिद्धि करते हैं। इसलिए किसी महिला को आने की इजाजत नहीं होती।
साढ़े तीन सौ वर्ष पहले माता हुईं थी प्रकट
ग्रामीणों का कहना है कि तकरीबन साढ़े तीन सौ वर्ष पहले यहां पर माता की प्रतिमा अचानक प्रकट हुई थी। जब इस बात की जानकारी यहां के राजा घोष को मिली तो उन्होंने इसी स्थान पर माता का मंदिर का निर्माण कराया। राजा के द्वारा कराया गया मंदिर निर्माण के कारण इसका नाम घोसरावां गांव रखा। मंदिर के निर्माण के बाद लोगों ने पूजा पाठ करना प्रारंभ किया। राजा घोष तीन भाई थे। जिसके नाम पर घोसरावां, दूसरा बड़गांव व तेतरावां नाम पड़ा।
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क्या है महत्ता
मां आशापुरी मंदिर में पूजा अर्चना करने वाले श्रद्धालुओं की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इसलिए इसका नाम आशा थान रखा गया। आज भी इस मंदिर की ऐसी मान्यता रही है कि जो भी लोग यहां पर सच्चे मन से मां की पूजा-अर्चना करते हैं। उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। ग्रामीण का कहना है कि सबसे पहले यहां नालंदा विवि के छात्र बौद्ध धर्म के लोग यहां पर आकर पढ़ाई करते थे, और मां के दरबार में पूजा-अर्चना कर आर्शीवाद लेते थे। इसके बाद उनकी सारी मुरादें पूरी हो जाती थी। तभी से इसका नाम आशापुरी पड़ गया।
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क्या है मंदिर का पौराणिक महत्व
आए दिन यहां पर पूजा के लिए किसी पर पाबंदी नहीं है। पर नवरात्र में यहां पर महिलाओं के लिए दस दिन तक प्रवेश वर्जित रहता है। ग्रामीणों की मानें तो दस दिन तक होने वाली पूजा का विशेष महत्व माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि नवरात्र के दौरान तांत्रिक लोग आकर यहां पर सिद्धि करते हैं। और उनका कहना है कि महिलाओं के प्रवेश होने पर उनका ध्यान भंग हो जाता है। इसलिए महिलाओं के प्रवेश पर पूरी तरह से रोक रहता है। यह भी कहा जाता है कि जो महिलाएं जबरदस्ती मंदिर में प्रवेश करना चाहतीं है तो उनके साथ अप्रिय घटना हो जाती है। इस कारण भी लोग सहमे रहते हैं। यह परंपरा आदि काल से ही चली आ रही है।
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कहते हैं पुजारी
मंदिर के पुजारी पुरेन्द्र उपाध्याय कहते हैं कि मां आशापुरी के आर्शीवाद से घोसरावां, पावापुरी व आस-पास के सभी गांवों के लोगों के बीच कोई भी संकट आने से पहले ही टल जाता है। माता की महिमा की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम नहीं है। जब भी गांव व आसपास के इलाके में किसी तरह का संकट आता है, तो माता के नाम मात्र से ही उसका संकट टल जाता है। मंदिर में प्रवेश करते ही ऐसा अनुभव होता है कि माता का साक्षात दर्शन हो गया। उनके दर्शन मात्र से ही मन और आत्मा तृप्त हो जाती है।
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