Bihar Election 2025: महागठबंधन बना अखाड़ा, इन सीटों पर कांग्रेस व माले में सीधी जंग
बिहारशरीफ विधानसभा सीट पर कांग्रेस और माले द्वारा अलग-अलग उम्मीदवार उतारने से महागठबंधन में दरार आ गई है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार, इससे एनडीए को फायदा हो सकता है, क्योंकि महागठबंधन के वोट बंट सकते हैं। कांग्रेस अल्पसंख्यक वोटों पर और माले ग्रामीण व मजदूर वर्ग पर ध्यान दे रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बिखराव से एनडीए को फायदा होगा और बिहारशरीफ में चुनावी जंग त्रिकोणीय होने की ओर है।

राहुल गांधी और दीपांकर भट्टाचार्य
जन्मेंजय, नालंदा। महागठबंधन में पड़ी गांठ त्रिकोणीय मुकाबले की ओर इशारा करने लगी है। बिहारशरीफ विधानसभा सीट पर कांग्रेस और माले दोनों ने अपने-अपने प्रत्याशी मैदान में उतारकर साफ कर दिया है कि दलों के लिए गठबंधन से बड़ा उनका व्यक्तिगत, अस्तित्व और संगठनात्मक मजबूती है।
कांग्रेस ने जहां उमेद खान को अपना उम्मीदवार घोषित किया है, वहीं माले की ओर से शिवकुमार यादव ने चुनावी ताल ठोक दी है। इस कदम से गठबंधन के भीतर मतभेद की तस्वीर और गहरी हो गई है।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो महागठबंधन के भीतर यह दरार एनडीए के लिए अवसर साबित हो सकती है। एनडीए खेमे में पहले से ही सशक्त तैयारी मानी जा रही है और यदि महागठबंधन की आंतरिक खींचतान बनी रही तो विपक्षी मतों के बंटवारे का सीधा लाभ एनडीए प्रत्याशी को मिलना तय है।
गौरतलब है कि बिहारशरीफ विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम, यादव और दलित मतदाता अब तक महागठबंधन की ताकत माने जाते रहे हैं। पिछली बार भी इन समुदायों के एकजुट वोटों ने महागठबंधन के प्रत्याशी को मजबूती दी थी।
पिछले चुनाव 2020 में राजद प्रत्याशी सुनील कुमार एनडीए प्रत्याशी डॉ. सुनील कुमार से महज 15 हजार वोट से ही पीछे रहे थे। ऐसे में इस बार एनडीए तथा महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही थी, लेकिन कांग्रेस और माले के अलग-अलग प्रत्याशी होने के कारण समीकरण बदलता नजर आ रहा है।
कांग्रेस अपने पारंपरिक अल्पसंख्यक मतदाताओं पर भरोसा जता रही है, वहीं माले ग्रामीण इलाकों और मजदूर वर्ग में अपनी पकड़ को मजबूत मानती है। दोनों दल एक-दूसरे के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में जुटे हैं।
चुनावी प्रचार भी अब रोचक मोड़ लेता दिख रहा है। कांग्रेस के समर्थक उमेद खान को विकास और रोजगार के मुद्दों पर आगे कर रहे हैं, जबकि माले प्रत्याशी शिवकुमार यादव किसान और श्रमिक अधिकारों की लड़ाई को केंद्र में रखकर प्रचार कर रहे हैं।
मालूम हो उमेद खान गया के निवासी हैं। बिहारशरीफ की राजनीति में उनकी खास पकड़ नहीं है। आम लोगों के बीच उनकी पैठ नहीं रहने के कारण कांग्रेस को इस बार क्षति हो सकती है। वहीं माले प्रत्याशी शिवकुमार यादव श्रमिकों के बीच के नेता है, गरीब तबकों के बीच उनकी गहरी पकड़ है।
हालांकि बीड़ी मजदूरों की संख्या में कमी के कारण माले की स्थिति भी अब पहले जैसी नहीं है। जिसका सीधा फायदा एनडीए प्रत्याशी डा. सुनील कुमार को मिलने की संभावना है। विशेषज्ञों की मानें तो यदि दोनों दल अपने फैसले पर अड़े रहें, तो महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध पड़ना तय है।
लोगों का मानना है कि एकजुट होकर लड़ने से ही महागठबंधन एनडीए को इस बार कड़ी चुनौती दी जा सकती थी लेकिन बिखराव से विरोधियों का पलड़ा भारी होगा यह तय है। कुल मिलाकर, बिहारशरीफ की चुनावी जंग इस बार त्रिकोणीय होने की ओर बढ़ रही है। कांग्रेस और माले की यह अंदरूनी खींचतान महागठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़े कर रही है।
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