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गड़े मुर्दे उखाड़ रहा भूमि सर्वेक्षण, लोगों को सता रहा जमीन का मालिकाना छीनने का भय

बिहारशरीफ। अरसे से जोत-बो रहे अपनी ही जमीन को बचाने की जद्दोजहद। इसको लेकर किसी की रातों की नींद उड़ी है तो किसी के दिन का चैन। जमीन का हर मालिक परेशान।

By JagranEdited By: Published: Tue, 19 Mar 2019 05:04 PM (IST)Updated: Tue, 19 Mar 2019 05:04 PM (IST)
गड़े मुर्दे उखाड़ रहा भूमि सर्वेक्षण, लोगों को सता रहा जमीन का मालिकाना छीनने का भय
गड़े मुर्दे उखाड़ रहा भूमि सर्वेक्षण, लोगों को सता रहा जमीन का मालिकाना छीनने का भय

बिहारशरीफ। अरसे से जोत-बो रहे अपनी ही जमीन को बचाने की जद्दोजहद। इसको लेकर किसी की रातों की नींद उड़ी है तो किसी के दिन का चैन। जमीन का हर मालिक परेशान। चेहरे पर शिकन लिए कोई रिकॉर्ड रूम का चक्कर लगा रहा है तो कोई सीओ कार्यालय में आरजू-मिन्नत करता दिख रहा। 100 साल से भी अधिक समय बाद मिल्कियत के कागजात की मांग किए जाने से लोगों के होश उड़े हैं। 1914 के बाद न जाने कितनी बार जमीन का हस्तांतरण हुआ है। इसका न कोई है और न कागजात न चिट्ठा। वहीं अधिकांश जमीन भी तब से लेकर अब तक दर्जनों भागों में खंडित हो चुकी हैं। भू-सर्वेक्षण की यह प्रक्रिया बड़े, मंझोले और छोटे सभी किसानों के मानसिक तनाव का कारण बन गई है। किसानों को अपनी ही जमीन के हाथ से खिसकने की चिता खाए जा रही है।

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भू-स्वामियों को जितना भय, उतनी ऐंठी जा रही रकम :

सर्वेक्षण के दौरान गड़े मुर्दे उखाड़कर भू-राजस्व कर्मचारी जेब भरने में लगे हैं। भू-स्वामियों को जितना बड़ा डर, उतनी रकम ऐंठी जा रही है। इस खेल में अमीन, कर्मचारी से लेकर बड़े अधिकारी तक शामिल हैं। मामले में अमीन राजाराम जैसे अनगिनत सरकारी कर्मचारी संलग्न हैं। सच कहा जाए तो भू-सर्वेक्षण भू-राजस्व कर्मचारियों की कमाई का जरिया बन चुका है। जानिए कौन है राजाराम, क्या चल रहा खेल : याद दिला दें कि बीते छह माह पहले भू-सर्वेक्षण के नाम पर किसानों का दोहन कर रकम ऐंठने के मामले में राजस्व कर्मी राजाराम 50 हजार रुपए लिए रंगे हाथ पकड़ा गया था। राजगीर स्थित उसके आवास पर भी निगरानी की टीम ने छापेमारी की थी। जहां से कुछ रकम और ढेर सारे कागजात जब्त किए गए थे। कार्रवाई से लगा था कि दोहन का यह खेल रूक जाएगा परंतु यह और तेज हो गया। इन दिनों हर अंचल में भू-सर्वेक्षण में लगाए गए अमीनों के बकायदा ऑफिस खुल गए हैं। ये लोग सर्वे रिपोर्ट में जमीन के टुकड़ों के मालिकाना हक में पहले गलत नाम चढ़ा देते हैं, फिर उसे सुधारने के नाम पर वसूली कर रहे हैं।

जिले के कई प्रखंडों में चल रहा भू-सर्वेक्षण का कार्य : इन दिनों बिद प्रखंड के तजनीपुर, बिद आदि गांवों में भू-सर्वेक्षण का कार्य चल रहा है। इसके अलावा राजगीर, कतरीसराय, रहुई, नूरसराय में भी सर्वे हो रहा है जहां भू-स्वामियों के बीच भय की स्थिति बनी है। भू-सर्वेक्षण कार्य में सूबे भर में सैकड़ों की संख्या में अमीन लगाए गए हैं।

आसान नहीं है भू-सर्वेक्षण, ब्रिटिश हुकूमत को लग गए थे सौ साल : आजादी के पहले 1812 ई. में ब्रिटिश हुकूमत ने भू-सर्वेक्षण का काम शुरू किया था जिसे पूरी तत्परता के साथ 1914 में पूरा किया गया। इस कार्य में अंग्रेज सरकार को सौ वर्षों से अधिक का समय लग गया था। यह काम आसान नहीं था लेकिन अंग्रेजों की तानाशाही के आगे किसी की एक नहीं चली और जमीन का मालिकाना हक जैसे-तैसे तय कर दिया गया। आजादी के बाद सर्वेक्षण की पेचीदगी तथा लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ने की स्थिति को देखकर किसी भी सरकार ने भू-सर्वेक्षण की हिम्मत नहीं जुटाई। नीतीश सरकार की हिम्मत की दाद देनी होगी कि हर विरोधाभास के बावजूद उन्होंने इसे जमीन पर उतारा।

भू-सर्वेक्षण रिपोर्ट में जमीन की स्थिति से लेकर मालिकाना हक का होगा वर्णन

भू-सर्वेक्षण में भूस्वामियों की निजी जमीन की स्थिति, क्षेत्रफल और पूरी चौहद्दी लिखी जाएगी। फिलहाल यह कार्य पटना, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, वैशाली, शिवहर, पश्चिमी चंपारण, गया, जहानाबाद, औरंगाबाद, अरवल, कैमूर, रोहतास, गोपालगंज, समस्तीपुर, दरभंगा, भोजपुर, बक्सर, मधुबनी, नवादा, नालंदा तथा बांका में किया जा रहा है। इन जिले में अधिकांश जगह भू-सर्वेक्षण का कार्य अधूरा पड़ा है।

जमीन दलालों की पौ बारह, फिर भी राजनीतिक मुद्दा न बन सका :

इस भू-सर्वेक्षण ने जमीन से जुड़े कई कच्चे-चिट्ठे खोल दिए है। इस कार्य में जमीन दलालों की मुस्तैदी देखते बन रही है। वैसे भू-स्वामी जिसके पूर्वजों के नाम खाते पर अंकित नहीं हैं उनपर कहर बनकर जमीन दलाल टूट पड़ रहे हैं। बावजूद इसके यह न तो राजनीतिक मुद्दा बन सका और न ही अधिकारी इस दिशा में कुछ करना चाहते हैं।

डीसीएलआर ने कहा-नहीं हैं रिटर्न जमाबंदी के कागजात :

खुद सरकार के पास भी अधिकांश जमीनों के कागजात नहीं है। तहरीज (पहला पन्ना) से लेकर खाते व प्लॉट के पन्ने भी खतियान से गायब हैं। जमींदारी जाने के बाद अधिकांश जमींदारों ने वर्ष 1952 से 55 के बीच रिटर्न जमाबंदी फाइल की थी। उस रिटर्न जमाबंदी के बारे में भू-राजस्व विभाग से जुड़ा कोई भी अधिकारी बताने को तैयार नहीं। राइट-टू इन्फॉर्मेशन से जब डीएसएलआर से इसकी मांग की गई तो उन्होंने रिटर्न जमाबंदी के कागजात नहीं होने का जवाब दिया। आखिर ऐसे कागजात कहां गायब हो गए? यह बड़ा प्रश्न है। इसका फायदा उठा जमीन दलाल डुप्लीकेट रिटर्न जमाबंदी के आधार पर जमीन को धड़ल्ले से बेच रहे हैं।

आजादी के पहले का सर्वे है जमीन का आधार : सर्वे के बाद खतियान मुद्रण का अधिकार सीओ को दिया गया है। समस्याओं के निवारण के लिए आवेदन भी सीओ के पास देना होगा। आजादी के पहले कैडेस्ट्रल सर्वे तथा रिविजनल सर्वे हो चुके हैं। वही सर्वे आज तक जमीन का आधार है।

गैरमजरूआ मालिक जमीन को सरकारी जमीन घोषित करना न्यायसंगत नहीं : रजिस्टर टू सरकार का अद्यतन भू-दस्तावेज है। अंग्रेजों के जमाने में भूमि के मालिक जमींदार हुआ करते थे। वैसी जमीन को गरमजरूआ मालिक जमीन कहा जाता है। हैरत की बात यह है कि जिन जमींदारों ने अपनी जमीन को रजिस्टर टू में नहीं चढ़वाया, उन जमींदारों की जमीन आज सरकारी जमीन मान ली गई है जिसकी खरीद-फरोख्त पर रोक है। इस तरह की जमीन पर रह रहे लोगों का कहना है कि यह जल्दीबाजी में उठाया गया कदम है। शताब्दी पुराने सर्वे खतियान में जिस गैरमजरूआ मालिक जमीन की प्रकृति में मकान लिखा है यदि उस जमीन पर सौ वर्ष पहले मकान था तो उस जमीन पर सरकार का हक कैसा? एक ओर अधिनियम में यह बताया गया है कि यदि जमीन का 20 वर्षों तक बिना किसी अवरोध के प्रयोग किया जाता है तो उक्त जमीन का अधिकार जमीन पर रहने वाले का होता है जिसे ऐडवर्स पजेशन कहा जाता है।


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