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    बिहार में दफन है कश्‍मीर की याद: J&K के अंतिम शासक युसूफ शाह और हब्बा खातून ने इस्लामपुर में ली थी अंतिम सांस

    By janmjay kumarEdited By: Deepti Mishra
    Updated: Sun, 30 Apr 2023 10:15 PM (IST)

    शासक युसूफ शाह का मकबरा इस बात का प्रमाण है कि कश्मीर के बाद वे इस्लामपुर आए थे। वहीं उनकी पत्नी हब्बा खातून भी अंतिम समय में बिहार आईं थी और उन्होंने अंतिम भी सांस इस्लामपुर में ही ली थी।

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    कश्मीर के अंतिम शासक युसूफ शाह ने इस्लामपुर में ली थी अंतिम सांस।

    संवाद सूत्र, खुदागंज : अगर आप घूमने, दुनिया देखने और इतिहास को जानने व समझने की चाहत रखते हैं तो बिहार आइए। बिहार के नालंदा जिले का इस्लामपुर अपने आप में कई कहानियां संजोए हुए है। बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि आजाद कश्मीर के अंतिम शासक युसूफ शाह अपने आखिरी दिनों में इस्लामपुर आए और यहीं के होकर रह गए। इस्लामपुर में आज भी कश्मीरी चक है, जहां 400 साल पहले का इतिहास दफन है।

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    शासक युसूफ शाह का मकबरा इस बात का प्रमाण है कि कश्मीर के बाद वे इस्लामपुर आए थे। वहीं उनकी पत्नी हब्बा खातून भी अंतिम समय में बिहार आईं थी और उन्होंने अंतिम सांस इस्लामपुर में ही ली थी। युसुफ शाह चक के मकबरे के पास हब्बा खातून का भी मकबरा है।

    अकबर ने युसूफ शाह को बनाया था बंदी

    इसी इस्लामपुर के पास कश्मीरी चक है। कश्मीरी चक का इतिहास भारत के शासक अकबर के जमाने से जुड़ा है। मुगल शासक अकबर पूरे भारत के साथ आजाद कश्मीर पर भी अपनी सत्ता काबिज करना चाहते थे। साल 1586 में अकबर ने अपने एक लाख सैनिकों के साथ कश्मीर पर हमला करने की तैयारी शुरू कर दी। उस वक्त कश्मीर के शासक युसूफ शाह चक को इस बात की भनक लग गई।

    युसुफ शाह चक काफी पढ़े-लिखे और ज्ञानी शासक थे। ऐसे में जब उन्हें अकबर द्वारा हमले की जानकारी मिली तो वे खुद अकबर से मिलने उनकी राजधानी आगरा पहुंच गए, वे भी बिना किसी सैन्य तैयारी के। आगरा में अकबर से मुलाकात के दौरान ही युसुफ शाह चक को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें बंगाल प्रांत के सेनापति मान सिंह को सौंप दिया गया।

    बाद में मान सिंह ने अकबर से उनकी रिहाई की सिफारिश की। अकबर ने सिफारिश मानकर युसुफ शाह चक को रिहा तो कर दिया, लेकिन शर्त यह रखी कि वह दोबारा कश्मीर नहीं जाएंगे। इसके बाद उन्होंने नालंदा स्थित इस्लामपुर की ओर रुख किया। यहीं कश्मीरी चक नाम से एक नगर बसाया।

    साल 1977 में आए थे शेख अब्दुल्ला

    नालंदा के इस्लामपुर थाने से बेशवक का रास्ता शेख अब्दुल्ला रोड से होकर गुजरता है। जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला 19 जनवरी 1977 को राज्य की कल्चरल एकेडमी की एक टीम के साथ बेशवक आए थे। कुछ माह पहले कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे और शेख अब्दुल्लाह के पोते उमर अब्दुल्ला ने भी ट्विटर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बेशवक में कश्मीर के इतिहास को संरक्षित करने की अपील की थी।