संकट में जरासंध अखाड़ा का अस्तित्व
नालंदा । मकर संक्रांति और राजगीर महोत्सव के मौके पर हर साल राजगीर में कुश्ती का आयोजन
नालंदा । मकर संक्रांति और राजगीर महोत्सव के मौके पर हर साल राजगीर में कुश्ती का आयोजन किया जाता है। इसमें कई राज्यों के पहलवान अपना दांव लगाने के लिए आते हैं। राजगीर में कुश्ती का इतिहास बहुत पुराना है। द्वापर काल से यहां इसका इतिहास मिलता है। एक समय ऐसा था जब मगध सम्राट जरासंध खुद दांव आजमाते थे। उनका अखाड़ा आज भी इसका गवाह है। इस अखाड़े को उन दिनों दूध से पटाया जाता था। इसकी मिट्टी आज भी भुरभुरी है। यह देश हीं नहीं बल्कि दुनिया के दुर्लभ अखाड़ों में एक है। इसी अखाड़े में मगध सम्राट समेत एक से बढ़कर एक अनेक योद्धाओं ने दांव लगाया है। द्वापर काल में महाभारत की लड़ाई शुरू होने से पहले इसी अखाड़े में मगध सम्राट जरासंध और कुंती पुत्र भीम के बीच 28 दिनों तक मल युद्ध हुआ था। यह मल युद्ध भगवान श्रीकृष्ण की मौजूदगी में हुई थी। इसकी चर्चा धर्म ग्रंथों में भी मिलती है। प्रागैतिहासिक कालीन इस अखाड़े का अस्तित्व आज खतरे में है। इस अखाड़े के रख-रखाव का जिम्मा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को है। लेकिन इस दुर्लभ अखाड़े की पुरातत्व विभाग घोर उपेक्षा कर रहा है। इस गौरवशाली अखाड़े की पहचान महज एक टीले के रूप में सिमट कर रह गई है। इसे देखने के लिए देश और दुनियां के सैलानी के अलावे मुख्यमंत्री, शैक्षणिक भ्रमण पर आए स्कूली बच्चे बड़ी संख्या में आते हैं। इसकी गौरव गाथा जानकर सैलानी बहुत खुश होते हैं। द्वापर काल से रूबरू होते हैं। लेकिन वे दूसरे ही पल यह देखकर निराश हो जाते हैं कि द्वापर कालीन इस धरोहर को सहेजने के लिए राज्य और केन्द्र सरकार के पास कोई विजन नहीं है। जरूरत है धृतराष्ट बने संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को महाभारत के संजय जैसे सुयोग्य पात्र की जो इसकी व्यथा, दुर्दशा और महत्व बताए।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।