महावीर के निर्वाण महोत्सव पर खुशियां मनाने पावापुरी पहुंचने लगे जैनधर्माबलंबी
जैन धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थल बिहार के नालंदा स्थित पावापुरी जहां से जैन धर्म के अंतिम 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी को 527 ई•सा• पूर्व कार्तिक अमावस्या के उषा काल में निर्वाण (मोक्ष) की प्राप्ति हुई थी और इसी पावन धरा से संसार को अंतिम उपदेश दिये थे। इसी उपलक्ष्य में पूरे विश्व भर के जैन अनुयायी दीपावली के रूप में भगवान महावीर के निर्वाण दिवस को मनाते है।
गिरियक : पावापुरी जैन धर्मावलंबियों का पवित्र तीर्थ स्थल है। यहीं जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी को 527 ई. पूर्व में कार्तिक अमावस्या के उषा काल में मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी पावन धरा से उन्होंने पूरी दुनिया को शांति का संदेश दिया था। इसी उपलक्ष्य में जैन अनुयायी दीपावली को भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में मंगवाते हैं।
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उपदेश देते हुए पावापुरी पहुंचे थे भगवान महावीर
जैन ग्रंथ के अनुसार महावीर स्वामी लोगों को उपदेश देते हुए पावापुरी पधारे थे। यहां एक मनोहर उद्यान में चतुर्थ काल में 3 वर्ष साढ़े 8 माह बाकी रह जाने पर कार्तिक अमावस्या के प्रभातकालीन के समय, योग का निरोध करके, कर्मों का नाश करके मुक्ति को प्राप्त हुए। चारों प्रकार के देवताओं ने आकर उनकी पूजा की और दीपक जलाए। उस समय उन दीपकों के प्रकाश से नगरी का आकाश प्रदीप्ति हो रहा था। उसी समय से जैन परंपरा में जीनेश्वर की पूजा करने के लिये प्रतिवर्ष उनके निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में दीपावली के पावन मौके पर मनाया जाता हे। वहीं दूसरी ओर जिस समय भगवान महावीर का निर्वाण हुआ उसी समय उनके प्रधान शिष्य प्रथम गणधर गौतम स्वामी को पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
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मुक्ति और ज्ञान है सबसे बड़ी लक्ष्मी जैन धर्म में मुक्ति और ज्ञान को सबसे बड़ी लक्ष्मी माना जाता है और प्राय: मुक्तिलक्ष्मी और ज्ञानलक्ष्मी के नाम से ही शास्त्रों में उनका उल्लेख है। इस तरह दीपावली के प्रकाश में प्रतिवर्ष भगवान महावीर के निर्वाण (मोक्ष) लक्ष्मी का पूजन किया जाता है।
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निर्वाण लाडू चढ़ाकर मनाया जाता है निर्वाणोत्सव दीपावली के प्रात: काल में सभी जैन मंदिरों में महावीर स्वामी के निर्वाण की स्मृति में बड़े उत्सव के साथ हर्षोल्लास निर्वाण लाडू से भगवान महावीर की विशेष पूजन-अर्चना की जाती है। इस दिन ऐसा भव्य पूजन का आयोजन किया जाता है जो केवल इसी दिन होता है। घर-घर में दीपोत्सव के अवसर पर जो मिष्ठान लाडू बनता है उसका उद्देश्य भी जैन धर्म में इसी निर्वाण दिवस से है।
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निर्वाण स्थली पावापुरी में देश-विदेश से जैन अनुयायियों का होता है आगमन
भगवान महावीर का पांच कल्याणक जन्म से लेकर निर्वाण तक की भूमि बिहार की पावन धरती ही रही है। जिसमें से एक अंतिम निर्वाण कल्याणक स्थली पावापुरी है। यह पावानगरी अपने आप में एक अनोखी पहचान है भगवान महावीर के निर्वाण स्थली पर बना मशहूर तीर्थ स्थल जलमन्दिर भारत ही नही पूरे विश्व में विख्यात है। जो देश में एक मिशाल पेश करता है ।आकर्षक सफेद संगमरमर से बना जलमन्दिर तीर्थ यात्रियों व सैलानियों को अपने ओर आकर्षित करता है। इस जलमंदिर के स्वरूप को भारत के अन्य जगहों पर भी निर्माण कराने का प्रयाश किया गया परंतु ऐसा स्वरूप नही बन सका। भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव के अवसर पर यहां सदियों से भव्य मेला लगता आ रहा है। जिसमें स्थानीय जैन प्रबंधन कमिटी तथा गांववासियों की अहम भूमिका होती है। इस निर्वाणोत्सव मेला में शामिल होने देश-विदेश से हजारों-हजार की संख्या में जैन धर्मावलंबियों का जुटान होता है। जो यहां जलमन्दिर में महावीर स्वामी के अतिप्राचीन अतिशयकारी चरण पादुका के समक्ष निर्वाण लाडू समर्पित करके दीपोत्सव मनाते है।
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