स्कूल के मंच पर सम्मान पाकर पिता का अभिमान बन गई अर्चना
बिहारशरीफ। पिता की उंगली पकड़ जिस स्कूल में बच्ची अर्चना ने 2006 में पांचवीं कक्षा में दाखिला लिया था। 15 साल बाद उसी स्कूल के मंच पर पिता के साथ सम्मानित की गई। पिता के चेहरे पर झलक रहा गौरव का भाव बता रहा था कि आइएएस बन सम्मान पा रही बिटिया उनका अभिमान बन गई है।

बिहारशरीफ। पिता की उंगली पकड़ जिस स्कूल में बच्ची अर्चना ने 2006 में पांचवीं कक्षा में दाखिला लिया था। 15 साल बाद उसी स्कूल के मंच पर पिता के साथ सम्मानित की गई। पिता के चेहरे पर झलक रहा गौरव का भाव बता रहा था कि आइएएस बन सम्मान पा रही बिटिया उनका अभिमान बन गई है। वर्ष 2020 की यूपीएससी परीक्षा में 110वां स्थान पाने वाली अर्चना को पिता व बहनों के साथ उसके स्कूल सरस्वती विद्या मंदिर ने मंगलवार को आमंत्रित किया था। नियत समय साढ़े दस बजे वह स्कूल पहुंचीं। पांचवीं से दसवीं तक स्कूल में मिले संस्कार को नहीं भूलीं और गुरुजन के पैर छूकर आशीष लिया।
अपनी रोल माडल आइएएस दीदी का बेसब्री से इंतजार कर रहे स्कूल के छात्रों की ओर अपनेपन से देख मुस्कुराई, मानो आश्वस्त कर रही हों कि मैं आज भी तुम्हारे बीच की ही हूं।
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सर्वोच्च प्रशासनिक पद हासिल कर जड़ें नहीं भूलीं
अर्चना के साथ उनके प्रधानाध्यापक पिता राजेन्द्र प्रसाद व दो बहनें आरती व सुधा थीं। हालांकि दो अन्य बहनें गीता व सीमा कुमारी किसी कारण से नहीं आ पाई थीं। बचपन में मां के निधन के बाद पिता व सभी बहनों ने हौसला दिया। इसकी बदौलत वह देश के बड़े शिक्षण संस्थानों में उच्च शिक्षा हासिल कर सकी और आज इस मुकाम पर पहुंच गई। सरस्वती विद्या मंदिर राजगीर से मैट्रिक पास करके 11वीं व 12वीं कक्षा की पढ़ाई डीपीएस, आरकेपुरम दिल्ली से कीं। लेडी श्री राम कालेज फार वूमेन दिल्ली से अर्थशास्त्र विषय में स्नातक किया। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर किया।
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कभी भी भीड़ का हिस्सा न बनें विद्यार्थी
स्कूल पहुंचने पर अर्चना का स्वागत सभी ने फूलमाला और बुके देकर किया। इसके बाद अर्चना को सपरिवार मंच पर ले जाया गया। वह सीधे छात्र-छात्राओं से मुखातिब होते हुए कामयाबी की कहानी शेयर कीं। कहा कि हार्ड वर्क के साथ स्मार्ट वर्क करें तो सफलता जरूर मिलेगी। कभी भी भीड़ का हिस्सा न बनें। जो दूसरा कर रहा है, वह जरूरी नहीं है कि आप भी करें। आप वही करें जो आपको अच्छा लगता है। डाक्टर बनें, इंजीनियर बनें या आइएएस। सभी के लिए एक प्लानिग की जरूरत होती है। खुद को जानें, अपनी क्षमता को पहचानें, तभी आप किसी भी परीक्षा को पास कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि सभी बोलते हैं कि बड़े होकर आइएएस बनूंगा लेकिन यह इतना आसान नहीं होता। ढेर सारी मौज-मस्ती छोड़नी पड़ती है। जब मैंने आइएएस बनने का लक्ष्य तय किया तो सबसे पहले अपने सीनियर से बात की। सिलेबस को जाना, फिर जब लगा कि हां, मैं कर सकती हूं, तब मैंने तैयारी करना शुरू की। अपने स्कूल के दिनों को याद करते हुए अर्चना ने कहा कि अनुशासन का पालन इसी स्कूल से सीखा है। इसके बाद अर्चना ने बच्चों से एक-एक कर पूछा कि तुम पढ़-लिखकर क्या बनोगे। किसी ने कहा डाक्टर तो किसी ने इंजीनियर तो किसी ने कहा आइएएस बनूंगा।
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