Diwali 2025: मिट्टी के दीए की चमक के आगे फीके पड़े चाइनीज सामान, नालंदा में वोकल फॉल लोकल अभियान का बढ़ावा
परवलपुर में इस बार दीपावली पर मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ गई है। लोग चीनी सामान से दूरी बना रहे हैं और स्थानीय उत्पादों को पसंद कर रहे हैं। इससे स्थानीय कारीगरों की आय में वृद्धि हुई है और गरीब परिवारों के घरों में भी रोशनी आई है। यह बदलाव 'वोकल फॉर लोकल' अभियान की सफलता को दर्शाता है, जिससे अर्थव्यवस्था और सामाजिक एकता को बढ़ावा मिल रहा है।
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मिट्टी के दीए की चमक बढ़ी, चाइनीस सामान से बनाई दूरी। फोटो जागरण
संवाद सूत्र, जागरण, परवलपुर। परवलपुर बाजार में इस बार दीपावली का माहौल कुछ अलग नजर आ रहा है। कुछ वर्षों से चाइनीस लाइट और सजावटी सामान का प्रचलन बढ़ा था, लेकिन इस बार स्थानीय उत्पादों की ओर लोगों का झुकाव देखा जा रहा है।
लोग चाइनीज सामान से दूरी बना रहे हैं। मिट्टी के दीए और स्वदेसी सजावटी वस्तुओं की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे न केवल स्थानीय कारीगरों और छोटे दुकानदारों की आय में इजाफा हुआ है, बल्कि गरीब परिवारों के घरों में भी रोशनी की नई किरण जली है।
स्थानीय विक्रेता छोटे कुमार ने बताया कि इस बार मिट्टी के दीए की मांग उम्मीद से कहीं अधिक है। उन्होंने कहा कि ये दीए 90 रुपये सैंकड़ा बिक रहे हैं। पिछले वर्ष जहां प्रतिदिन दो से तीन हजार दीए बिकते थे, वहीं इस वर्ष अब तक चार से पांच हजार तक की बिक्री हो चुकी है।
यह दर्शाता है कि परवलपुर के लोग अब चाइनीस उत्पादों की बजाय देसी हस्तशिल्प को प्राथमिकता दे रहे हैं। छोटे कुमार जैसे कई स्थानीय कुम्हारों और विक्रेताओं के चेहरे पर इस बदलाव की चमक साफ नजर आ रही है।
उनका कहना है कि लोगों की सोच में परिवर्तन आया है। अब वे समझ रहे हैं कि देसी उत्पाद खरीदने से न केवल देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है, बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार भी सृजित होता है।
बाजार में मिट्टी के दीए, दीवार सजावट, रंगोली की थालियां और हस्तनिर्मित दीपमालाओं की मांग में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। दुकानदारों के अनुसार, इस बार ग्राहक सौंदर्य के साथ परंपरा और भावनात्मक जुड़ाव को भी प्राथमिकता दे रहे हैं।
परवलपुर के सामाजिक कार्यकर्ता गौतम कुमार का कहना है कि यह बदलाव वोकल फार लोकल अभियान की सफलता को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि यदि इसी तरह लोग स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देंगे, तो आने वाले समय में परवलपुर जैसे छोटे इलाकों में भी कारीगरों को सम्मान और स्थायी रोजगार मिल सकेगा।
दीपावली की जगमगाहट में इस बार मिट्टी के दीए नहीं केवल घरों को रोशन कर रहे हैं, बल्कि सैकड़ों गरीब परिवारों के चेहरों पर भी मुस्कान बिखेर रहे हैं। इस बदलाव ने यह साबित कर दिया है कि जब जनता अपनी संस्कृति और स्थानीय उत्पादों को अपनाती है, तो इसका प्रभाव अर्थव्यवस्था से लेकर सामाजिक एकता तक हर स्तर पर सकारात्मक होता है।
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