ग्रंथों से निकलने को कसमसा रही बौद्ध पुण्यभूमि सप्तपर्णी गुफा
मनोज मायावी राजगीर राजगीर के पंच पहाड़ियों में शुमार वैभारगिरी पर्वत में स्थित है सप्तपणी

मनोज मायावी, राजगीर
राजगीर के पंच पहाड़ियों में शुमार वैभारगिरी पर्वत में स्थित है सप्तपर्णी गुफा। इस गुफा की चर्चा बौद्ध धर्मग्रंथ त्रिपिटक में भी है। यह वही गुफा है, जहां भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके प्रमुख शिष्य महाकश्यप के नेतृत्व में 483 ईं. में मगध सम्राट अजातशत्रु के शासन काल में प्रथम बौद्ध संगिती का आयोजन किया गया था। मान्यता है कि भगवान बुद्ध शिष्यों के साथ सप्तपर्णी गुफा में ही घंटो प्रकृति के स्वरूप को निहारते और तपमुद्रा में लीन रहा करते थे। यह स्थान बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए बेहद खास और बौद्ध पुण्यभूमि के रूप में प्रसिद्ध है। अब तक इस गुफा के बारे में ज्यादातर लोगों ने सिर्फ ग्रंथों में ही पढ़ा है। इस गुफा का जिक्र विनय पिटक अर्थात अनुशासन की टोकरी में मिलता है। इतिहासविद् डा. श्रीकांत के मुताबिक श्रीलंका में लिखी किताब वंश साहित्य में भी बौद्ध संगीति की चर्चा है, जो बुद्ध के महापरिनिर्वाण के सात दिन बाद ही हुई थी। बौद्ध सर्किट से भी यह स्थल जुड़ी है। बावजूद पर्यटन विभाग की इच्छाशक्ति की कमी के कारण इसका न सुंदरीकरण हो पाया है और न ही यहां तक बड़ी संख्या में पर्यटकों की पहुंच हो पाई है। पर्यटक करीब 580 सीढि़यों की कठीन चढ़ाई के बाद ही गुफा तक पहुंच पाते हैं। स्थानीय लोगों की अरसे से मांग रही है कि सरकार यहां रोपवे का निर्माण कराए।
सुविधाओं का है घोर अभाव
नालंदा महाविहार के प्रो.श्रीकांत ने कहा कि यह स्थल बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए मक्का से कम नहीं है। बावजूद यहां सुविधाओं का घोर अभाव है। इस स्थल पर सबसे पहले बिजली-पानी और बैठने के लिए बेंच की व्यवस्था होनी चाहिए। यह स्थल भगवान बुद्ध की तपोस्थली रही है अत: इसको उसी तर्ज पर विकसित करने की दरकार है। बुद्ध की इसी तपोस्थली में बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र त्रिपिटिक ग्रंथ की रचना की ब्लूप्रिट तैयार की गई थी। प्रथम बौद्ध संगिती के दौरान 500 बौद्ध अनुयायियों का जमावड़ा लगा था और बुद्ध के दिए तमाम उपदेशों को विधिवत अभिलेखित किया गया था।
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