सदियों की विरासत से स्मार्ट सिटी तक का सफर, इतिहास और गौरव का जीवंत उदाहरण है बिहारशरीफ
बिहारशरीफ, बिहार का एक ऐतिहासिक शहर है, जिसे ब्रिटिश काल में 1867 में नगरपालिका घोषित किया गया था। 2007 में इसे नगर निगम का दर्जा मिला। गंगा-युमनी सभ् ...और पढ़ें
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बिहारशरीफ का घंटाघर। (जागरण)
जन्मेंजय, बिहारशरीफ। जिले का मुख्यालय बिहारशरीफ केवल एक प्रशासनिक इकाई नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और विरासत का जीवंत उदाहरण है। इसका नगर निकाय इतिहास भी उतना ही पुराना और दिलचस्प है।
ब्रिटिश काल में वर्ष 1867 में बिहारशरीफ को पहली बार इसे नगरपालिका घोषित किया गया। स्वतंत्रता के बाद शहरी विस्तार के साथ यह 2002 में नगर परिषद बना और अंततः 2007 में इसे पूर्ण रूप से नगर निगम का दर्जा प्राप्त हुआ। स्वच्छता तथा पेयजल आपूर्ति में उच्च कार्य के लिए इसे 2021 में स्मार्ट सिटी में शामिल किया गया।
गंगा-युमनी सभ्यता यहां की पहचान
आज बिहारशरीफ नगर निगम क्षेत्र की आबादी लगभग चार लाख के बीच मानी जाती है। शहर में सभी समुदायों का सौहार्दपूर्ण सह-अस्तित्व इसकी सबसे बड़ी पहचान है। गंगा-युमनी सभ्यता यहां की पहचान है।
एक ओर सूफी संत शेख सर्फुद्दीन साहब का दरगाह तो दूसरी ओर पिसत्ताघाट में स्थित बाबा मणिराम का अखाड़ा इस शहर की समरसता को और भी प्रबल और मजबूत करता है।
संस्कारों की पाठशाला है हमारा शहरबिहारशरीफ मेरे लिए सिर्फ जन्मस्थान नहीं, संस्कारों की पाठशाला रहा है। बचपन में बड़ी दरगाह के मेले, बाबा मणिराम स्थित सूर्य मंदिर तालाब के किनारे शाम की सैर और नालंदा की मिट्टी में इतिहास को महसूस करना ये सब मेरी स्मृतियों का हिस्सा हैं।
शिक्षाविद शिवजी मिश्रा कहते हैं कि यह शहर सिखाता है कि विविधता में कैसे एकता पनपती है। आज जब यह नगर निगम बनकर आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है, तब भी इसकी आत्मा वही है सहिष्णु, विद्वान और मानवीय। यही बिहारशरीफ का सच्चा गौरव है।

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