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    बौद्ध इतिहास का प्रमुख केंद्र रहा है सप्तकर्णी गुफा

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 23 Mar 2017 11:21 PM (IST)

    नालंदा। राजगीर के पंच पहाड़ियों में शुमार वैभारगिरी पर्वत पर स्थित सप्तकर्णी गुफा का महत्व बुद्धिज्म

    बौद्ध इतिहास का प्रमुख केंद्र रहा है सप्तकर्णी गुफा

    नालंदा। राजगीर के पंच पहाड़ियों में शुमार वैभारगिरी पर्वत पर स्थित सप्तकर्णी गुफा का महत्व बुद्धिज्म के धार्मिक इतिहास के एक प्रमुख केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित है। यहां कई प्राकृतिक गुफाएं और बड़े क्षेत्र मे फैली हुई विशाल शिलाखंडों का चबूतरा भी है। जहां भगवान बुद्ध तपमुद्रा मे लीन रहा करते थे। इस स्थान की चर्चा बौद्ध धर्म ग्रंथ त्रिपिटक मे भी की गई है। इस गुफा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि त्रिपिटिका ग्रंथ का निर्माण बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके प्रमुख शिष्य महाकश्यप के अगुआई में इसी गुफा में हुए प्रथम बौद्ध संगिति के दौरान किया गया था। जिसमे बड़ी संख्या में बौद्ध अनुयायी मौजूद थे। यह वो स्थान है जहां भगवान बुद्ध के मूल दर्शन का संकलन त्रिपिटिका ग्रंथ मे समाहित किया गया था। जिसके पश्चात् इसी स्थान से बौद्ध सिद्धांतों और उपदेशों का व्यापक प्रचार- प्रसार का शुभारंभ किया गया था । इस कड़ी मे 17 से 19 मार्च 2017 तक वैभारगिरी पर्वत के सप्तपर्णी गुफा के पास अवस्थित अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर में हुए त्रिदिवसीय बौद्ध सम्मेलन ने इसके महत्व को उजागर किया है। जहां एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय बौद्ध धर्म गुरु महापावन लाई लामा के कर कमलों द्वारा देश-विदेश के बौद्ध धर्म संघ महानायक, धर्मावलंबी व भिक्षु इसके साक्षी रहे। हजारों प्रतिनिधियों के समक्ष देवनागरी लिपि में बौद्ध धर्म ग्रंथ त्रिपिटिका ग्रंथ का पुनर्मुद्रण के किये गये विमोचन ने उन सुनहरे प्रथम बौद्ध संगिति की याद ताजा करा दी। इस बाबत बौद्ध सम्मेलन के समापन के दौरान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की उपस्थिति में मंच से यह जानकारी भी दी गई।

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    लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व छठी शताब्दी में वैभारगिरी पर्वत पर स्थित सप्तपर्णी गुफा को बौद्धकालीन का मक्का भी कहा जाता है। इस पहाड़ी के घाटी मे बिखरी हरियाली पूरे क्षेत्र को मनोरम ²श्य प्रदान करते हैं। शायद यही वो वजह थी कि भगवान बुद्ध ने गृद्ध कूट के बाद इस स्थान को भी अपना तपस्थली के रुप मे चयन किया।

    सप्तपर्णी गुफा के सानिध्य मे तपमुद्रा मे बैठ कई सूक्तियों का सूत्रपात भगवान बुद्ध किया करते थे। जहां भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के पूर्व व ज्ञान प्राप्ति के पश्चात भी राजगीर से अपना मोह बनाये रख यहां के विभिन्न स्थानों को रमणीय बताया था। जिसमे गृद्धकूट के बाद सप्तपर्णी गुफा पर भी अपने शिष्यों के साथ राजगीर के प्रति प्रेम दिखाते हुए प्रिय शिष्य आनंद को पाली भाषा में कहा था कि ष्रमणीयं आनंद राजगृहंए रमणीये त्रिग्झकुटो पब्बतोए रमणीये चोट पपातोए रमणीय बब्मारपस्से सप्तपर्णी गुहाए रमणीय इसिगिल पस्से कालसिलाए रमणीयो बेजुवणे कलन्दक निवाणोंए रमणीयं जीवकाम्बवनं मदद कुक्षि¨स्म मृगदायो!ष् जिसमें उन्होने वैभारगिरी पर्वत के आंचल मे बसा सप्तपर्णी गुफा को भी अतिरमणीय बताया था।

    राजा ¨बबिसार के बाद उनका पुत्र अजातशत्रु भी बाद मे भगवान बुद्ध का अनुयायी बने थे। जब भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ था, तो महापरिनिर्वाण के छह माह बाद उनके उपदेशों को लेकर मत मतांतर विकसित हो गया था। तब 483 ई0 पू0 में राजा अजातशत्रु ने वैभारगिरी पर्वत के उपर स्थित सप्तपर्णी गुफा के सामने एक सभा का आयोजन कर उस मत मतांतर को दूर करने का प्रयास किया था। इस सभा मे भगवान बुद्ध के सबसे निकटतम रह चुके शिष्य बौद्ध विद्वानों एवं धर्मशास्त्रियों को भी आमंत्रित किया गया था। जिसमें उनके प्रमुख शिष्य महाकश्यप की अध्यक्षता में इस सभा के प्रथम बौद्ध संगीती की संज्ञा दी गई थी। इस क्रम मे भगवान बुद्ध के दिए गये तमाम उपदेशों को विधिवत पाली भाषा में बारिकियों के साथ अभिलेखित किया गया था। जिसमें उनके मूल दर्शन का संकलन करते हुए उक्त प्रथम बौद्ध संगीती की सभा मे उपस्थित बौद्ध प्रतिनिधियों ने उनके उपदेशों को त्रिपिटिका ग्रंथ का रुप प्रदान। किया था। जो कि बौद्ध इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण व प्रमुख घटना के रूप मे देखा जाता है। यहीं से बौद्ध के त्रिरत्न क्रमश: बुद्धमए धम्मम व संघम शरणच् गच्छामि का सूत्रपात हुआ था जिसमे भगवान बुद्ध के मूल दर्शन को समाहित करते हुए उनके बौद्ध सिध्दांतों व उपदेशों का व्यापक प्रचार प्रासर शुरू किया गया था। इसके पश्चात तीन और बौद्ध संगितियों का आयोजन भिन्न भिन्न स्थानों पर संपन्न हुआ। जिसमे 383ई0 पू0 कालाशोक के शासनकाल के दौरान द्वितिय बौद्ध संगिती का आयोजन वैशाली मे भगवान बुद्ध के शिष्य सबाकामी की अध्यक्षता में 255 ई0 पू0 सम्राट अशोक के शासनकाल मे तृतीय बौद्ध संगिति पाटलिपुत्र मे शिष्य मोग्गलिपुत्त तिस्स की अध्यक्षता मे व ई0 की प्रथम शताब्दी मे राजा कनिष्क के शासनकाल मे शिष्य वसुमित्र व अश्वघोष की अध्यक्षता मे संपन्न हुआ था। वहीं इस कड़ी में 17 मार्च से 19 मार्च 2017 मे राजगीर के अंतर्राष्ट्रीय कंन्वेशन सेंटर मे हुए अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन का आयोजन बौद्ध धर्म गुरु महापावन दलाई लामा की अध्यक्षता मे संपन्न होना व 21 वीं सदी के बुद्धिज्म को वर्तमान परिवेश मे समाहित कर नया संदेश प्रसारित करने के साथ साथ त्रिपिटिका ग्रंथ का देवनागरी मे पुनर्मुद्रण कर विमोचन की ऐतिहासिक घटनाक्रम ने इसे सप्तपर्णी गुफा के प्रथम बौद्ध संगीती के महत्व से जोड़ दिया है ।