Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    राजगीर: मलमास में होता है 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास!, पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को मिलती है शांति

    By rajnikant sinhaEdited By: Mohit Tripathi
    Updated: Mon, 10 Jul 2023 07:00 PM (IST)

    18 जुलाई से पुरुषोत्तम मास यानी मलमास की शुरुआत हो रही है। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान पूरे एक महीने तक राजगीर में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास रहता है। इस मास में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य का आयोजन नहीं किया जाता है। हालांकि कम लोग ही जानते होंगे कि अधिक मास में जिनका निधन होता है उनका पिंड दान राजगीर छोड़कर कहीं और नहीं होता।

    Hero Image
    राजगीर में पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को मिलती है शांति। जागरण

    जागरण संवाददाता, बिहारशरीफ: 18 जुलाई से पुरुषोत्तम मास की शुरुआत हो रही है। इस दौरान पूरे एक महीने तक राजगीर में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास रहता है। इस मास में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य का आयोजन नहीं किया जाता है। कम लोग ही जानते होंगे कि अधिक मास में जिनका निधन होता है, उनका पिंड दान राजगीर छोड़कर कहीं और नहीं होता।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    श्री राजगृह तीर्थ पुरोहित कुंड रक्षार्थ पंडा कमेटी के सचिव विकास उपाध्याय बताते है कि अधिक मास में जिनका निधन होता है, उनका पिंडदान पुरुषोत्तम मास में ही किया जाता है। इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, तर्पण विधि और श्राद्ध कर्म आदि वैतरणी नदी पर किए जाते हैं।

    इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए राजगीर तीर्थ सबसे महान बताया गया है। उन्होंने बताया कि बिहार के अलावे सबसे अधिक श्रद्धालु नेपाल से आते है।

    भव सागर पार लगाने वाली नदी है वैतरणी

    श्री राजगृह तीर्थ पुरोहित कुंड रक्षार्थ पंडा कमेटी के सचिव विकास उपाध्याय ने बताया कि वायु पुराण में इसका वर्णन है। भारतीय पौराणिक धर्मग्रंथों में खासकर राजगीर के पुरुषोत्तम मास मेले में भव सागर पार लगाने वाली नदी वैतरणी का महत्वपूर्ण उल्लेख है।

    किंवदति है कि पुरुषोत्तम मास मेले के दौरान गाय की पूंछ पकड़कर वैतरणी नदी पार करने पर मोक्ष व स्वर्ग की प्राप्ति होती है। वहीं जाने अनजाने में हुए पाप से मुक्ति के साथ-साथ सहस्त्र योनियों मे शामिल नीच योनियों से निजात मिल जाता है। पौराणिक वैतरणी नदी का इतिहास काफी गौरवमयी व समृद्धिशाली रहा है।

    मोक्षदायिनी नदी है वैतरणी

    विकास उपाध्याय ने बताया कि यह मोक्षदायिनी नदी सनातन धर्म, वेद व हिन्दू ग्रंथों में काफी महत्वपूर्ण आध्यात्मिक स्थान रखता है। पुरुषोत्तम मास मेले में इस नदी के शुद्ध व पवित्र जल में लगाये डूबकी मात्र से जाने अनजाने में हुए पाप से मुक्ति तो मिल ही जाती है। साथ ही मेले के दौरान गाय की पूंछ पकड़ कर इसे पार करने पर मनुष्य को मरणोपरांत मोक्ष व स्वर्ग की भी प्राप्ति होती है।

    तपस्वी ॠषि बाबा वैतरणी के नाम पर है नदी

    अनादिकाल में इस नदी के तट पर कल्याणक दैविक शक्तियों से पूर्ण ब्रह्म ज्ञानी तपस्वी ॠषि बाबा वैतरणी जी तपस्या में लीन रहा करते थे। जिन्होंने स्वयं के ब्रह्म ज्ञान तथा जनकल्याण कार्य से अपने भक्तों को लाभान्वित किया करते थे। उनकी उपस्थिति इतनी अलौकिक थी कि भक्त उनके सान्निध्य में रम जाते व परम ध्यान में लीन हो जाते।

    उन्होंने बताया कि किवदंती यह भी है कि यह परिक्षेत्र मलमास को शुद्ध करने में भी मुख्य भूमिका निभाता रहा है। बाबा वैतरणी को इस नदी के मोक्षदायिनी प्रभाव का ज्ञान प्राप्त हो गया था। उन्होंने इस नदी के भूगर्भ से स्वत: निकलती जल स्त्रोत्तों से लबरेज जलधाराओं की पवित्रता व शुद्धता को बारिकी से परखा था।

    इस प्रकार उन्हें इस नदी से इतना गहरा लगाव हो गया कि उन्होंने स्वयं को इसी के तट पर पंचतत्व में विलीन कर लिया। तत्पश्चात उनके अनुयायियों ने इस नदी का नामाकरण उनके नाम पर कर दिया।और वैतरणी घाट पर धुनी रमाकर उनकी पूजा अर्चना करते हुए उनकी परंपरा को जारी रखा।