Vaibhav Suryavanshi: वैभव को पसंद है बुआ दादी के हाथ का चिकन, मुजफ्फरपुर शहर से है खास कनेक्शन
मुजफ्फरपुर के वैभव सूर्यवंशी ने 14 साल की उम्र में आईपीएल में शानदार प्रदर्शन कर सबको चौंका दिया है। बुआ दादी के हाथ का चिकन उन्हें बेहद पसंद है और उन ...और पढ़ें

बाबुल दीप, मुजफ्फरपुर। सफलता यूं ही नहीं मिलती, इसके लिए कड़ी मेहनत, संघर्ष और जूझने की शक्ति होनी चाहिए। कुछ ऐसा ही जुझारूपन 14 साल के वैभव सूर्यवंशी (Vaibhav Suryavanshi) में है। तभी उसने महज 14 वर्ष 33 दिनों में आईपीएल में गुजरात टाइटंस के विरुद्ध 35 गेंदों पर तूफानी शतक जड़कर विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ दी। आज हर कोई उसकी सफलता पर गर्व महसूस कर रहा है।
मुजफ्फरपर शहर में पोखरिया पीर स्थित न्यू कॉलोनी में वैभव की बुआ दादी सेवानिवृत एएनएम माला सिंह और उनके पति डॉ. प्रेमजीत कुमार सिंह का घर है। इनसे वैभव का बहुत करीबी रिश्ता रहा है। उसके बुआ दादी के बेटे विक्रम सिंह उर्फ पिंटू सिंह ने उसकी सफलता को करीब से देखा है।

वैभव की बुआ दादी को मिठाई खिलाती हुई। (पीली साड़ी में)। सौ. स्वयं
जब भी वैभव घरेलू स्तर पर क्रिकेट मैच खेलने जाता था तो विक्रम उसके साथ जाते थे। ग्राउंड तक ले जाना और वहां से फिर घर तक पहुंचाना व अभ्यास के दौरान भी उसके इर्दगिर्द होते थे, ताकि खेलने के दौरान उसे किसी प्रकार की दिक्कत नहीं हो।
विक्रम कहते हैं कि हमलोग बस यही चाहते थे कि वैभव सिर्फ अपने खेल पर फोकस करे। उसका ध्यान नहीं भटके, क्योंकि उसकी सफलता के पीछे उसके माता-पिता और भाइयों का बहुत त्याग रहा है।
पिता संजीव सूर्यवंशी किसान हैं, इसके बावजूद उन्होंने बेटे को क्रिकेट सीखने और खेलने के लिए हर सुविधा उपलब्ध कराई। विक्रम ने कहा कि इसके लिए उन्हें जमीन तक बेचनी पड़ी। वैभव ने भी शतक जड़ने के बाद जिन-जिन लोगों ने उन्हें वहां तक पहुंचाने में योगदान दिया, उन सभी का आभार प्रकट किया।
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वैभव अपनी बुआ दादी और दादाजी के साथ। सौ. स्वयं
बुआ दादी के हाथ का चिकन बहुत पसंद:
विक्रम ने बताया कि उसे बुआ दादी के हाथ का बना हुआ चिकन खाना बहुत पसंद था। जब भी वह यहां पर आता तो रास्ते से ही कॉल कर देता था और कहता था कि चिकन बनाकर रखिएगा। यहां आने के बाद खूब चाव से खाता था और घंटों बीताता था।
विक्रम के बड़े भाई विकास सिंह उर्फ चिंटू सिंह ने बताया कि छह साल की उम्र में वैभव ने बल्ला थाम लिया था। उसके पिता ने नन्हे-नन्हे हाथों में उसी समय बड़े सपने देख लिए थे। फिर उसे उस मुकाम तक पहुंचाने में जीताेड़ मेहनत की।
विकास बताते हैं कि वैभव में जूझने की गजब शक्ति है। जब तक वह एक शॉट को पूरी तरह नियंत्रण के साथ नहीं खेलता था, तब तक अभ्यास करना नहीं छोड़ता। यही जुझने की ताकत ने उसे सफलता के मुकाम तक पहुंचाया। यहां जश्न का माहौल है। सोमवार रात से मिठाइयां बांटी जा रही है।
इंडोर स्टेडियम में कर चुके कई बार अभ्यास:
पोखरिया पीर-सादपुरा में दिनेश पोद्दार का इंडोर स्टेडियम है। वे भी वैभव और उसके परिवार के बहुत करीबी हैं। उनके इंडोर स्टेडियम में भी वैभव कई बार आकर दिनेश के पुत्र अयान राज के साथ अभ्यास कर चुका है। दिनेश कहते हैं वैभव शुरू से विलक्षण प्रतिभा का धनी रहा है। आज वहां पर देखकर गर्व से छाती चौड़ी हो जाती है।

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