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इतिहास बनने की ओर मिथिला की प्रसिद्ध सौराठ सभा Madhubani News

मैथिल ब्राह्मणों के वैवाहिक संबंध निर्धारण स्थल सौराठ सभा में अब नहीं रही वह रौनक। कभी आते थे एक लाख से अधिक लोग अब महज कुछ ही लोग पहुंचते। इसे बचाने का हो रहा प्रयास।

By Ajit KumarEdited By: Published: Fri, 28 Jun 2019 08:57 AM (IST)Updated: Fri, 28 Jun 2019 08:57 AM (IST)
इतिहास बनने की ओर मिथिला की प्रसिद्ध सौराठ सभा Madhubani News
इतिहास बनने की ओर मिथिला की प्रसिद्ध सौराठ सभा Madhubani News

मधुबनी, [सुनील कुमार मिश्र]। जिले की विश्व प्रसिद्ध सौराठ सभा कभी मैथिल ब्राह्मणों के लिए वरदान थी। यहां शादी के लिए इच्छुक वर-वधू के परिजन जुटते थे। आषाढ़ में लगने वाली इस सभा में प्रतिवर्ष देश-विदेश से लाखों ब्राह्मण पहुंचते थे। इसमें वैवाहिक संबंध तय होते थे। बिना किसी तामझाम और दहेज के शादी होती थी। आधुनिकता और दहेज की बढ़ती प्रथा के कारण यह परंपरा समाप्त होने की ओर है। बीते तीन दशक से वर पक्ष एवं अन्य का आना कम हो गया है। मैथिल ब्राह्मणों के वैवाहिक संबंध निर्धारण स्थल 'सौराठ सभा' इतिहास बनने की ओर है।

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  बताया जाता है कि इस सभा की शुरुआत 14वीं शताब्दी में हुई थी। तब पंजी प्रथा का प्रचलन नहीं था। लोग छिटपुट रूप से वंश परिचय रखते थे। वैवाहिक अधिकार का निर्णय स्मरण के आधार पर करते थे। बाद में पंजी प्रबंध बना। पंजीकार वंश परिचय का अभिलेख रखने लगे। यहां लोगों के रहने के लिए कमरे बनाए गए। सरोवर का निर्माण हुआ। सौराठ सभा की ख्याति बढ़ी और देश के विभिन्न भागों से मैथिल ब्राह्मण लग्न के समय आने लगे। बाद के दिनों में यहां आने वालों की संख्या एक लाख से ऊपर तक पहुंच गई। इसमें आने वाले लोग धोती-कुर्ता पहनते और सिर पर पाग रखते थे।

हर गांव के लिए तय होता था अलग स्थान

सभा स्थल में सभी गांव का अलग-अलग स्थान तय रहता था। वहां वर अभिभावक के साथ लाल पाग पहनकर बैठते थे। कुल और गोत्र के आधार पर विवाह तय होता था। कोई आडंबर नहीं। चट मंगनी, पट ब्याह वाली कहावत चरितार्थ होती थी। उस समय खानदान का महत्व था। पैसों का नहीं। लेकिन धीरे-धीरे दहेज का चलन शुरू हुआ। इस कारण उत्तम कुल की गरीब कन्या के विवाह में बाधा आने लगी।

  इससे एक गलत परंपरा की शुरुआत हुई। सभा से पसंदीदा लड़कों का जबरन विवाह कराया जाने लगा। इस कारण भी वर वाले यहां आने से कतराने लगे। पहले सभा में महिलाओं का आना वर्जित था। बाद में वे भी आने लगीं।

परंपरा बचाने का प्रयास कर रहे लोग

इस ऐतिहासिक सभा को बचाने के लिए कुछ संस्थाएं व समाजसेवी प्रयास कर रहे। पूर्व वरिष्ठ बैंक अधिकारी उमेश मिश्र, सतीश चंद्र मिश्र, नीरज झा, कृष्णकांत झा 'गुड्डू' और शेखरचंद्र मिश्र सभा को बचाने के लिए काम कर रहे। इसके तहत सभा अवधि में कम से कम प्रत्येक गांव से पांच-पांच सौ लोगों को आने का आग्रह किया गया है। उमेश मिश्र का कहना है कि इसके लिए मैथिल ब्राह्मणों को आगे आना चाहिए। पहले देश के विभिन्न भागों के गुरुकुल से गुरु व शिष्य आते थे। शास्त्रार्थ की परंपरा थी। शिष्यों में से भी लोग योग्य वर का चुनाव करते थे।

30 जून तक चलेगी सभा

इस वर्ष सौराठ सभा 21 जून से शुरू है। यह 30 जून तक चलेगी। शुरू के तीन दिनों में कुल 25 सिद्धांत पंजीकार ने निर्गत किए। वैसे कई सामाजिक लोग जिनकी संख्या सौ के करीब थी, सभा में पहुंचे। पंजीकार विश्वमोहन मिश्र ने कहा कि यहां लोग सिद्धांत कराने आ रहे। तीसरे दिन एक भी वर शादी के लिए नहीं आया। वैसे सभा की व्यवस्था देखने के लिए आसपास के गांवों के लोग पहुंच रहे।

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