Nepal Gen-Z Protest: इधर बाबुल की बेचैनी बढ़ी, उधर बिटिया की आंखों से टपकने लगे मोती
नेपाल में जेन-जी आंदोलन के कारण भारत-नेपाल सीमा पर स्थिति तनावपूर्ण है। इंटरनेट सेवा बाधित होने से बेटियों और उनके परिवारों के बीच संपर्क मुश्किल हो गया था जिससे बेचैनी बढ़ गई थी। हालांकि सेवा बहाल होने से कुछ राहत मिली है। आंदोलन के कारण नेताओं को छिपना पड़ रहा है और लोगों को आवागमन में परेशानी हो रही है।

अमरेंद्र तिवारी, जागरण, (वीरगंज)। इंटरनेट मीडिया ... बाबुल और उनकी दुलारी के संबंध ... रोज पिता-पुत्री एक दूसरे को अपलक इसी के माध्यम से निहारते थे। वाट्सएप काल, इंस्ट्रा, फेसबुक... आदि। अचानक से उसी के नाम पर हुए एक आंदोलन ने चंद दिनों के लिए एक ऐसी लकीर खींच दी कि इधर बाबुल की बेचैनी बढ़ी और उधर बिटिया की आंखों से मोती टपकने लगे।
नेपाल में हुए जेन-जी आंदोलन के कारण नेपाल में ब्याही गईं भारत की बेटी और भारत में ब्याही गई नेपाल की बेटियां नित्य ऊपरवाले से बस एक ही निवेदन कर रहीं नेपाल शांत हो जाए। इस देश से भ्रष्टाचार का अंत हो जाए।
बेटियां इस बात को लेकर चिंता में हैं कि आखिर आगे क्या होगा। वहीं उनके पिता इस बात से व्यथित हो जा रहे कि बेटी से समय पर संपर्क नहीं हो पा रहा। हालांकि पिछले दो दिनों इंटरनेट सेवा शुरू हो गई है। इंटरनेट मीडिया के प्लेटफार्म पर भी आजादी मिल गई है।
इस बीच आंदोलन के दौरान हुई हिंसा व तोड़-फोड़ ने पूरी स्थिति को बदलकर रख दिया है। आसानी से आना-जाना फिलहाल प्रभावित है। वीरगंज निवासी राजकिशोर अपना दर्द बयां करते हैं- स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि नेताओं के लिए घर में रहना मुश्किल है।
कब और कहां हमला हो जाए, कहा नहीं जा सकता। बड़े नेताओं को सरकार की ओर से सुरक्षा मिल गई है, लेकिन सीमाई क्षेत्र के अधिकांश जनप्रतिनिधि लगातार कठिनाई झेल रहे हैं। जैसे-तैसे बेटियों से बात हो जा रही तो मन तृप्त हो जा रहा। वरना यहां तो सबकुछ सपने जैसा लगता है।
नेपाल के बरियारपुर की बेटी व पूर्वी चंपारण जिले के बेलहिया की बहू लालझरी देवी कहती है- मायके सूचना पहले जैसे मिलती थी, अभी नहीं मिल रहीं। व्हाट्सएप काल पर पहले खूब बात होती। इधर बीच में बंद हो गई थी। दो दिनों से चालू है तो मन चैन में है। पहले तो रोज आना-जाना हो जाता था। अब इस आंदोलन का नतीजा निकल जाए तो फिर पहलेवाली बात बन जाए।
नेता को लगातार बदलना पड़ा ठिकाना
रक्सौल के एक होटल में तराई क्षेत्र के एक जनप्रतिनिधि शरण लेने पहुंचे, लेकिन जगह न मिलने पर उन्हें अरेराज इलाके में जाना पड़ा। वहां से भी ठिकाना बदलना पड़ा। नाम न छापने की शर्त पर एक जनप्रतिनिधि ने स्वीकारा कि भारत-नेपाल के बीच कायम बेटी-रोटी संबंध का आज संकट की घड़ी में काम आ रहा है।
भारत नेपाल के बीच बेटी रोटी के अतिरिक्त आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संबंध भी है। आम लोगों को भी नेपाल से भारत आने के लिए पैदल व टमटम जैसी सवारियों का सहारा लेना पड़ रहा है। कल तक जो एयरकंडीशन वाहनों में घूमते थे वो अब टमटम में आ गए हैं। गरीब-अमीर का भेद मिटा है।
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