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    ससौला वैवाहिक सभा के वजूद पर संकट, कम पहुंचते लोग Sitamarhi News

    By Ajit KumarEdited By:
    Updated: Tue, 02 Jul 2019 02:02 PM (IST)

    सौराठ की तर्ज पर लगने वाली इस सभा में अब नहीं रही वह रौनक। एक महीने की जगह अब 10 दिन ही होता आयोजन। मैथिल ब्राह्मणों के लिए दहेज मुक्त विवाह का केंद्र ...और पढ़ें

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    ससौला वैवाहिक सभा के वजूद पर संकट, कम पहुंचते लोग Sitamarhi News

    सीतामढ़ी, [नीरज]। मधुबनी की सौराठ सभा की तर्ज पर सीतामढ़ी में प्रत्येक साल लगने वाली ससौला वैवाहिक सभा के वजूद पर संकट खड़ा हो गया है। हर साल मैथिल ब्राह्मणों के लिए आयोजित इस सभा में दहेज मुक्त शादी होती थी। लेकिन, स्थानीय लोगों की उदासीनता और दहेज के चलते दशकों पुरानी परंपरा समाप्त होती दिख रही। अब कम ही लोग यहां जुटते हैं। आयोजन के नाम पर वह रौनक नहीं रहती। सीतामढ़ी शहर से 14 किलोमीटर दूर सुप्पी प्रखंड का सभा ससौला गांव।

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      पहले इस इलाके के मैथिल ब्राह्मण मधुबनी जिले के सौराठ सभा में जाकर रिश्ता तय करते थे। आवागमन की समस्या और लंबी दूरी के चलते बहुत से लोग नहीं जा पाते थे। ऐसे में आजादी के एक साल बाद सभा ससौला गांव में स्थित विशाल बाग में मैथिल ब्राह्मणों के लिए वैवाहिक सभा की शुरुआत सेवानिवृत्त शिक्षक पंडित मुरलीधर मिश्र के पूर्वजों ने की। इसके लिए कुछ जमीन दान दी। यहां पूरी व्यवस्था सौराठ जैसी की गई।

      कुछ समय बाद सौराठ के पंजीकारों के कई परिवार ससौला से सटे मनियारी गांव में बस गए। हर साल जून में आयोजन के दौरान एक माह तक मेला भी लगता था। उसमें रोजाना दर्जनों वर-वधू का चयन होता था। हजारों जोड़ों की शादी होती थी। इसके बाद ससौला के वैवाहिक सभा की तुलना सौराठ से की जाने लगी।

    विवाह के लिए पंजीकार देते अनुमति

    यह सभा दहेज मुक्त विवाह का केंद्र थी। इसमें वर और कन्या पक्ष के बीच बातचीत तय होने के बाद विवाह के लिए पंजीकार से अनुमति लेनी पड़ती है। पंजीकार पंजी में दोनों पक्ष के बीच सात पीढिय़ों के खून के रिश्ते का पता लगाते हैं। इसके बाद जन्म कुंडली का मिलान किया जाता है। फिर पंजीकार सिद्धांत प्रथा जारी करते हैं।

    80 के दशक तक यहां रौनक रही।

      इसके बाद स्थानीय लोगों की उपेक्षा, दहेज प्रथा और प्रशासनिक संरक्षण के अभाव में सभा का वजूद सिमटने लगा। अब तो महज कुछ ही लोग सभा में पहुंचते हैं। एक महीने की जगह आयोजन सिर्फ 10 दिन होता है। इस साल 21 से 30 जून तक चली सभा में सिर्फ 129 वर-वधुओं का पंजीकरण किया गया।

    परंपरा बचाने के लिए लोगों से करते संपर्क

    पूर्वजों की ओर से शुरू की गई इस सभा को बचाने में लगे सेवानिवृत्त शिक्षक 74 वर्षीय पंडित मुरलीधर मिश्र हर साल सीतामढ़ी समेत आसपास के जिलों और पड़ोसी देश नेपाल के मैथिल ब्राह्मणों से संपर्क करते हैं। उन्हें सभा में आने के लिए आमंत्रित करते हैं। उनका कहना है कि यह मैथिल ब्राह्मणों की शादी के लिए परंपरागत स्थल है।

        इसे बचाने के लिए समाज के लोगों को आगे आना होगा। सहियारा निवासी 92 वर्षीय भैरव चौधरी बताते हैं कि परंपरा खतरे में है। पंजीकार राजेश मिश्र, डॉ. अमित राज, डॉ. शंकर ठाकुर, विनोद चंद्र पाठक और वीरभद्र ठाकुर आदि का कहना है कि उनका काम सिमटता जा रहा। इसे बचाने की जरूरत है।