एसकेएमसीएच में बड़ी कमी, लावारिस शवों को 72 घंटे सुरक्षित रखने की नहीं है मुकम्मल व्यवस्था
SKMCH unclaimed bodies: मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच में लावारिस शवों को सुरक्षित रखने की उचित व्यवस्था नहीं है। अस्पताल में 72 घंटे तक शवों को सुरक्षित र ...और पढ़ें

दो-दो पोस्टमार्टम गृह के बावजूद शीतगृह की व्यवस्था अब तक नहीं हो सकी है। फाइल फोटो
जागरण संवाददाता, मुजफ्फरपुर। SKMCH Muzaffarpur news: लावारिस शवों को 72 घंटे सुरक्षित रखने के लिए एसकेएमसीएच में कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं है। यहां पर अमानवीय तरीके से शवों को फर्श पर रखा जा रहा है।
बैगर डीप-फ्रीजर के ही शव को 72 घंटे सुरक्षित रखे जाने का दावा कर रही एफएमटी (फारेंसिक मेडिसिन एंड टाक्सिकोलाजी ) विभाग और एसकेएमसीएच ओपी पुलिस सरकारी दिशा-निर्देश की धज्जियां उड़ा रहे हैं। दो-दो पोस्टमार्टम गृह के बावजूद शीतगृह की व्यवस्था अब तक नहीं हो सकी है।
आम तौर पर यहां दस-पंद्रह शव लावारिस हालत में रहते है। स्वास्थ्य विभाग एवं पुलिस प्रशासन के बीच फंसी पूरी प्रक्रिया के बीच मानवीय पहलू की अनदेखी हो रही है। सड़ी-गली लाशों को एकत्र कर एसकेएमसीएच ओपी पुलिस की ओर से 20-25 दिन बाद लावारिस शव का अंत्योष्टी हो रहा है।
बताया जा रहा है कि वर्ष 2016 में बीएमएसआइसीएल की ओर से करीब सोलह लाख की लागत से एक डीप-फ्रीजर छह शव रखने वाला सप्लाइ किया गया था। छह माह बाद ही वह खराब हो गया। आधा दर्जन बार प्राचार्य को पत्राचार किया गया, लेकिन पूर्ण रूप से कारगर साबित नहीं हो सका। एक-दो बार बनने के उपरांत की खराब हो गया।
पोस्टमार्टम कक्ष मे बिजली कटने के बाद जेनरेटर की बिजली की स्पलाइ भी नहीं है। कोविड के दौरान वर्ष 2019 मे जिला परिवहन पदाधिकारी ने एक-एक शव रखने वाला डीप-फ्रीजर डोनेट किया, वह भी टेक्नीकल इशू के कारण बेकार पड़ा है। नियमानुसार प्रत्येक लावारिस शव की पहचान के लिए 72 घंटे तक सुरक्षित रखा जाना है।
इसके बाद ही उसका अंतिम संस्कार कराना है, लेकिन एसकेएमसीएच में डीप फ्रीजर की व्यवस्था नहीं होने से शव को रख कर छोड़ दिया जाता है, जिससे कुछ घंटों के बाद ही बदबू आने लगती है।
वर्ष 2019 में नर कंकाल मिलने के बाद स्वास्थ्य एवं प्रशासनिक महकमे में हड़कंप मचा था। उस समय एसकेएमसीएच के प्राचार्य डा. विकास कुमार ने स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव के निर्देश पर चार सदस्यीय जांच टीम गठित कर लावारिस शवों को सुरक्षित रखने व उसके अंतिम संस्कार के सभी पहलुओं पर विचार करने के लिए बना था।
हालांकि मामला शांत होते हुए नहीं तो लावारिस शवों को सुरक्षित रखने संबंधित कोई ठोस पहल हो सकी और नहीं 72 घंटे बाद अन्त्येष्टि प्रक्रिया हो सका।
ये हैं प्राविधान
शवों के दाह-संस्कार के लिए रोगी कल्याण समिति द्वारा दी जाने वाली राशि से शव के लिए कफन, फूल माला, लकड़ी एवं अन्य सामग्री की खरीद की जानी है। इसी में शवदाह गृह का शुल्क भी शामिल होता है। जहां शवदाह गृह नहीं है. वहां पारंपरिक तरीके से अंतिम संस्कार किया जाना है। वैसे कितनी राशि दी जाए, यह तय नहीं है। स्थानीय परस्थिति के हिसाब से राशि दी जाती है।
अंतिम संस्कार को लेकर पुलिस और अस्पताल प्रशासन की संयुक्त रूप से जिम्मेवारी होती है। अंतिम संस्कार के पहले मूलक की एक तस्वीर भी ली जाती है, ताकि बाद में जानकारी हो सके कि किस व्यक्ति का अंतिम संस्कार किया गया है। अंतिम संस्कार वाले जगह का प्रमाण पत्र जरूरी होता है।
डीप-फ्रीजर खराब होने की सूचना मिली है। एफएमटी विभाग से डीप-फ्रीजर का प्रोपोजल मांगा गया है। प्रपोजल आने के बाद बिहार चिकित्सा सेवाएं एवं आधारभूत संरचना विकास निगम (बीएमएसआइसीएल) को सप्लाइ के लिए पत्राचार किया जाएगा। नियम संबंधित जानकारी एफएमटी विभागाध्यक्ष से लिया जाएगा। पुलिस को 72 घंटे बाद शव को अंत्योष्टी करना चाहिए। पुराने पोस्टमार्टम हाउस को शीत गृह में तब्दील करने का प्रपोजल भेजा जाएगा।
डाॅ. आभा रानी सिन्हा, प्राचार्य सह अधीक्षक, एसकेएमसीएच

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