Sawan 2025 : शृंगार केवल सुंदरता के लिए नहीं, हरी चूड़ी से मानसिक ऊर्जा में होती वृद्धि तो मेहंदी के भी कमाल के फायदे
Sawan 2025 सावन भगवान शिव का माह कहा जाता है। उनके साथ माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस दौरान हरे रंग की चूड़ियां और कपड़े पहनने तथा मेहंदी लगाने की परंरपरा है। कहा जाता है कि इससे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। धार्मिक से आगे इसका अपना आध्यात्मिक महत्व यह है कि यह रंग तनाव कम कर मन को आनंदित रखता है।

मीरा सिंह, मुजफ्फरपुर। Sawan 2025 : सावन का संबंध प्रकृति से है। यह बरसात का महीना है। वर्षा ऋतु में चारों तरफ फैली हरियाली प्रकृति, नवजीवन और ऊर्जा को दर्शाती है। हरे-भरे खेत-खलिहान, रंगी-बिरंगी फूल पत्तियां, ऐसा लगता है प्रकृति ने सोलह शृगांर किया हो। महिलाएं प्रकृति का स्वरूप हैं।
जीवन में ऊर्जा, प्रेम और समृद्धि की इच्छा से वह सावन में हरे रंग का शृंगार करती हैं। यह रंग माता पार्वती को भी काफी प्रिय है। सावन में भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा की जाती है। हरे रंग की चूड़ियां और कपड़े पहन हाथों में मेहंदी लगा कर देवी पूजा करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के अलावा इस रंग का विज्ञानी महत्व भी है। आयुर्वेद और कलर थेरेपी के अनुसार यह रंग तनाव कम कर मन को आनंदित रखता है। हरी चूड़ियां पहनने से मानसिक और शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि होती है। वहीं, मेहंदी लगाने से मन को शांति मिलती है। तनाव कम होता है।
मन-मस्तिष्क पर पड़ता सकारात्मक प्रभाव
जनक आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान के आयुर्वेदाचार्य डा. ललन तिवारी कहते हैं कि वैशाख, जेठ और अषाढ़ की तपती धूप में पेड़-पौधे, फसल सब जल जाते हैं। धरती का ताप बढ़ जाता है। धूप और गर्मी से हर मन विचलित रहता है। ऐसे में सावन में जब वर्षा की बूंदें पड़ती हैं तो चारों तरफ हरियाली छा जाती है।
मन-मस्तिष्क पर इसका सकारात्मक असर पड़ता है। हरे रंग से बुद्ध ग्रह की भी शांति होती है। आयुर्वेद के अनुसार, स्वस्थ शरीर के लिए स्वस्थ मन का होना बहुत जरूरी है। हरे रंग से मानसिक शांति मिलती है। मेहंदी लगाने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। हृदय, किडनी और मूत्र संस्थान के लिए भी यह फायदेमंद है, इसलिए महिलाएं इस मौसम में हरे रंग का शृंगार करती हैं। इससे उनके भीतर ऊर्जा और ताजगी का संचार होता है।
लोक गायिका डा. सुषमा झा कहती हैं कि सोलह शृगांर में मेहंदी का काफी महत्व है। यह सुहाग का प्रतीक है, लेकिन यह प्राकृतिक उपचार का भी बेहतर साधन है। ग्रीष्म ऋतु में गर्मी का प्रकोप काफी बढ़ जाता है। दो-तीन दशक पूर्व की बात करें तब घरों में ऐसी, पंखा और कूलर नहीं हुआ करते थे।
हाथ पैरों में जलन और शरीर के ताप को कम करने के लिए महिलाएं सावन में मेहंदी लगाती थीं। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में यह परंपरा बरकरार है। सावन की सोमवारी, मधुश्रावणी, तीज आदि त्योहरों में महिलाएं मेहंदी लगाती हैं। शहहरी क्षेत्रों में महिलाएं आर्टिस्ट से भगवान शिव, पार्वती, त्रिशूल, स्वास्तिक, मोर, फूल-पत्ती आदि की आकृति वाली मेहंदी लगवाती हैं। एक हाथ पर मेहंदी लगाने की कीमत 50 से लेकर 200 रुपये तक है। खास डिजाइनों के लिए 500 या उससे अधिक है।
तीन माह पूर्व से हरी लहठियां होने लगतीं तैयार
शहर के इस्लामपुर स्थित बाबा लहठी भंडार के मो. सैफ कहते हैं लहठी सुहाग का प्रतीक है। लाख की लहठी सिर्फ सुहागहन महिलाएं ही पहनती हैं और सावन का महीना सुहागिनों के लिए ही होता है। इसलिए सावन में हरी लहठी और चूड़ियों की मांग आम दिनों की अपेक्षा 10 गुना बढ़ जाती है।
पूरे सावन सिर्फ हरे रंग की लहठी की ही डिमांड होती है। हम तीन माह पहले से ही हरी लहठी बनाकर स्टाक करना शुरू कर देते हैं। सावन की पहली और दूसरी सोमवारी में इसकी मांग सबसे अधिक होती है। लहरिया, बंद बंगड़ी, पंजाबी और कैमिकल वाटर प्रूफ लहठी की सबसे अधिक मांग है। लहरिया प्रिंट 60 रुपये दर्जन, जबकि कैमिकल वाटर प्रूफ लहठी की कीमत 200 से 1000 रुपये तक है।
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