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    समस्तीपुर: गांधीजी की प्रेरणा से बनी थी अनुमंडलीय खादी ग्रामोद्योग समिति लक्ष्मीनारायणपुरी

    By Dharmendra Kumar SinghEdited By:
    Updated: Sun, 30 Jan 2022 04:12 PM (IST)

    Samastipur News वैनी खादी भंडार लक्ष्मीनारायणपुरी की दशा बदलने के लिए चाहिए बूस्टर डोज सरकारी विद्यालयों में खादी वस्त्रों से बने पोशाक छात्रों को पहनने का मिले निदेश तो बन सकती है बात सरकार की ओर से लगातार खादी को द‍िया जा रहा बढ़ावा।

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    समस्‍तीपुर ज‍िले में अनुमंडलीय खादी ग्रामोद्योग वैनी लक्ष्मीनारायणपुरी। फोटो-जागरण

    समस्‍तीपुर, पूसारोड  {चंद्रभूषण मिश्र} । आजादी से पहले गांधी जी ने देश के लोगों को रोजगार मुहैया करवाने के लिए खादी की मुहिम चलाई थी। इससे काफी युवा प्रभावित हुए थे। 1925 में अखिल भारत चरखा संघ की स्थापना हुई। उस समय राजेंद्र प्रसाद को एजेंट व लक्ष्मीनारायण जी को बिहार शाखा का मंत्री बनाया गया। उन्हीं की अपील पर 1948 में वैनी में खादी ग्रामोद्योग की स्थापना हुई।

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    गांधीवादी रामाकांत राय बताते हैं कि जब देश आजाद हुआ और पाकिस्तान बना था उस समय देश की हालत अच्छी नहीं थी। न तो खेती बाड़ी अच्छी थी और न ही सरकारी नौकरियां थी। ऐसे में खादी ही देश के लोगों के लिए सहारा बनी थी। आजादी के बाद सरकार ने खादी को अपने अधीन ले लिया। बाकायदा खादी कमीशन बन गया था। साथ ही खादी ने अपना काम शुरू कर दिया था।

    प्रत्येक गांव में खादी सेंटर खुले गए थे। इससे काफी लोगों को रोजगार मिल गया। अन्य ग्रामोद्योग के प्रोडक्ट भी खादी के अधीन आ गए थे। समस्तीपुर अनुमंडलीय खादी ग्रामोद्योग समिति लक्ष्मीनारायणपुरी वैनी ने भी उस समय अपने कार्यों से खादी और उसके कार्यकर्ता की व्यवस्था को सुधारने की दिशा में कार्य किया। स्वतंत्रता आंदोलन से जन्मे खादी एवं ग्रामोद्योग के माध्यम से बडी़ संख्या में लोगों को रोजगार मिला। धीरे-धीरे खादी संस्था घाटे में चली गई। संस्था का संरजाम कार्यशाला बंद हो गया।

    65-66 तक लगी थी एक करोड़ 61 लाख की कार्यशील पूंजी

    खादी भंडार वैनी में खादी ग्रामोद्योग आयोग की वर्ष 1965/66 में एक करोड़ 61 लाख की कार्यशील पूंजी लगी हुई थी। वर्ष 2010/11यह पूंजी टूट कर एक करोड़ 18 लाख 74 हजार की हो गई। घाटे को पाटने के लिए संस्था के नए बने मंत्री धीरेंद्र कार्यी ने अपव्यय पर सख्ती से नियंत्रण किया। बंद हो चुके सूत एवं वस्त्र उत्पादन को पुन: चालू कराया गया। आधुनिक मॉडल के चरखे कतीनों को उपलब्ध कराया गया। इससे सूत उत्पादन एवं खादी वस्त्रों के उत्पादन में वृद्धि हुई। इसका असर खादी वस्त्रों की बिक्री पर भी हुई। राज्य से बाहर भी यहां के खादी वस्त्रों के मांग में वृद्धि हुई। इसके अतिरिक्त संस्था को आम के बगीचे से भी आय में वृद्धि हुई। वित्तीय वर्ष 2011/12 में यह घाटा बंद हो गया। उस वर्ष संस्था को 1 लाख 52 हजार हजार का लाभ हुआ। उस समय से संस्था लाभ में चल रही है।

    वित्तीय घाटा पर अंकुश लगना शुरू हुआ

    2012 के बाद से वित्तीय घाटा पर अंकुश लगना शुरु हो गया। नबंवर 2015 में तत्कालीन केंद्रीय उद्यम मंत्री कलराज मिश्र खादी संस्था में आए। सूक्ष्म,लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय उनके जिम्मे था। उन्होंने वैनी में खादी के खंडहर को देखा। इसके वैभवशाली गौरव के संबंध में जानकारी ली। उन्होंने खादी ग्रामोद्योग आयोग ( केभीआइसी ) के चेयरमैन को इस संस्था को मदद करने का निदेश दिया। श्री मिश्र के निदेश के बाद खादी कमीशन ने खादी रुरल डेवलपमेंट प्रोग्राम (केआरडीपी) के अन्तर्गत इस संस्था को शत प्रतिशत अनुदान पर आठ तकुए का एक सौ नग नया चरखा, चौदह नग करघा उपलब्ध कराया। रेडिमेड गारमेंट निर्माण के लिए जापानी जुक्की मशीनें उपलब्ध कराई। तीन कंप्यूटर सेट दिए। सिलाई सेंटर के भवन निर्माण के लिए आर्थिक सहायता दी। खादी संस्था के रोसडा़ एवं दलङ्क्षसहसराय स्थित खादी बिक्री दूकानों को वातानुकूलित बनवाया। मुख्यालय में कत्तिन शेड के निर्माण में 75 प्रतिशत राशि खादी कमीशन ने दी।

    25 प्रतिशत संस्था का लगा। बिहार खादी बोर्ड के सौजन्य से नब्बे प्रतिशत अनुदान पर आठ तकुए वाली 46 नग चरखा एवं 17 लाख रुपये कार्यशील पूंजी के रूप में संस्था को प्राप्त हुआ। वैनी,उजियारपुर के एकशिला,नरहन, शाहपुर पटोरी एवं दलङ्क्षसहसराय के केवटा में चरखा कत्तिनें कात रही हैं। अतिवृष्टि के कारण करघा अभी नहीं लग पाया था। अब उस पर काम शुरु हो जाएगा। रेडिमेड गारमेंट युनिट में कुरता, बंडी, झोला, रजाई आदि तैयार किए जा रहे हैं।

    प्रति वर्ष एक करोड़ की खादी बिक्री

    मंत्री श्री कार्यी बताते हैं कि संस्था प्रति वर्ष लगभग एक करोड़ रुपये की खादी बिक्री कर रही है। सूत उत्पादन प्रति वर्ष 13 लाख का हो रहा है। 49 लाख रुपये का खादी उत्पादन संस्था में हो रहा है। खादी संस्था के मंत्री ने बिहार सरकार से मांग की थी कि सरकारी विद्यालयों में खादी वस्त्रों से बने पोशाक छात्रों को पहनने का निदेश दिया जाए। सरंजाम कार्यशाला को पुनर्जीवित किया जाए एवं तेल घानी उद्योग लगाया जाए। खादी एवं ग्रामोद्योग में सबसे अधिक रोजगार देने की क्षमता है। यदि इन उद्योगों को बूस्टर डोज प्राप्त हो जाए तो खादी के माध्यम से जिले में बडी़ संख्या में लोगों को रोजगार मिल सकता है।

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