Ram Chandra Paswan Dies: खगडि़या के रहनेवाले थे रामचंद्र पासवान, इनका ऐसा रहा राजनीतिक सफर
केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के भाई सांसद रामचंद्र पासवान का निधन हो गया। वे खगडि़या के रहनेवाले थे। आइए जानते हैं उनका राजनीतिक सफर कैसा रहा।
समस्तीपुर, जेएनएन। लोजपा सुप्रीमो राम विलास पासवान के छोटे भाई एवं दलित सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामचंद्र पासवान चौथी बार भारी अंतर से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। चौथी बार उनके जीत का अंतर 2 लाख 52 हजार 427 था, जाे पिछले सभी चुनावाें से अधिक था। सांसद रामचंद्र पसवान मूल रूप से खगड़िया जिला के अलौली प्रखंड अंतर्गत शहरबन्नी गांव के रहने वाले थे।
पत्नी, दो पुत्र व एक पुत्री छोड़ गए
जामुन दास एवं सिया देवी के पुत्र रामचंद्र पासवान के बड़े भाई राम विलास पासवान देश के वरिष्ठ राजनेताओं में शुमार हैं। रामचंद्र पासवान की पत्नी सुनैयना कुमारी के साथ-साथ उनके परिवार में दो पुत्र एवं एक पुत्री भी हैं। 57 वर्षीय पासवान ने मैट्रिक तक की शिक्षा ग्रहण की थी। इसके बाद समाजसेवा को ही इन्होंने अपना प्रोफेशन बना लिया। भाई के सहारे राजनीति में कदम रखने वाले पासवान चौथी बार समस्तीपुर से सांसद चुने गए।
पहली बार 1999 में बने थे सांसद
पहली बार वर्ष 1999 में तेरहवीं लोकसभा के लिए रोसड़ा लोकसभा क्षेत्र से चुने गए, जबकि दूसरी बार 2004 में भी वे चुनाव जीते। इसके बाद जदयू के महेश्वर हजारी से ये चुनाव हार गए। तीसरी बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र माेदी की लहर में ये सोलहवीं लोकसभा के लिए वर्ष 2014 में लोजपा के टिकट पर चुने गए। हालांकि उस समय इनकी जीत का अंतर महज 5 हजार के आसपास रहा। वहीं चौथी बार जब सांसद बने तो इनकी जीत का अंतर ढाई लाख से अधिक रहा।
संसद में उपस्थिति 80 परसेंट से अधिक
रामचंद्र पासवान देश के उन चुनिंदा सांसदों में से रहे हैं, जिनकी औसत उपस्थिति संसद में अस्सी प्रतिशत से अधिक रही है। ये संसद की विभिन्न कमेटियों के सदस्य रहे हैं। इस बार अपना क्षेत्र बदलने को तैयार नहीं हुए थे रामचंद्र। बताया जाता है कि एनडीए के नेताओं के द्वारा रामचंद्र पासवान को अपना क्षेत्र बदलने के लिए दबाव बनाया गया था, लेकिन वे टस से मस नहीं हुए। उनका कहना था कि जीत और हार तो लगी रहती है। यदि हमने काम किया है तो लोग हमें जरूर वोट देंगे। काम नहीं किया गया होगा तो वोट नहीं करेंगे, लेकिन लड़ूंगा समस्तीपुर से ही। इसके बाद वे समस्तीपुर से चुनाव लड़े और भारी अंतर से जीते भी।
नरेंद्र मोदी के बारे में भी कहते थे
रामचंद्र पासवान चुनाव के दौरान कहते थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का अंडर करंट चल रहा है। देश की जनता उन्हें दोबारा प्रधानमंत्री बनाने के लिए मन बना चुकी है, इसलिए वे इस बार भारी मतों से जीतेंगे। उनकी बात सत्य निकली और वे जीतकर संसद पहुंच गए।
मिलनसार और हंसमुख थे सांसद
रामचंद्र पासवान हंसमुख और मिलनसार थे। वे किसी से भी मिलते थे तो गर्मजोशी के साथ। हमेशा चेहरे पर मुस्कान रहती थी। क्षेत्र के लोग उनके इस मिलनसार एवं हंसमुख प्रवृति के कायल थे। कोई कार्यकर्ता कितने भी गुस्से में क्यों न हों, वे उन्हें अपनी बातों से तुरंत शांत कर देते थे। सभी के साथ मिलन-जुलना एवं लोगों की बातों को सुनना, यह उनका स्वभाव था। हालांकि क्षेत्र में वे बहुत ज्यादा समय नहीं देते थे, परंतु जब आते थे तो लगातार सप्ताह-पंद्रह दिन तक रहकर वे सभी कार्यकर्ताओं की बातों को सुनते थे। क्षेत्र भ्रमण कर वे लोगों की समस्याआें को सुनकर उसका समाधान करने की कोशिश करते थे।
शत-प्रतिशत सांसद निधि खर्च करने वाले थे सांसद
पासवान लोकसभा सदस्य के रुप में मिलने वाले सांसद निधि का शत-प्रतिशत खर्च करते थे। उनके लगभग सभी कार्यकाल में उनके सांसद निधि का खर्च शत-प्रतिशत रहा है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे क्षेत्र के विकास के प्रति कितने तत्पर थे। सभी क्षेत्रों में उनकी सांसद निधि का खर्च समान रुप से होता था।
पत्नी, दो पुत्र व एक पुत्री छोड़ गए
जामुन दास एवं सिया देवी के पुत्र रामचंद्र पासवान के बड़े भाई राम विलास पासवान देश के वरिष्ठ राजनेताओं में शुमार हैं। रामचंद्र पासवान की पत्नी सुनैयना कुमारी के साथ-साथ उनके परिवार में दो पुत्र एवं एक पुत्री भी हैं। 57 वर्षीय पासवान ने मैट्रिक तक की शिक्षा ग्रहण की थी। इसके बाद समाजसेवा को ही इन्होंने अपना प्रोफेशन बना लिया। भाई के सहारे राजनीति में कदम रखने वाले पासवान चौथी बार समस्तीपुर से सांसद चुने गए।
पहली बार 1999 में बने थे सांसद
पहली बार वर्ष 1999 में तेरहवीं लोकसभा के लिए रोसड़ा लोकसभा क्षेत्र से चुने गए, जबकि दूसरी बार 2004 में भी वे चुनाव जीते। इसके बाद जदयू के महेश्वर हजारी से ये चुनाव हार गए। तीसरी बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र माेदी की लहर में ये सोलहवीं लोकसभा के लिए वर्ष 2014 में लोजपा के टिकट पर चुने गए। हालांकि उस समय इनकी जीत का अंतर महज 5 हजार के आसपास रहा। वहीं चौथी बार जब सांसद बने तो इनकी जीत का अंतर ढाई लाख से अधिक रहा।
संसद में उपस्थिति 80 परसेंट से अधिक
रामचंद्र पासवान देश के उन चुनिंदा सांसदों में से रहे हैं, जिनकी औसत उपस्थिति संसद में अस्सी प्रतिशत से अधिक रही है। ये संसद की विभिन्न कमेटियों के सदस्य रहे हैं। इस बार अपना क्षेत्र बदलने को तैयार नहीं हुए थे रामचंद्र। बताया जाता है कि एनडीए के नेताओं के द्वारा रामचंद्र पासवान को अपना क्षेत्र बदलने के लिए दबाव बनाया गया था, लेकिन वे टस से मस नहीं हुए। उनका कहना था कि जीत और हार तो लगी रहती है। यदि हमने काम किया है तो लोग हमें जरूर वोट देंगे। काम नहीं किया गया होगा तो वोट नहीं करेंगे, लेकिन लड़ूंगा समस्तीपुर से ही। इसके बाद वे समस्तीपुर से चुनाव लड़े और भारी अंतर से जीते भी।
नरेंद्र मोदी के बारे में भी कहते थे
रामचंद्र पासवान चुनाव के दौरान कहते थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का अंडर करंट चल रहा है। देश की जनता उन्हें दोबारा प्रधानमंत्री बनाने के लिए मन बना चुकी है, इसलिए वे इस बार भारी मतों से जीतेंगे। उनकी बात सत्य निकली और वे जीतकर संसद पहुंच गए।
मिलनसार और हंसमुख थे सांसद
रामचंद्र पासवान हंसमुख और मिलनसार थे। वे किसी से भी मिलते थे तो गर्मजोशी के साथ। हमेशा चेहरे पर मुस्कान रहती थी। क्षेत्र के लोग उनके इस मिलनसार एवं हंसमुख प्रवृति के कायल थे। कोई कार्यकर्ता कितने भी गुस्से में क्यों न हों, वे उन्हें अपनी बातों से तुरंत शांत कर देते थे। सभी के साथ मिलन-जुलना एवं लोगों की बातों को सुनना, यह उनका स्वभाव था। हालांकि क्षेत्र में वे बहुत ज्यादा समय नहीं देते थे, परंतु जब आते थे तो लगातार सप्ताह-पंद्रह दिन तक रहकर वे सभी कार्यकर्ताओं की बातों को सुनते थे। क्षेत्र भ्रमण कर वे लोगों की समस्याआें को सुनकर उसका समाधान करने की कोशिश करते थे।
शत-प्रतिशत सांसद निधि खर्च करने वाले थे सांसद
पासवान लोकसभा सदस्य के रुप में मिलने वाले सांसद निधि का शत-प्रतिशत खर्च करते थे। उनके लगभग सभी कार्यकाल में उनके सांसद निधि का खर्च शत-प्रतिशत रहा है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे क्षेत्र के विकास के प्रति कितने तत्पर थे। सभी क्षेत्रों में उनकी सांसद निधि का खर्च समान रुप से होता था।
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