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नेपाल में सियासी संकट गहराया, मधेशी मोर्चा ने प्रचंड सरकार से समर्थन लिया वापस

बिहार सीमावर्ती देश नेपाल में सियासी संकट गहराता दिख रहा है। मधेशी मोर्चा ने वहां प्रचंड सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा की है।

By Amit AlokEdited By: Published: Wed, 15 Mar 2017 07:41 PM (IST)Updated: Wed, 15 Mar 2017 11:17 PM (IST)
नेपाल में सियासी संकट गहराया, मधेशी मोर्चा ने प्रचंड  सरकार से समर्थन लिया वापस
नेपाल में सियासी संकट गहराया, मधेशी मोर्चा ने प्रचंड सरकार से समर्थन लिया वापस

मुजफ्फरपुर [जागरण टीम]। मधेशी पार्टियों के गठबंधन ने प्रधानमंत्री प्रचंड नीत नेपाल सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। बुधवार शाम संघीय समाजवादी फोरम नेपाल ने सभापति ओनसरी धरतीमगर को पत्र देकर प्रधानमंत्री प्रचंड को दिया गया समर्थन वापस लेने की घोषणा की। संसदीय दल के नेता अशोक कुमार राई का हस्ताक्षरयुक्त पत्र फोरम नेपाल के सचेतक शिवजी यादव ने सभापति को दिया।

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मधेशवादी दलों के 39 में 15 सांसद फोरम के हैं। राष्ट्रीय मधेश सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव केशव झा ने कहा, समर्थन की समय सीमा मंगलवार को खत्म हो गई। चेतावनी के बाद भी सरकार ने हमारे नेताओं से बातचीत नहीं की। उनकी चिंताओं का समाधान किए बगैर ही सरकार स्थानीय निकायों के चुनाव की तैयारियों में जुट गई। सरकार की नीतियों से मोर्चा के नेता व तराई की जनता आक्रोशित हैं।

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इस बीच खबर है कि मधेशी दलों के नेताओं से प्रधानमंत्री ने प्रदेश का सीमांकन छोड़ संविधान संशोधन का आश्वासन दिया है। इसके लिए जन मोर्चा के तराई मधेश लोकतांत्रिक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंथ ठाकुर, मोर्चा के नेता राजेन्द्र महतो के साथ आपात बैठक बुलाई है।

गौरतलब है कि मधेशी मोर्चा ने सात दिनों की चेतावनी दी थी। यह समय सीमा मंगलवार को समाप्त हो गई। मोर्चा की मांगों में संविधान संशोधन विधेयक पारित कराना भी शामिल था। हालांकि, अभी भी 601 सदस्यीय नेपाली संसद में सरकार को 320 सदस्यों का समर्थन हासिल है।

मोर्चा ने मई में स्थानीय निकायों का चुनाव कराने की घोषणा वापस लेने को कहा था। नेपाल में भारतीय मूल के मधेशी समुदाय की आबादी करीब 52 फीसद है। संविधान के कई प्रावधानों के खिलाफ यह समुदाय संशोधन की मांग कर रहा है। संविधान लागू होने के बाद समुदाय ने छह माह तक विरोध प्रदर्शन किया था।
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