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    Pitru Paksha 2022: पिता का ऋण नहीं उतारा तो जन्म लेना ही बेकार, इस सरल विधि से पाएं पितृ ऋण से मुक्ति

    By Ajit KumarEdited By:
    Updated: Sat, 10 Sep 2022 10:07 AM (IST)

    Pitru Paksha Shradh 2022 माता-पिता संताने को आगे बढ़ाने के लिए सदा तत्पर रहते हैं। अनेक तरह की परेशानियों को झेलते हैं। इसलिए इस ऋण से मुक्ति पाना जरूरी है। भाद्र पद शुक्ल पूर्णिमा से प्रारंभ करके आश्विन कृष्ण अमावस्या तक 16 दिन पितरों का तर्पण और श्राद्ध करना चाहिए।

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    श्राद्ध करने से कुल में वीर, निरोगी व शतायु संतानें होती हैं। फाइल फोटो

    मुजफ्फरपुर, जागरण संवाददाता। पितृपक्ष में प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध एवं तर्पण आज से होगा। अगस्त तर्पण शनिवार को होगा। रविवार से तिथि के हिसाब से तर्पण किया जा सकेगा। शास्त्रों में मनुष्यों के लिए तीन ऋण बताए गए हैं। देव-ऋण, ऋषि-ऋण और पितृ ऋण। मृत पिता आदि के उद्देश्य से श्रद्धा पूर्वक जो प्रिय भोजन दिया जाता है, वह श्राद्ध कहलाता है। पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं। श्राद्ध करने से कुल में वीर, निरोगी, शतायु एवं श्रेय प्राप्त करने वाली संतानें उत्पन्न होती हैं, इसलिए श्राद्ध करना आवश्यक माना गया है। पंडित प्रभात मिश्र का कहना है कि श्राद्ध कर्म से पितृ ऋण उतारा जाता है। जिन माता-पिता ने हमारी आयु, आरोग्य और सुख-सौभाग्य आदि की अभिवृद्धि के लिए अनेक यत्न या प्रयास किए। उनके ऋण से मुक्त ना होने पर हमारा जन्म ग्रहण करना निरर्थक होता है।

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    ऐसे कार्य कर उतारें पितृ ऋण

    वर्ष भर में उनकी मृत्यु तिथि को सर्वसुलभ शुद्ध जल, यव, कुश और पुष्प आदि से उनका श्राद्ध संपन्न करने और गो ग्रास देकर एक या तीन, पांच आदि ब्राह्मणों को भोजन करा देने मात्र से ऋण उतर जाता है। अत: इस सरलता से साध्य होने वाले कार्य की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

    मृत्यु तिथि को करें श्राद्ध कर्म

    जिस मास की जिस तिथि को माता-पिता की मृत्यु हुई हो, उस तिथि को श्राद्ध कर्म आदि करने के सिवा, आश्विन कृष्ण (महालय) पक्ष में भी उसी तिथि को श्राद्ध-तर्पण- गो ग्रास और ब्राह्मण भोजन आदि कराना आवश्यक है। पंडित जितेंद्र तिवारी का कहना है कि पुत्र को चाहिए कि वह माता-पिता की मृत्यु तिथि को मध्याह्न काल में पुनः स्नान करके श्राद्ध आदि करें और ब्राह्मणों को भोजन कराके स्वयं भोजन करे। जिस स्त्री के कोई पुत्र ना हो, वह स्वयं भी अपने पति का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि को कर सकती है। भाद्र पद शुक्ल पूर्णिमा से प्रारंभ करके आश्विन कृष्ण अमावस्या तक 16 दिन पितरों का तर्पण और विशेष तिथि को श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। शस्त्र, आत्म-हत्या, विष और दुर्घटना यानि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है जबकि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को करने के लिए कहा गया है।

    सर्वपितृमोक्ष अमावस्या

    किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गए हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है, तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। पंडित अविषेक तिवारी ने कहा कि शास्त्र अनुसार, इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है। यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए। बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्धपक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए।

    • पितृ पक्ष में श्राद्ध की तिथियां

    • पूर्णिमा अगस्त ऋषि तर्पण- 10 सितम्बर
    • प्रतिपदा श्राद्ध - 11 सितंबर
    • द्वितीया श्राद्ध - 12 सितंबर
    • तृतीया श्राद्ध - 13 सितंबर
    • चतुर्थी श्राद्ध - 14 सितंबर
    • पंचमी श्राद्ध - 15 सितंबर
    • षष्ठी श्राद्ध - 16 सितंबर
    • सप्तमी श्राद्ध - 17 सितंबर
    • अष्टमी श्राद्ध- 18 सितंबर
    • नवमी श्राद्ध - 19 सितंबर
    • दशमी श्राद्ध - 20 सितंबर
    • एकादशी श्राद्ध - 21 सितंबर
    • द्वादशी श्राद्ध- 22 सितंबर
    • त्रयोदशी श्राद्ध - 23सितंबर
    • चतुर्दशी श्राद्ध- 24 सितंबर
    • अमावस्या श्राद्ध- 25सितंबर