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    अधिक राजस्व उगाही व वर्चस्व के बीच बैरिया बस पड़ाव में यात्री सुविधाओं की अनदेखी

    By Ajit KumarEdited By:
    Updated: Thu, 11 Apr 2019 01:58 PM (IST)

    नाम बड़े और दर्शन छोटे वाली स्थिति में है बस पड़ाव। देर शाम से अलसुबह यहां पहुंचने वाले यात्रियों का भगवान ही मालिक। सुविधाओं के नाम पर यहां कुछ भी नहीं है।

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    अधिक राजस्व उगाही व वर्चस्व के बीच बैरिया बस पड़ाव में यात्री सुविधाओं की अनदेखी

    मुजफ्फरपुर, [अमरेंद्र तिवारी] । सूबे में परिवहन व्यवस्था के लिए अधिक राजस्व उगाही और वर्चस्व की जंग नई बात नहीं है। ऐसे में मुजफ्फरपुर का बैरिया बस पड़ाव अपवाद कैसे हो सकता है। एक समय यह इमलीचट्टी में हुआ करता था, लेकिन 1986 में बैरिया लाया गया। इसके लिए करीब पौने आठ एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया। बस पड़ाव तो तैयार हो गया, लेकिन यात्री सुविधाओं के नाम पर यहां कुछ भी नहीं है। न पेयजल की व्यवस्था है, न ही रोशनी की। इस कैंपस में यदि किसी की तबीयत अचानक बिगड़ जाए तो दवा भी नसीब नहीं होगी। साफ-सफाई का तो भगवान ही मालिक है।

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       ऐसे में इसको अंतरराज्यीय बस पड़ाव के रूप में विकसित करने की सोच महज कल्पना ही लगती है। नए वित्तीय वर्ष के लिए 82 लाख में टेंडर हुआ है। सरकार चाहती है कि ज्यादा से ज्यादा राजस्व मिले, वहीं बस संचालन से जुड़े लोग अपना वर्चस्व चाहते हैं। वर्चस्व की लड़ाई सालों भर चलती रहती है। केवल राजस्व और वर्चस्व। यात्री सुविधा की चिंता शायद किसी को नहीं है। परिसर में पर्याप्त रोशनी, पानी, सुरक्षा और विश्रामालय नहीं है। अगर किसी की अचानक तबीयत बिगड़ी या दुर्घटना हुई तो फिर निजी व्यवस्था ही सहारा। 

    बसकर्मियों की मनमानी

    बात केवल सुविधाओं में कमी की नहीं है। बैरिया पहुंचने वाली निजी बस के कर्मचारी भी खूब मनमानी करते हैं। यात्रियों के प्रति उनका व्यवहार संवेदनहीन होता है। मैं जब बस पड़ाव जाने के लिए गोलंबर पर रुका। वहां सीतामढ़ी जाने के लिए महेश अपने भाई के साथ रिक्शा से उतरते हैं। तभी दो लोगों ने उनसे पूछा कहां जाना है? इस पर वे कुछ जवाब दे पाते, इससे पहले ही एक ने उनके सामान को बस में रख दिया। लगभग धक्का देते हुए उन्हें भी बस के अंदर भेज दिया। इस बीच बस के अंदर मौजूद एक यात्री से पूछने पर उसने बताया कि यह बस बेतिया जाएगी।

       आप जल्द से जल्द बस से उतर जाएं। महेश नीचे उतरे। जब उन्होंने इस व्यवहार का विरोध किया तो बसकर्मी उनसे उलझ गया। खैर, किसी तरह मामला शांत हुआ। इसके बाद महेश बस पड़ाव की ओर चल पड़े। वहां पहुंचे तो देखा कि अव्यवस्था का वातावरण है। चारों ओर अफरा-तफरी व गंदगी का अंबार। बाद में एक बस में सवार होकर महेश अपने भाई के साथ सीतामढ़ी रवाना हो गए।

    शेड के अंदर मोटरसाइकिल स्टैंड

    बस पड़ाव के अंदर यात्रियों को बैठने के लिए बना शेड अतिक्रमण का शिकार है। इसे पास के कारोबारियों ने मोटसाइकिल स्टैंड के रूप में बना दिया है। दरभंगा जाने के लिए बस पड़ाव पहुंचे मोहम्मद शाहिद ने बताया कि यहां चारों ओर गंदगी और अतिक्रमण है। रहीम ने बताया कि गेट पर भी अतिक्रमण है। इसलिए अंदर प्रवेश करने में कठिनाई होती है।

       समस्या यह है कि आखिर कहां पर शिकायत करें? परिवार के साथ दिल्ली से फारविसगंज जाने के लिए पहुंचे अनिल कुमार ने बताया कि सरकारी कैंटीन नहीं है। कुछ जगह पर पीने के पानी की व्यवस्था है तो वहां पर गंदगी के कारण इच्छा नहीं होती। बच्चे को पेट में दर्द था। दवा खोज रहे, लेकिन परिसर में कहीं पर प्राथमिक उपचार केंद्र नहीं है।

    रात में भगवान ही होते सहारा

    बस के पीछे लिखा स्लोग्न भोले बाबा भूल न जाना, गाड़ी छोड़कर दूर न जाना...। बस पड़ाव पर रात में आने वाले यात्रियों के लिए सही है। शाम में यदि किसी इलाके में जाने वाली बस छूट गई तो फिर भगवान ही मालिक है। विश्रामालय नहीं रहने से ज्यादातर लोग रेलवे स्टेशन का सहारा लेते हैं। परिसर में पोल है, लेकिन पर्याप्त रोशनी नहीं। बैरिया बस पड़ाव में रोजी-रोटी के लिए जो भी आया, वह यहीं का होकर रह गया। बस संचालन करने वाले 62 साल के उपेंद्र सिंह बोले, इसका एक तरह से नशा हो गया। बचपन में घर से भागकर यहां आए, फिर यहीं रह गए।

       उनकी तरह दर्जनों लोग हैं, जो कंडक्टर, इंचार्ज, बुकिंग करने या आवाज लगाने का काम करते हैं। आमदनी पर बोले कि प्रति बस पांच से दस रुपये की आस रहती है। ऑटो रिक्शा संघ के प्रवीण कुमार उर्फ पप्पू झा कहते हैं कि उनका जुड़ाव स्टैंड से उस समय से रहा, जब किंग ऑफ बिहार बस चलती थी। उस जमाने में इतनी बसें कहां थीं? पहले पैसेंजर को बस का इंतजार रहता था। अब बस को पैसेंजर चाहिए।

    इन जगहों के लिए चलती है बस

    बस पड़ाव से बिहार के विभिन्न जिलों व प्रखंड मुख्यालयों के साथ पश्चिम बंगाल, झारखंड व दिल्ली के लिए बस चलती है। नेपाल के लिए मैत्री बस चल रही, लेकिन सरकारी है।

    बस पड़ाव के हाल पर एक नजर 

    -बस पड़ाव 7.75 एकड़ में फैला हुआ है। जिसका संचालन बैरिया बस पार्किंग स्थल समिति कर रही है। यह पंचायत का हिस्सा है, लेकिन उस पंचायत के विकास में बस पड़ाव से मिलने वाले राजस्व का लाभ नहीं मिलता। परिसर में करीब 74 दुकानें हैं। जिससे समिति को राजस्व मिलता है। परिसर में पुलिस चौकी भी है, जो इन दिनों बंद है। अभी यहां से 500 से 600 बसों का परिचालन प्रतिदिन हो रहा है।