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    अब पश्चिम चंपारण में समृद्धि के द्वार खोलेगी चेपुआ मछली, ब्रीडिंग की तैयारी

    By Ajit kumarEdited By:
    Updated: Wed, 13 Jan 2021 09:48 AM (IST)

    चेपुआ मछली को ग्लोबल स्तर पर ले जाने के लिए ब्रीडिंग की तैयारी। गंडक नदी में ही पाई जाती है चेपुआ मछली हाल ही में लखनऊ से पहुंची थी टीम। मत्स्य विज्ञानी इसकी पोषकता और गंडक के बहाव क्षेत्र में ही उपलब्ध होने का कारण समझ रहे।

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    विज्ञानी इसे अन्य माहौल और पानी में विकसित करने की दिशा में शोध कर रहे। फोटो : जागरण

    पश्चिम चंपारण, [तूफानी चौधरी]। चेपुआ मछली अब चंपारण में समृद्धि का द्वार खोलेगी। अपने अनोखे स्वाद, पोषक तत्व और गंडक नदी में पाये जाने के कारण यह शोध का विषय बनी हुई है। मत्स्य विज्ञानी इसकी पोषकता और गंडक के बहाव क्षेत्र में ही उपलब्ध होने का कारण समझ रहे। हाल ही में मछली आनुवंशिक संसाधन राष्ट्रीय ब्यूरो, लखनऊ से विज्ञानियों की टीम यहां पहुंची थी। यहां से गंडक नदी का पानी और चेपुआ मछली के कुछ सैंपल लिए गए। जिससे पता किया जा सके कि मछली की इस प्रजाति का विकास इन्हीं परिवेश में क्यों हो रहा। विज्ञानी इसे अन्य माहौल और पानी में विकसित करने की दिशा में शोध कर रहे। उत्तर प्रदेश के खड्डा विधायक जटाशंकर त्रिपाठी की पहल पर यह शोध कार्य हो रहा। विज्ञानी अगर शोध में सफल होते हैं तो चंपारण इस विशेष मछली के उत्पादन और बीज आपूर्ति का बड़ा केंद्र हो सकता है। ग्लोबल स्तर पर लोग चेपुआ मछली से परिचित हो सकें, इसके लिए ब्रीडिंग की तैयारी चल रही है। वाल्मीकिनगर विधायक धीरेंद्र प्रताप सिंह उर्फ रिंकू सिंह तथा बगहा विधायक राम सिंह ने भी बिहार सरकार को चेपुआ मछली की खासियत से अवगत कराते हुए यहां ब्रीडिंग की व्यवस्था की वकालत की है।

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    नेपाल से निकली गंडक में जलीय जीवों का अद्भुत संसार

    पड़ोसी देश नेपाल से निकली गंडक नदी में जलीय जीवों का अद्भुत संसार है। विश्व की यह इकलौती ऐसी नदी है जिसमें जीवित शालीग्राम (पत्थर) पाए जाते। जिनका आकार दिन ब दिन बढ़ता रहता। नदी में सैकड़ों प्रजाति की मछलियां, घड़ियाल, कछुएं, मगरमच्छ समेत अन्य जीव पाए जाते। हालांकि चेपुआ मछली सिर्फ वाल्मीकिनगर व उससे आगे चंपारण केे विभिन्न हिस्सों में पाई जाती है। इसलिए नेशनल ब्यूरो ऑफ जेनेटिक रिसोर्सेज एनबीएफजीआर लखनऊ के वैज्ञानिकों की टीम ने नदी के पानी व मछलियों का सैंपल लिया है। शोध टीम का नेतृत्व कर रहे डॉ. केडी जोशी ने बताया कि इस मछली के कृत्रिम ब्रीडिंग की काफी संभावना है। स्थानीय मछुआरों से नदी तथा चेपुआ मछली के प्रजनन की जानकारी ली गई है। इस मछली का प्रजनन काल नवंबर से मार्च है। इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए हम ब्रीडिंग की दिशा में प्रयास कर रहे, ताकि सीमावर्ती उत्तर प्रदेश व बिहार के चंपारण की पहचान चेपुआ मछली बन सके। इससे इस इलाके में आर्थिक समृद्धि भी आएगी।

    पोषक तत्वों से भरपूर है चेपुआ

    जानकारों के अनुसार चेपुआ मछली में ओमेगा-3, फैटी एसिड, विटामिन-डी और विटामिन डी-2 भी पाया जाता है। जो न सिर्फ शरीर बल्कि दिमाग को भी तंदरुस्त बनाए रखता है। बगहा दो के चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. रणबीर सिंह बताते हैं कि चेपुआ मछली का नियमित रूप से सेवन आश्चर्यजनक रूप से शरीर को फायदा पहुंचाता है। वाल्मीकिनगर सांसद सुनील कुमार ने कहा कि चंपारण की चेपुआ को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिले, इससे बड़ी खुशी की बात कुछ और नहीं हो सकती है। मैं केंद्र सरकार से इसकी मांग करूंगा कि चंपारण में इस मछली की ब्रीडिंग की व्यवस्था की जाए।