पटरी पर नेपाल: काली घनेरी रात में भी Indo-Nepal Border की पडंडियों पर दौड़ रहे एसएसबी के जवान
नेपाल की जेलों से भागे बंदियों के बिहार में प्रवेश करने की आशंका को लेकर एसएसबी के जवान लगातार कार्रवाई कर रहे। दोनों देशों की सुरक्षा एजेंसियां आपसी समन्वय के साथ काम कर रही। इसका परिणाम देखने को भी मिल रहा है। विभिन्न पोस्टों पर एसएसबी व स्थानीय पुलिस ने जेल से फरार कैदियों को पकड़ कर नेपाल की सुरक्षा एजेंसियों के हवाले किया।

अमरेंद्र तिवारी, इंडो-नेपाल बार्डर। नेपाल के जेन-जी आंदोलन के दौरान वहां की जेलों से भागे बंदियों की गिरफ्तारी के लिए बिहार से लगी नेपाल की करीब 1751 किलोमीटर सीमा पर जैसे-जैसे रात गहराती है, वैसे-वैसे सीमा पर सशस्त्र सीमा बल का शौर्य चमकने लगता है।
काली घनेरी रात हो या फिर तेज बारिश ये डिगते, झुकते नहीं ... चलते रहते और ढूंढते रहते हैं। इन दिनों ये ढूंढ रहे नेपाल के विभिन्न जेलों से भागे शातिर बंदियों को। नेपाल में हुए जेन-जी आंदोलन के दौरान वहां जेल ब्रेक की घटनाओं के बाद सीमा पर हाई-अलर्ट है।
सशस्त्र सीमा बल व बिहार की पुलिस लगातार सीमा पर चौकसी बरती जा रही है। इस दौरान पूर्वी चंपारण की सीमा पर नेपाल के काठमांडू जेल से भागे बांग्लादेशी नागरिक को गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद मधुबनी जिले की सीमा पर जेल ब्रेक की घटना के बाद नाइजीरिया के दो व एक ब्राजील का नागरिक गिरफ्तार किया गया। इसी के साथ सीमा पर चौकसी पहले से भी कड़ी हो गई है।
नेपाल में जेन-जी आंदोलन के बाद सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाए जाने के बाद पटरी पर लौट रहे जन-जीवन के बीच बनी नई परिस्थितियों में भी एसएसबी सीमा पर चौकस है। नेपाल की सुरक्षा एजेंसियों से समन्वय बनाकर सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं।
भारत-नेपाल से लगी पूर्वी चंपारण की सीमा पर तैनात एसएसबी के जवानों के शौर्य का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दिन रात की ड्यूटी के दौरान एसएसबी हर एक की जांच कर रही है। रात में बार्डर पर स्थित मैत्री पुल पर बने चेक पोस्ट से लेकर खुली सीमा से सटे गांव की पगडंडियों पर एसएसबी के जवान गश्त लगा रहे।
रक्सौल में तैनात 47 वीं बटालियन के कमांडेंट संजय पांडेय व्यवस्था की मानीटरिंग करने के साथ स्वयं भी निकल रहे। सीमा पर चौकसी का नजारा शुक्रवार की रात ऐसा दिखा कि मानों जैसे हर तरफ पहरा लगा हो।
सीमा पार की आवाजाही के बीच संदिग्ध या नेपाल की जेल से भागे अपराधी भारतीय क्षेत्र में नहीं घुसे इसके लिए जहां एक मैत्री पुल पर जवान पहरा दे रहे थे। वहीं दूसरी कमांडेट के नेतृत्व जवानों का एक दल सीमा से लगे ग्रामीण इलाकों में दौड़ लगा रहा था।
नाइट विजन कैमरा व अन्य अत्याधुनिक संयंत्रों से लैस ये जवान किसी की नहीं सुन रहे थे। हम जहां यहां पहुंचे तो जवानों ने हड़काया। यह पनटोका बार्डर था। पू्छा-इतनी रात कहां चले। परिचय दिया तो बोले रात हो गई है। सीमा पर न घूमिए। दरअसल यहां के पिलर संख्या 339 के पास मिले जवानों ने कहा सवाल ने करिए लौट जाइए। फिर हम यहां से लौट गए।
बता दें कि नेपाल की विभिन्न जेलों से जेन-जी आंदोलन के दौरान करीब 15000 से अधिक बंदी भागे हैं। आशंका जताई जा रही है कि ये बिहार की सीमा से होकर भारत में प्रवेश कर सकते हैं। ऐसे में पुलिस व एसएसबी के जवान लगातार गश्त लगा रहे।
वहीं नेपाल की सीमा पर तैनात एपीएफ व जिलों की पुलिस के साथ समन्वय बनाकर बंदियों की खोज में सहयोग कर रहे। पनटोका के रौशन कुमार बताते हैं- ऐसी अभेद्य सुरक्षा में बंदियों की खैर नहीं है। ये हैं तो सुरक्षा का भाव है। चैन से सो रहे हैं।
बबिता देवी अपने दरवाजे पर बूझे बल्ब को जला रही थीं। कहा- यह भारत की सेना का शौर्य है, जिसके कारण हम सुरक्षित हैं। हम भी एसएसबी के साथ हैं। हमारा काम चल रहा है तो हम किसी भी कीमत पर घुसपैठ बर्दाश्त नहीं करेंगे। नारी हूं तो क्या हुआ कुछ भी दिखेगा तो एसएसबी को बता दूंगी।
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