मां के इस मंदिर में भक्त करते अघोर तंत्र-साधना, बिहार ही नहीं दूसरे राज्य के साधक भी यहां पहुंचते
मुजफ्फरपुर के नकुलवा चौक में स्थित मां पीतांबरी बगलामुखी सिद्धपीठ मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। लगभग 285 वर्ष पहले स्थापित यह मंदिर भक्तों की गहरी आस्था का केंद्र है। यहां मां बगलामुखी की पूजा होती है और माना जाता है कि भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। नवरात्रि में विशेष रूप से तांत्रिक और श्रद्धालु यहां साधना करने आते हैं।

जागरण संवाददाता, मुजफ्फरपुर । Shardiya Navratri 2025 : नकुलवा चौक स्थित मां पीताम्बरी बगलामुखी सिद्धपीठ मंदिर जिले के साथ राज्य व देश-विदेश के लोगों के लिए भी आस्था का केंद्र है। यहां सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है। दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।
मान्यता है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं पर मां की असीम कृपा बरसती है। मंदिर के ठीक नीचे सर्व मनोकामना 'सिद्ध सहस्त्र दल महायंत्र' स्थापित हैं। यहां भक्तों की हर इच्छा पूरी होती है। मां को दही-हल्दी व महाकाल को दहीबड़ा चढ़ाने का विधान है।
मंदिर का इतिहास
मंदिर की स्थापना करीब 285 वर्ष पूर्व रूपल प्रसाद ने की थी। इनके पूर्वज वैशाली के महुआ अदलपुर से आकर यहां बसे थे। मां बगलामुखी इनकी कुलदेवी हैं। रूपल ने मंदिर स्थापना के पूर्व कोलकाता के तांत्रिक भवानी मिश्र से गुरु मंत्र लिया था। बाद में मां त्रिपुर सुंदरी, तारा व भैरवनाथ की मूर्ति स्थापित की गई।
मंदिर की विशेषताएं
नवरात्र हो या आमदिन, यहां सालों भर तांत्रिक व आम श्रद्धालु मां का दर्शन-पूजन करने आते हैं। नवरात्र के समय में देश के विभिन्न क्षेत्रों से अघोर तंत्र-साधना के लिए दर्जनों तांत्रिक भी यहां पहुंचते हैं। मंदिर में अष्टधातु की माता की प्रतिमा के महासहस्त्र दल यंत्र पर सहस्त्र अभिषेक किया जाता है। दसों दिन सुबह सात से रात सात बजे तक पूजा-पाठ चलता है। दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।
यहां सालोंभर भक्तों का आना लगा रहता है। प्रत्येक गुरुवार और शारदीय व वासंतिक नवरात्र में सैकड़ों श्रद्धालु पूजन के लिए आते हैं। अष्टमी से दशमी तक यहां कदम रखने तक की जगह नहीं रहती।
देव राजा, महंत
सुबह और शाम में यहां माता की भव्य आरती होती है। इसमें काफी श्रद्धालु जुटते हैं। तंत्र साधना, हवन आदि के लिए उत्तम जगह है। मां से मांगी गई हर मन्नतें पूरी होती है। मां सभी पर कृपा बरसाती हैं।
हरिशंकर पाठक, पुरोहित
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