पश्चिम चंपारण में एक स्कूल से भूमिदाता का नाम गायब, स्वजनों ने जताई नाराजगी
सरकारी नियम के मुताबिक उक्त शैक्षणिक संस्थान या फिर अस्पताल पर भूमि दाता का नाम रहता था। जानकार बताते हैं कि 90 के दशक में कुछ इस तरह की सरकारी व्यवस्था हुई कि प्रायः सभी स्कूलों से भूमि दाताओं का नाम गायब हो गया।

पश्चिम चंपारण, जासं। गांव से अशिक्षा का अंधियारा मिटे इस लिए लौरिया प्रखंड के बनकटवा के एक किसान ने भूमि दान की और सरकारी स्तर से भवन का निर्माण हुआ। भूमिदाता को अधिकारियों ने बताया कि स्कूल का नामकरण भी भूमिदाता के नाम से होगा। करीब 80 वर्षों तक भूमि दाता का नाम स्कूल के साथ जुड़ा रहा। अचानक स्कूल से भूमि दाता का नाम हटा दिया गया, इसको लेकर भूमि दाता के स्वजनों में आक्रोश है। ये लोग पिछले 20 वर्षों से भूमि दाता का नाम स्कूल के साथ जोड़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अभी तक कामयाबी नहीं मिली है।
90 के दशक में अधिकांश स्कूलों से गायब हुआ भूमिदाताओं का नाम
दरअसल पहले गांव के लोग अपनी नाम एवं पहचान के लिए भी स्कूल तथा सरकारी अस्पतालों के निर्माण के लिए भूमि दान करते थे। सरकारी नियम के मुताबिक उक्त शैक्षणिक संस्थान या फिर अस्पताल पर भूमि दाता का नाम रहता था। जानकार बताते हैं कि 90 के दशक में कुछ इस तरह की सरकारी व्यवस्था हुई कि प्रायः सभी स्कूलों से भूमि दाताओं का नाम गायब हो गया। उसी दौरान लौरिया प्रखंड के बनकटवा गांव निवासी सहदेव साह का नाम भी स्कूल से गायब हुआ था। अब से उनके स्वजन विद्यालय के नाम के साथ स्वर्गीय सहदेव साह का नाम जोड़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
सहदेव साह मध्य विद्यालय बनकटवा
1960के पहले बनकटवा गांव में प्राथमिक विद्यालय बनकटवा चलता था । स्थानीय भूस्वामी निःसंतान सहदेव साह ने अपने नाम को जिन्दा रखने को मध्य विद्यालय खोलने का निर्णय लिया । उस समय नियम था कि विद्यालय को सरकार से मंजूरी के लिये विद्यालय भवन, विद्यालय के जमीन के अलावा ढाई सौ पुस्तकों से अधिक की लाइब्रेरी चाहिए । उन्होंने अपनी पुस्तैनी जमीन से आठ कट्ठा विद्यालय के लिये दान दे दिया। बडा सा भवन बनवाकर समृद्ध पुस्तकालय खोला और एक कमिटी बनाकर तीन शिक्षकों के साथ मध्य विद्यालय चलवाने लगे। विद्यालय का नाम रखा सहदेव साह मध्य विद्यालय बनकटवा ।
वर्ष 1960 में मिली स्कूल को सरकारी मान्यता
विद्यालय को20जनवरी 1960 को सरकार से मंजूरी मिली। दानदाता के परिजन व विद्यालय के पहले सेवानिवृत शिक्षक राजकेश्वर प्रसाद ने बताया कि जब विद्यालय खुला बाबुसाहब पाण्डेय प्रधानाध्यापक बने । कमिटी के देखरेख मे छात्रों की संख्या बढती गयी। कमिटी के अनुमोदन के बाद1968में विद्यालय को सरकार ने टेक़ओभर कर लिया । लेकिन तब भी विद्यालय का नाम नही बदला। इधर 1999 --2000 में विद्यालय का नाम राजकीय मध्य विद्यालय बनकटवा हो गया।
दर्जनों विद्यालयों का बदला नाम
ऐसा सिर्फ एक विद्यालय के साथ नही है। सभी ऐसे विद्यालय जो किसी प्राइवेट आदमी के नाम से था, उससे नाम हटा दिया गया। गोबरौरा पंचायत के पूर्व मुखिया संजय पाठक न बताया कि मेरे गांव के विद्यालय का नाम भी मुस्मात लालमति कुंअर प्राथमिक विद्यालय था, जो अब राजकीय मध्य विद्यालय मटियरिया हो गया है।
प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी उपेन्द्र पंडित ने बताया कि सभी विद्यालयों को पटना से डायस कोर्ड जब मिला तो उस कोर्ड के साथ ही दानदाताओं का नाम हटा दिया गया।
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