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    Sawan 2025: मुजफ्फरपुर में दूध-खील और गुड़हल की माला से माता विषहरी को प्रसन्न करने की अनूठी परंपरा

    Updated: Fri, 25 Jul 2025 03:27 PM (IST)

    नागपंचमी पर दूध-खील और गुड़हल फूल की माला तथा गेरूआ चढ़ा नागों की देवी विषहरी माता की पूजा की परंपरा ग्रामीण इलाकों में रही है। इस अवसर लगने वाला मेला भी लोकप्रिय है। इसमें जरूरत की सभी चीजें मिल जाती हैं। जिससे ग्रामीणों को सुविधा होती है। वहीं एक-दूसरे से मिलने का अवसर भी मिलता है।

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    इस अवसर पर श्रद्धालु पूजा कर सुख शांति की कामना करते हैं। फाइल फोटो

     मीरा सिंह, मुजफ्फरपुर। नागपंचमी पर दूध-खील और गुड़हल फूल की माला तथा गेरूआ (गुड़हल फूल, केले के थंब का रेशा व बांस की कोपल से बनी माला) चढ़ा नागों की देवी विषहरी माता की पूजा की परंपरा मुजफ्फरपुर के ग्रामीण इलाकों में रही है।

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    पकड़ी पेठिया पर विषहर मेला

    मान्यता है कि इससे घर में सुख-शांति बनी रहती है और परिवार के सदस्यों की सर्पों से रक्षा होती है। गोबरसही पकड़ी गांव में आज भी यह परंपरा पुराने स्वरूप में जारी है। गांव के पकड़ी पेठिया पर विषहर मेला लगता है।

    विषहरी देवी से मांगते मन्नत

    मेले में आसपास के गांवों से हजारों की संख्या में लोग आते हैं और करीब 100 साल पुराने पाकड़ के वृक्ष की जड़ में दूध-खील, गुड़हल फूल की माला और गेरूआ चढ़ा परिवार की सुख-शांति की कामना करते हैं। पूजा के दौरान लोग विषहरी देवी से मनौती भी मांगते हैं।

    100 वर्षों से चली आ रही परंपरा

    मन्नत पूरी होने पर अपनी श्रद्धा अनुसार चढ़ावा चढ़ाते हैं। यह परंपरा करीब 100 वर्षों से चली आ रही है। मेले में पारंपरिक मिठाई, खाने-पीने की चीजें, कपड़े, खिलौने आदि की दुकानें सज जाती हैं। गांव के पुरोहित पंडित द्वारका दुबे कहते हैं मेरी उम्र 72 साल है। जब से होश संभाला है तब से विषहर मेला देख रहे हैं। इस स्थान की काफी मान्यता है।

    नाग पूजा की परंपरा

    लोग जो भी मन्नत मांगते हैं पूरी होती है। कहते हैं इस पाकर के पेड़ के पास अक्सर नाग-नागिन देखे जाते थे। उसके बाद गांव के लोगों ने इसे नागदेवता का स्थान मान यहां नागपंचमी की पूजा शुरू कर दी। तब से यह परंपरा चली आ रही है। लोग परिवार और बच्चों के साथ जाते हैं। पूजा कर मेले का आनंद लेते हैं।

    मेले में मिलती सभी चीजें

    ग्रामीण सुशीला देवी (80) कहती हैं कि इस मेले की काफी महत्ता है। जब हम बच्चे थे तब से यह मेला लगता आ रहा है। पहले मेले का स्वरूप काफी भव्य था। दूर-दूर से लोग मेला देखने आते थे। जरूरत की तमाम चीजें कपड़ा, शृंगार का सामान, खाने-पीने की चीजों की खरीदारी करते थे।

    गोबर से लाइन खींचने की परंपरा

    नागपंचमी के दिन महिलाएं घर-आंगन को गाय के गोबर से लीपती हैं। चारों तरफ से घर की दीवारों पर गोबर से लाइन खींची जाती है। मुख्य द्वार पर नाग-नागिन की आकृति बनाकर उस पर पीला सरसों, दूब और सिंदूर लगाया जाता है।

    नाग देवता से सुख-शांति की कामना

    मान्यता है कि इससे घर में सांप प्रवेश नहीं करते और नाग तथा अन्य सर्पों से घर के सदस्य सुरक्षित रहते हैं। गांव का माली विषहर स्थान पर दूध-खील, गुड़हल फूल की माला तथा गेरूआ बेचता है। दस से बीस रुपये में एक छोटे से पात्र में दूध की बिक्री होती है। लोग वहीं से दूध खरीद कर पाकड़ की जड़ में चढ़ाते हैं और नाग देवता से सुख-शांति की कामना करते हैं।

    सामाजिक और सांसकृतिक विरासत का प्रतीक

    ग्रामीण उमानाथ प्रसाद (75) कहते हैं कि नागपंचमी के दिन आयोजित इस मेले का सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्व है। यह मेला हमारी सांस्कृति विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस दिन विषहरी देवी और नाग देवता की पूजा की जाती है।

    एक-दूसरे से मिलने जुलने का अवसर

    मेला के बहाने लोग परिवार और दोस्तों संग समूह में निकलते हैं। पूजा के साथ एकदूसरे से मिलना जुलना हो जाता है। मेला समुदाय की भावना को बढ़ावा देता है। मेले में विभिन्न प्रकार की दुकानें लगती हैं, जहां लोग खरीदारी करते हैं। इससे स्थानीय व्यापारियों और कारीगरों को भी लाभ होता है।