Muzaffarpur News: कांटी नगर परिषद सभापति के Driver ने खरीदी कृषि विभाग की करोड़ों की जमीन, पर्दे के पीछे कोई और तो नहीं
भूमि निबंधन में नियमों के उल्लंघन का मामला सामने आया है जिसमें दो लाख से अधिक का नकद लेनदेन किया गया। आयकर विभाग इसे काला धन मानकर जाच कर रहा है। कृषि विभाग की छह एकड़ जमीन भी कोर्ट के आदेश से रैयत के नाम हो गई जिसमें अधिकारियों की लापरवाही सामने आई है। विभाग ने ऊपरी अदालत में अपील भी नहीं की जिससे करोड़ों की जमीन निकल गई।

संवाद सहयोगी, कांटी (मुजफ्फरपुर)। कांटी में कृषि विभाग की करोड़ों रुपये की कृषि विभाग की सरकारी जमीन की बिक्री एवं दाखिल-खारिज में कई नई जानकारियां सामने आ रही हैं।
उक्त जमीन को खरीदने वाला नरसंडा गांव निवासी गौरव कुमार नगर परिषद के सभापति दिलीप कुमार का निजी चालक बताया जा रहा है। निजी चालक द्वारा करोड़ों की जमीन खरीदे जाने से इस खेल में बड़े नाम के शामिल होने की आशंका है।
विदित हो कि अंचल स्थित कृषि विभाग की 44 डिसमिल जमीन की रजिस्ट्री और दाखिल-खारिज करवाई गई है। फिलहाल उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने मामले की जांच का आदेश दिया है।
निजी गाड़ी को ही किराए पर लगा लिया
दिलचस्प बात यह है कि नगर परिषद का सभापति बनने के बाद दिलीप कुमार ने सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल नहीं किया। उसने अपनी निजी गाड़ी को किराए पर ले लिया।
इसके लिए नगर परिषद से हर महीने 33 हजार रुपये का किराया और ईंधन खर्च लिया जा रहा था। इसके अलावा, उन्होंने अपने निजी चालक गौरव कुमार को भी नगर परिषद के कागजों में काम पर रखवा लिया और उसे हर महीने करीब 15 हजार रुपये का वेतन दिलवाना शुरू कर दिया।
सभापति ने किया इनकार तो कार्यपालक पदाधिकारी ने कबूला
इस मामले पर सभापति दिलीप कुमार ने नगर परिषद से गौरव को किसी भी तरह का भुगतान करने से इनकार कर दिया। वहीं, नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी अजय कुमार ने यह स्वीकार किया कि गौरव को सभापति की गाड़ी चलाने के लिए वेतन दिया जा रहा था।
मालूम हो कि भाड़े पर लिए गए गाड़ी पर चालक रखने की जिम्मेदारी गाड़ी मालिक की होती है, जिसका वेतन मालिक की ओर से भुगतान किया जाता है। कार्यपालक पदाधिकारी की ओर से से निजी चालक को वेतन दिए जाने के बयान के बाद एक नया मामला ने तूल पकड़ लिया है।
जमीन की खरीद में दिए गए थे 18 लाख नकद
मुजफ्फरपुर : खतियान में कांटी अंचल स्थित कृषि विभाग (बीज गुणन प्रक्षेत्र) के नाम से दर्ज जमीन की खरीद-बिक्री में नियम के विरुद्ध ट्रांजेक्शन किया गया था। गौरव कुमार और दीपक कुमार के नाम से पिछले वर्ष पांच नवंबर को खरीदी गई 44 डिसमिल जमीन के लिए 42 लाख 30 हजार रुपये के दस्तावेज तैयार किए गए थे।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि करीब 24 लाख रुपये ही विक्रेता नवीन कुमार के खाते में भेजा। करीब 18 लाख रुपये नगद के रूप में दिखाया गया है। जबकि नोट बंदी के बाद सरकार ने नियम में बदलाव करते हुए किसी तरह की अचल संपत्ति की खरीद में दो लाख तक ही नगद ट्रांजेक्शन की अनुमति दी गई थी। इसके बावजूद 18 लाख की बड़ी राशि को नगद दिए जाने का जिक्र दस्तावेज में किया गया।
विदित हो कि पिछले दिनों आयकर विभाग की टीम ने दो लाख से अधिक नगद ट्रांजेक्शन वाले दस्तावेज की जांच की थी। इसमें बड़ी संख्या में नियम के विरुद्ध ट्रांजेक्शन वाले दस्तावेज मिले हैं। इन खरीद-बिक्री में काला धन का उपयोग किए जाने की आशंका है। इसे देखते हुए कांटी कसबा की इस जमीन की खरीद-बिक्री में काले धन के बिंदु पर जांच हो सकती है।
सोये रहे विभाग के अधिकारी
बीज गुणन प्रक्षेत्र के नाम से खतियान में 22 एकड़ 77 डिसमिल जमीन है। इनमें से रैयत हुई 44 डिसमिल जमीन का रैयत के नाम दाखिल-खारिज हाेने का मामला सामने आया है। दूसरी ओर विभाग की करीब छह एकड़ जमीन कोर्ट के आदेश से रैयत के नाम हो गई है।
लगभग वर्ष 2023 में ही सब जज पश्चिमी चतुर्थ के आदेश के बाद कृषि विभाग के हाथ से करोड़ों की जमीन निकल गई। इसके बावजूद विभाग के पदाधिकारी चुप्पी साधे रहे। यहां तक कि ऊपरी अदालत में अपील भी नहीं की। इसका लाभ दूसरे को मिल गया। यहां कृषि विभाग के तत्कालीन पदाधिकारियों की भूमिका शक के घेरे में है।
कोर्ट से लेकर अंचल तक मजबूत दावेदारी नहीं
बताया जा रहा है कि कोर्ट में सुनवाई के दौरान भी मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया। वादी ने कोर्ट में आठ दस्तावेज प्रस्तुत करते हुए इसपर साक्ष्य (प्रदर्श) अंकित करने की मांग की। यहां आश्चर्य यह रहा कि कृषि विभाग के पदाधिकारी और सरकारी अधिवक्ता ने साक्ष्य अंकित किए जाने पर कोई भी आपत्ति दर्ज नहीं की। यहीं से केस कमजोर होता चला गया।
रोक सूची में जमीन नहीं कराई दर्ज
सरकारी विभाग की जमीन को रोक सूची में दर्ज कराने की जिम्मेदारी विभाग की होती है। कृषि विभाग के पदाधिकारी की ओर से बिक्री की गई जमीन को रोक सूची में शामिल नहीं कराया गया था। इससे इसकी आसानी से बिक्री हो गई।
इसके अलावा केस जीतने के बाद विपक्षी ने जमीन की रसीद भी अपने नाम से कटवा ली। यही नहीं जमीन के दाखिल-खारिज के दौरान आपत्ति की सुनवाई में भी विभाग की ओर से संबंधित खाता-खेसरा का कोई दस्तावेज नहीं दिया। विभाग की ओर से मामले की अपील भी ऊपरी अदालत में कर दी जाती तो इसकी जमाबंदी नहीं होती, मगर ऐसा कोई प्रयास ही नहीं किया गया।
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