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    लोजपा के NDA में शामिल होकर चुनाव लड़ने पर एक से दो सीट पर फंसेगा पेच, RJD नेता को देनी होगी कुर्बानी!

    Updated: Wed, 20 Aug 2025 08:52 PM (IST)

    मुजफ्फरपुर में बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सुगबुगाहट तेज हो गई है। टिकट बंटवारे को लेकर राजनीतिक दलों में गहमागहमी है। कई नेताओं को टिकट कटने का डर सता रहा है तो कुछ को कुर्बानी देने की आशंका है। एनडीए और आईएनडीआईए दोनों गठबंधनों में सीटों के तालमेल को लेकर खींचतान मची है। ऐसे में नेताओं की धड़कनें तेज हो गई हैं।

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    लोजपा के NDA में शामिल होकर चुनाव लड़ने पर एक से दो सीट पर फंसेगा पेच

    प्रेम शंकर मिश्रा, मुजफ्फरपुर। बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2025) को लेकर निर्वाचन आयोग सितंबर में कभी भी डुगडुगी बजा सकता है। इससे पहले ही जिले के कई माननीय की धड़कनें पत्ता कटने या कुर्बानी देने की आशंका में बढ़ गई हैं। दूसरी ओर, टिकट की दावेदारी के लिए कई साल से मेहनत कर रहे नेताओं को भी पार्टी के लिए बलिदान होने का खतरा मंडरा रहा है।

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    विदित हो कि जिले की 11 विधानसभा सीटों पर वर्तमान में भाजपा के पांच, राजद के चार और कांग्रेस-जदयू के एक-एक विधायक हैं। सीट शेयरिंग में एनडीए से भाजपा को पांच, जदयू को चार और वीआईपी को दो सीटें मिली थीं। वहीं, आईएनडीआईए में राजद को नौ और कांग्रेस-माले को एक-एक सीट मिली थी।

    अब तक के राजनीतिक परिदृश्य में लोजपा अगर एनडीए में शामिल होकर चुनाव में उतरती है तो कम से कम दो सीटों पर पेच फंस सकता है। यह इसलिए कि वीआईपी के खाते की सीट में से एक पर भाजपा और एक पर राजद विधायक हैं। राजद विधायक वाली बोचहां सीट पर उपचुनाव में भाजपा ने उम्मीदवारी दी थी।

    अब अगर लोजपा जिले की कम से कम दो सीटों की दावेदारी करती है तो भाजपा के नेताओं को कम से कम एक सीट पर कुर्बानी देनी होगी। वहीं, एक सीट पर जदयू को भी दावा छोड़ना पड़ सकता है। ऐसे में टिकट की उम्मीद में पिछले कई वर्षों से मेहनत कर रहे पार्टी के नेता को त्याग करना पड़ सकता है। यही नहीं, अगर जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के दबाव में किसी सीट पर पेच फंसा तो एनडीए की दोनों बड़ी पार्टियों में से एक को दाता बनना होगा।

    वहीं, एनडीए के दलों में सीटों की अदला-बदली की भी चर्चा है। कांटी सीट पर भाजपा नेता एवं पूर्व मंत्री अजीत कुमार वर्षों से मेहनत कर रहे हैं। पिछले चुनाव में यह सीट जदयू के पास थी। पार्टी उम्मीदवार मो. जमाल तीसरे नंबर पर रहे थे। अब अगर जदयू यह सीट भाजपा के लिए छोड़ती है तो उसे कोई दूसरी चाहिए। ऐसे में मुजफ्फरपुर या कुढ़नी पर जदयू का दावा होगा। भाजपा मुजफ्फरपुर सीट छोड़ना नहीं चाहेगी।

    वहीं, कुढ़नी की सीटिंग सीट पर पंचायती राज मंत्री केदार प्रसाद गुप्ता काबिज हैं। कांटी सीट नहीं मिली तो अजीत कुमार को मनाना कठिन होगा। इससे एक सीट पर पेच फंसता दिख रहा है। इसके अलावा एक से दो सीटिंग सीट पर पत्ता कटने की आशंका को देखते हुए माननीय की धड़कनें तेज हो गई हैं। सभी अपने-अपने गुट के बड़े नेताओं को पकड़े हुए हैं, ताकि सीट बच जाए।

    आईएनडीआईए में सीटों को लेकर पेच तो नहीं फंस रहा, मगर दो से तीन माननीय की स्थिति बेहतर नहीं है। लोकसभा चुनाव में राजद उम्मीदवार के लिए भितरघात की रिपोर्ट पटना पहले ही जा चुकी है। साथ ही पूर्वी क्षेत्र के एक माननीय अभी से दूसरा दरवाजा खटखटा रहे। उन्हें अपना पत्ता कटने की संभावना दिख रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में 11 में से नौ सीटों पर राजद ने चुनाव लड़ा था।

    औराई से माले उम्मीदवार की बड़ी हार के कारण संभव है कि वह सीट भी राजद अपने ही पास रखे। ऐसे में वाम दल के लिए एक सीट निकालनी होगी। अगर ऐसा होता है तो वहां से टिकट के लिए मेहनत करने वाले राजद नेता को कुर्बानी देनी पड़ेगी। इसके अलावा कांग्रेस अपने लिए कुछ आसान सीट की मांग कर रही है। अगर उसका दबाव बढ़ा तो संभव है कि राजद को एक और सीट का त्याग करना पड़े।