“मां भीख मांगकर भी बच्चों को पाल लेती थी, पिता नहीं कर पाया…” मासूम की बात सुन अफसरों की आंखें नम
मुजफ्फरपुर में घर के आंगन में अनाथ हुए दो भाइयों की पीड़ा सुनकर अधिकारी भी भावुक हो गए। बड़े बेटे ने कहा कि पिता की मौत पर मां भीख मांगकर भी बच्चों को ...और पढ़ें

Bihar emotional news: अपनों को खोने का गम बच्चे को सता रहा। जागरण
डिजिटल डेस्क, मुजफ्फरपुर। Muzaffarpur news: घर के आंगन में रखी एक कुर्सी पर बैठे दो मासूम भाइयों की आंखें अपने अपनों को तलाश रही थीं। पिता, मां और बहनों को खो चुके इन बच्चों के चारों ओर अधिकारी और ग्रामीण खड़े थे, लेकिन माहौल में गहरा सन्नाटा पसरा था।
हर शख्स को झकझोर दिया
जब जिला कल्याण पदाधिकारी ने बड़े बेटे शिवम से पूछा कि क्या वह उनके साथ चलेगा, तो वह कुछ पल चुप रहा। फिर जो उसने कहा, उसने वहां मौजूद हर शख्स को झकझोर कर रख दिया।
मासूम शिवम ने कहा, “पिता की मौत होने पर मां अपने बच्चों को भीख मांगकर भी पाल लेती है, लेकिन पिता ऐसा नहीं कर पाता…”
इतनी बड़ी और गहरी बात एक बच्चे के मुंह से सुनकर अधिकारी से लेकर ग्रामीण तक दंग रह गए। कई लोगों की आंखें नम हो गईं।
सताती है मां की याद
शिवम ने बताया कि मां की याद में उसे रात को नींद नहीं आती थी। वह देर रात तक जागता रहता और मां को याद करते-करते कब नींद आ जाती, पता ही नहीं चलता।
मां की कमी
रात में पूरी नींद न होने के कारण वह दिन में सोता रहता था। बुआ रेखा देवी ने उसे गले से लगाकर ढांढस बंधाया, लेकिन उसके चेहरे पर मां की कमी साफ झलक रही थी।
परिवार की हालत बेहद खराब थी। पिता के पास एक स्मार्टफोन था, जिसे पुलिस ने जब्त कर लिया। घर की दीवार पर डिश टीवी का एंटीना लगा था, लेकिन घर में टीवी नहीं था।
बिजली का बिल पहले से माइनस बैलेंस में था, लेकिन 125 यूनिट मुफ्त बिजली योजना के कारण घर में किसी तरह रोशनी बनी हुई थी।
कबाड़ दुकान में काम करना नहीं था पसंद
बड़े बेटे ने बताया कि मां और पिता के बीच अक्सर झगड़े होते थे। पिता को यह पसंद नहीं था कि मां कबाड़ दुकान में काम करे, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण वह मजबूर थी।
हालात ने तोड़ दिया
बीमारी के इलाज में काफी पैसा खर्च हो चुका था और पिता पर गांव के कई लोगों का कर्ज भी था। पत्नी की मौत के बाद सारी जिम्मेदारियां पिता के कंधों पर आ गईं, लेकिन हालात ने उसे भी तोड़ दिया।
इस परिवार की कहानी सिर्फ गरीबी की नहीं, बल्कि सिस्टम और समाज से जुड़ी उन दरारों की भी है, जहां सबसे ज्यादा दर्द मासूमों को सहना पड़ता है।

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