मिथिला पेंटिंग की कमाई से शिक्षा हासिल कर रही मधुबनी की बेटियां
Mithila painting मिथिला पेंटिंग का प्रशिक्षण लेकर प्रतिमाह औसतन पांच हजार तक कर रही कमाई। इंटरनेट मीडिया एवं प्रशिक्षण केंद्रों के माध्यम से लड़कियों को मिल रहा काम और दाम। इसकी मदद से आगे बेहतर से बेहतर शिक्षा हासिल करने का है लक्ष्य।

मधुबनी, [राजीव रंजन झा]। मधुबनी की बेटियां रंग और कूची के सहारे अपने जीवन में रंग भर रही हैं। वे न सिर्फ मिथिला पेंटिंग में हुनरमंद हो रही, बल्कि अपनी उच्च शिक्षा के लिए धन भी जुटा रही हैं। शिक्षित होने के साथ ही बेटियां आत्मनिर्भर बन रही हैं। अपनी संस्कृति का प्रचार भी कर रही हैं। मिथिलांचल जैसे आर्थिक रूप से पिछले क्षेत्र में मिथिला पेंटिंग की पारंपरिक कला बालिका शिक्षा के क्षेत्र में एक नई उम्मीद की तरह खड़ी हुई है।
आर्थिक रूप से कमजोर बेटियों को मिला हुनर का सहारा
रहिका प्रखंड के पोखरौनी गांव की अंजली कुमारी मनोविज्ञान में स्नातक कर रही हैं। उनके पिता शिबु मंडल परिवार चलाने के लिए लुधियाना में नौकरी करते हैं। कोरोना की पहली लहर में आर्थिक परेशानी के कारण अंजलि की इंटर की पढ़ाई छूट गई थी, लेकिन उन्होंने मिथिला पेंटिंग का प्रशिक्षण लेकर खुद को आत्मनिर्भर बनाया। अब वह इतना कमा लेती हैं, जिससे पढ़ाई का खर्च निकल सके। उनकी चाह शिक्षक बनने की है। इसी गांव की स्वाति झा इतिहास में स्नातक कर रही है। पिता निर्भयकांत झा प्राइवेट फाइनेंस कंपनी में काम करते हैं। स्वाति भी आज मिथिला पेंटिंग की बदौलत पिछले दो सालों से पढ़ाई समेत अपने सारे खर्च खुद उठा रही है। उनकी चाह बैंकिंग सेवा में जाने की है। इसी तरह लोहरसारी चौक की गुड़िया, हरिपुरी बक्शी टोला की प्रिया, पोखरौनी की गीता, राजनगर की सुप्रिया, खजौली की प्रियंका समेत जिले में कई ऐसी बेटियां हैं जो मिथिला पेंटिंग की बदौलत अपनी पढ़ाई पूरी कर रही हैं। ये बेटियां आज मिथिला पेंटिंग से औसतन प्रतिमाह पांच हजार तक की कमाई कर लेती हैं।
इंटरनेट मीडिया के साथ कई संस्थाओं का मिलता प्रोत्साहन
जिले में मिथिला पेंटिंग में सात पद्मश्री विजेता हैं। इनके अलावा स्टेट अवार्डी कलाकारों की संख्या करीब ढ़ाई सौ से अधिक है। इनमें से कई कलाकार जिले के विभिन्न भागों में प्रशिक्षण केंद्र चला रहे हैं। इन केंद्रों से बेटियां ना केवल पारंपरिक कला का प्रशिक्षण हासिल कर रही हैं, बल्कि इन संस्थाओं के माध्यम से इन्हें काम भी मिल रहा है। रांटी में ग्राम विकास परिषद, स्क्वायड टैलेंट मीडिया, जगतपुर में सर्वश्री अल्का शिल्प उद्योग, जितवारपुर में स्टेट अवार्डी अमित झा का प्रशिक्षण केंद्र, रहिका में मिथिला कला संस्कार जैसे कई केंद्र हैं जहां से इन कलाकारों को आर्डर मुहैया कराया जा रहा है। इसके अलावा ये कलाकार इंटरनेट मीडिया पर भी एक्टिव हैं जो आज एक बड़ा प्लेटफार्म बन चुका है। इंडियन फोल्क आर्ट गैलरी जैसी वेव पेज पर भी कई कलाकारों ने आईडी बना रही है जहां से उन्हें बेहतर आर्डर मिलते रहते हैं।
जिले में मिथिला पेंटिंग का सालाना 10 करोड़ से अधिक का कारोबार
जिले में मिथिला पेंटिंग का सालाना 10 करोड़ से अधिक का कारोबार हो रहा है। कोरोना काल में भी मिथिला पेंटिंग ने इससे जुड़े कलाकारों के लिए विपत्ति में अवसर प्रदान किया है। पीएम नरेन्द्र मोदी भी इसकी सराहना कर चुके हैं। वर्तमान में मिथिला पेंटिंग में क्लॉथ पेंटिंग सबसे अधिक प्रचलित है। इसके तहत साड़ी, कुर्ता-कुर्ती, शॉल, पाग, दुपट्टा, रुमाल, चादर, बेडशीट आदि पर व्यापक स्तर पर पेंटिंग हो रही है। इसके अलावा अब घरेलु उत्पादों जैसे मिट्टी के बर्तन, ट्रे, कप, प्लेट, फूलदान आदि के अलावा स्टेशनरी सामानों पर भी मिथिला पेंटिंग का प्रचलन बढ़ा है। इससे कलाकारों के काम में वृद्धि हुई है।मिथिला पेंटिंग कलाकार पदम़श्री दुलारी देवी कहती हैं कि मिथिला पेंटिंग आज नारी सशक्तिकरण की मिसाल बन चुकी है। इस कला की बदौलत आज कई महिलाएं स्वाबलंबी बन चुकी हैं। नई पीढ़ी की बेटियां आज इस कला से अपना जीवन निखार रही है। यह काफी सुखद है। बेटियां अब किसी की मोहताज नहीं हैं। यह कला उनके सारे सपने पूरे कर सकती है।
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