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    जागरण विमर्श: सूदखोर नहीं, जरूरतमंदों की समृद्धि में सहायक बनें माइक्रो फाइनेंस कंपनियां

    By MEERA SINGHEdited By: Ajit kumar
    Updated: Tue, 23 Dec 2025 11:43 AM (IST)

    Micro Finance Loan: माइक्रो फाइनेंस कंपनियां गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए वित्तीय सहायता का महत्वपूर्ण साधन हैं। ये छोटे कारोबारियों, महिलाओं और स्वय ...और पढ़ें

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    जागरण विमर्श कार्यक्रम को आनलाइन संबोधित करतीं प्रो: सपना सुगंधा।

    मीरा सिंह, मुजफ्फरपुर।Financial Inclusion India:  बिना शर्त तत्काल ऋण उपलब्ध कराने वाली माइक्रो फाइनेंस कंपनियों द्वारा रिकवरी में बरती जा रही सख्ती और मनमानी, लोगों को मानिसक तनाव दे रही। गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने वाले लोगों को रोजगार से जोड़ने या लघु उद्योग शुरू करने के लिए आसानी से ऋण उपलब्ध कराने के उद्देश्य से ये बाजार में तो आईं, लेकिन जल्दी ही उनका दूसरा चेहरा भी सामने आया। 

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    समृद्धि में सहायक बनने की जगह अब ये सूदखोर नजर आने लगी हैं। लोगों पर ऋण चुकाने का दबाव इस कदर बढ़ता जा रहा कि आत्महत्या तक करने लगे हैं। पिछले दिनों मुजफ्फरपुर में एक व्यक्ति ने अपनी तीन संतान के साथ फांसी लगाकर जान दे दी थी। इसके पीछे ऋण और ब्याज चुकाने का ही दबाव था। 

    कई पहलुओं पर चर्चा 

    दैनिक जागरण, मुजफ्फरपुर में सोमवार को इस पर अकादमिक बैठक हुई। उत्तर बिहार में माइक्रो फाइनेंस कंपनियों का फैलता जाल : लाभ-हानि, कारण और निवारण विषय पर महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, पूर्वी चंपारण की प्रबंधन एवं मानव संसाधन विभागाध्यक्ष प्रो. सपना सुगंधा ने गहन चर्चा की और इसके कई पहलुओं पर चर्चा की। 

    बात आई कि उत्तर बिहार अति पिछड़ा और बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। यहां के ज्यादातर लोग कृषि पर निर्भर हैं। इनके जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए माइक्रो फाइनेंस कंपनियां सक्रिय हुईं, लेकिन इनका दबाव बढ़ने लगा। 

    माइक्रो फाइनेंस कंपनियों के लाभ 

    ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों की पहुंच नहीं है। अगर कहीं हैं, तो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग उनसे लेनदेन में सक्षम नहीं हैं। उनके पास न तो आय का वह जरिया है और न ही उस तरीके की बचत। माइक्रो फाइनेंस कंपनियां उस गैप को भरने का काम करती हैं। इन कंपनियों के तेजी से पनपने का सबसे बड़ा कारण ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी संस्थाओं का कमजोर होना भी है। 

    माइक्रो फाइनेंस कंपनियां लोगों को बिना पेपर लोन उपलब्ध कराती हैं, ताकि लोग डेयरी फार्म, टेलरिंग, खेती-किसानी जैसे छोटे-मोटे उद्योग शुरू कर अपना जीवन स्तर सुधार सकें। साथ ही, सामाजिक-आर्थिक अवधारणा पर काम करते हुए लोगों को छोटी-छोटी सेविंग भी सिखाई। 

    निचले तबके के लोग ऋण लेकर व्यवसाय स्थापित कर उन पैसों से अपनी जरूरतें पूरी करते हैं। साथ ही, सेविंग के जरिये भविष्य के लिए कुछ पैसे भी जोड़ते हैं। महिलाओं को लोन उपलब्ध करा उन्हें सशक्त बनाने में ये कंपनियां मददगार हैं। 

    अधिक ब्याज का दबाव  

    ये कंपनियां बिना किसी पेपर और शर्त तत्काल ऋण उपलब्ध कराती हैं, इसलिए इनका ब्याज दर बैंकों के मुकाबले काफी ज्यादा होता है। दूसरा ये व्यवसाय के लिए ऋण उपलब्ध कराती हैं। ऋण के पैसों से लोग आय कर रहे हैं तो उसका लाभ ब्याज के माध्यम से ये कंपनियां भी उठाती हैं। उत्तर बिहार के लोगों में वित्तीय साक्षरता कम है, इसलिए उन्हें पता ही नहीं होता कि ऋण के पैसे कहां लगाने हैं। 

    ऋण चुकान के लिए ऋण 

    जागरूकता के अभाव में वे इन पैसों से रोजगार शुरू करने की जगह अपनी जरूरतें पूरी कर लेते हैं। जब ऋण चुकाने की बारी आती है तो उसके दबाव में ये एक और ऋण ले लेते हैं। ऋण पर ऋण का दबाव लोगों के मानसिक तनाव का कारण बन जाता है। 

    • कंपनियां एजेंट के माध्यम से भी लोगों को ऋण मुहैया कराती हैं। एजेंटों पर भी टारगेट पूरा करने का दबाव रहता है। इसे पूरा करने के चक्कर में लोगों को लोन तो उपलब्ध करा देते हैं, लेकिन वसूली के लिए वे इस हद तक चले जाते कि लोगों पर इसका मानसिक असर पड़ता है।
    • वर्ष 2023 के डाटा के अनुसार, 88.25 लाख लोग उत्तर बिहार में माइक्रो फाइनेंस कंपनियों से लोन लेने वाले लाभुक हैं। 16,500 करोड़ ऋण धारक हैं, जबकि रिकवरी मात्र 332 करोड़ ही हो पाई। ऋण धारकों के मुकाबले रिकवरी कम होने के कारण इन कंपनियों ने दबाव की नीति पर काम करना शुरू किया और यही दबाव ऋण धारकों को मानसिक तनाव दे रहा है। 
    • 88.25 लाख लोग उत्तर बिहार में माइक्रो फाइनेंस कंपनियों से लोन के लाभार्थी
    • 1688 ग्राम पंचायतों में माइक्रो फाइनेंस कंपनियां कर रहीं काम
    • सामान्यत: लोगों में वित्तीय साक्षरता की कमी, उन्हें पता नहीं होता कि ऋण के पैसे कहां लगाएं
    • जागरूकता के अभाव में ऋण के पैसों से रोजगार शुरू करने की जगह अपनी जरूरतें करते पूरी 

    प्रशिक्षण से समस्या का समाधान 

    • माइक्रो फाइनेंस कंपनियां अपने कर्मचारियों और एजेंटों को प्रशिक्षण दें। समझाया जाए कि वे जिन्हें लोन दिलवा रहे, अगर वे लोग उन पैसों से अपना रोजगार शुरू करते हैं तो इसके लिए उन्हें रिवार्ड दिया जाएगा।
    • कंपनियां लोगों में वित्तीय साक्षरता लाएं। प्रशिक्षण के बाद प्रभाव भी देखें। फालोअप भी करें कि प्रशिक्षण से क्या बदलाव आया है।
    • शिकायत निवारण पोर्टल बनाएं। साथ ही, उसके समाधान के लिए समय-सीमा भी तय हो।
    • सामाजिक आडिटिंग हो कि लोगों को जो ऋण उपलब्ध कराए गए हैं, उन पैसों को उपयोग वे कहां कर रहे हैं। 

    क्रियान्वयन भी करें 

    माइक्रो फाइनेंस कंपनियां सिर्फ नियम ही ना बनाएं, उनका क्रियान्वयन भी करें। शिकायतों का निवारण हुआ या नहीं, समीक्षा करें। पालिसी में एस्टेक होल्डर की संयुक्त जिम्मेदारी तय करें। लोगों को भी ऋण लेने से पहले सोचना चाहिए कि वे लोन किस उद्देश्य से ले रहे हैं। साथ ही, कंपनी उन्हें लोन दे रही है तो उसका किस रूप में लाभ ले रहीं।