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    Martyrdom Day Special: 1857 में फांसी पर चढ़े वारिस अली को 2019 में मिला शहीद का दर्जा

    By Ajit KumarEdited By:
    Updated: Tue, 06 Jul 2021 11:48 AM (IST)

    छह जुलाई 1857 को दानापुर छावनी जेल में उन्हें फांसी दी गई थी। दशकों तक उनके बलिदान से देश अपरिचित रहा। 2017 में तिरहुत क्षेत्र से शहीद का दर्जा दिलाने के लिए जिले की संकल्प संस्था ने प्रयास शुरू किया। 2019 में वारिस अली को शहीद का दर्ज मिला।

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    बरूराज में जमादार के पद पर रहते हुए उनको मिली थी फांसी की सजा। फाइल फोटो

    मुजफ्फरपुर, [अमरेंद्र तिवारी]। अमर शहीद वारिस अली जिले के बरूराज क्षेत्र में एक जमादार थे। जून 1857 में उन्हें विद्रोहियों को समर्थन देते हुए पत्र लिखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। छह जुलाई 1857 को दानापुर छावनी जेल में उन्हें फांसी दी गई थी। दशकों तक उनके बलिदान से देश अपरिचित रहा। 2017 में तिरहुत क्षेत्र से शहीद का दर्जा दिलाने के लिए जिले की संकल्प संस्था ने प्रयास शुरू किया। इस पर 2019 में वारिस अली को शहीद का दर्ज मिला। 

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    माड़ीपुर निवासी और संकल्प संस्था के अध्यक्ष मो. जमील अख्तर ने कई दस्तावेजों के साथ सात जनवरी, 2017 को तत्कालीन डीएम धर्मेंद्र सिंह को पत्र भेजा। डीएम ने ऐतिहासिक तथ्यों की जांच कराई। जानकारी सही मिलने पर वारिस अली का नाम शहीदों की सूची में शामिल करने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग और केंद्र सरकार को अनुमोदन भेजा। इसके बाद उन्हें शहीद का दर्जा देने के लिए इंडियन काउंसिल फार हिस्टोरिकल रिसर्च ने काम किया। उसके सहयोग से संस्कृति मंत्रालय द्वारा 2019 में प्रकाशित डिक्शनरी आफ मार्टियर्स

    इंडियाज फ्रीडम स्ट्रगल (1857-1947) में वारिस का नाम शामिल किया गया। इसका खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विमोचन किया था। जमील कहते हैं कि पुरानी फाइल खोजने के दौरान उन्हें टैक्स की रसीद मिली। इसमें वारिस अली रोड लिखा था। उसके बाद उन्होंने वारिस अली के बारे में छानबीन शुरू की। इस पर पता चला कि वारिस ने बरूराज थाने में जमादार रहते हुए देश की आजादी में योगदान दिया था। उन्हें फांसी दी गई थी। इसकी चर्चा विनायक दामोदर सावरकर ने भी अपनी पुस्तक '1857 का स्वातंत्र्य समरÓ में भी की है।

    राज्य अभिलेखागार में वारिस के योगदान से जुड़े कई दस्तावेज

    एलएस कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर डा.अशोक आंशुमन ने अपनी पुस्तक 'गदर इन तिरहुतÓ में एक अध्याय वारिस अली पर लिखा है। वह कहते हैं कि राज्य अभिलेखागार में वारिस के योगदान से जुड़े कई दस्तावेज हैं। वह उत्तर बिहार के पहले शहीद हुए, जिन्हें फांसी दी गई थी।

    ये लगे थे आरोप

    जमील अख्तर बताते हंै कि वारिस पर पहला आरोप था कि वे अंग्रेज सरकार में जमादार रहते हुए निलहों के जुर्म की दास्तां की जानकारी गया के स्वतंत्रता सेनानी मौलवी अब्दुल करीम को पत्र से देते थे। यह जानकारी पटना के स्वतंत्रता सेनानी पीर अली खान के माध्यम से बहादुर शाह जफर तक जाती थी। दूसरा आरोप 14 मई 1855 को तांबा व पीतल के बर्तन की जगह कैदियों को मिट्टी का बर्तन देने के खिलाफ किसानों को जेल पर हमला करने के लिए भड़काने का लगा था। इन दोनों आरोपों में 23 जून 1857 को गिरफ्तारी हुई।  

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