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    समस्तीपुर जिले के मन्नीपुर सिद्धहस्त माई स्थान जहां हर मुराद होती है पूरी

    By Dharmendra Kumar SinghEdited By:
    Updated: Thu, 07 Oct 2021 05:08 PM (IST)

    Samastipur News हर दिन दर्शन को जुटते हैं हजारों श्रद्धालु पर्यटन स्थल के रूप में मिलने वाली है मान्यता 19वीं सदी में माता के पिंडी की हुई थी स्थापना नवरात्र में सप्तमी अष्टमी तथा नवमी में महिलाएं यहां खोईंछा भरने पहुंचती है।

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    समस्‍तीपुर ज‍िले के सिद्धहस्त मन्नीपुर माई स्थान मंदिर। जागरण

    समस्तीपुर, जासं। जिला मुख्यालय से महज दो-तीन किलोमीटर उत्तर-पूर्व में मन्नीपुर गांव में सदियों से स्थापित है सिद्धहस्त मां दुर्गा का मंदिर। जो माई स्थान के नाम से विख्यात है। यहां के बारे में मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति आज तक यहां से खाली हाथ नही लौटा है। सभी मन्नतें पूर्ण हुई है। नवरात्र के समय खासकर सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी को बड़ी संख्या में महिलाएं यहां खोईंछा भरने पहुंचती है । साथ ही नारियल फोड़कर चढाती है। मान्यता है कि इससे उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। इस मंदिर की ख्याति प्रदेश ही नही बल्कि अन्य प्रदेशों में भी है। यही वजह है कि श्रद्धालुओं की आस्था को देखकर पर्यटन विभाग ने इसे पर्यटन स्थल घोषित करने वाले सूची में रखा हुआ है। साथ ही जल्द ही यह पर्यटन स्थल के रुप में यह घोषित हो जाएगा।

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    लगभग डेढ सौ वर्ष पूर्व हुई थी माता की पिंडी रूप में स्थापना

    बताया जाता है कि 19वीं सदी में मन्नीपुर व इसके आसपास के कई गांवों मे हैजा महामारी फैल गई थी। जिसमें काफी संख्या में लोगों की जानें चली गई थी। चारों तरफ त्राहिमाम की स्थिति बनी हुई थी। उसी समय मन्नीपुर निवासी तपस्वी ब्रह्मचारी सद्पुरुष श्री श्री राम खेलावन दास को माता ने स्वप्न में दर्शन देते हुए पिंडी स्थापित कर पूजा अर्चना करने को कहा। स्व. दास सड़क किनारे पूर्वाभिमुख माता की पिंडी स्थापित कर पूजा अर्चना करने लगे। तत्पश्चात क्षेत्र की स्थिति में तेजी से सुधार होने लगा। स्थिति सामान्य हो गई तथा चारो तरफ खुशियां लौट गई।

    माता मंदिर की स्थापना

    मन्नीपुर से सटे दौलतपुर निवासी स्व. वासुदेव नारायण ने सन् 1857 ई. में राम खेलावन दास का शिष्यत्व ग्रहण कर माता के पिंडी का पूजा प्रारंभ किया । फिर सन् 1936 ई में एक श्रद्धालु सह एकमात्र मानसिक रूप से विक्षिप्त पुत्र की विधवा मां स्थानीय निवासी स्व. रामकिशुन सिंह की पत्नी स्व. मायावती देवी अपने मन की शांति एवं जीविकोपार्जन के लिए प्रतिदिन माता की पिंडी की पूजा करती व दिनभर वहां बैठती थी। उन्होंने अपना 1 कट्ठा 18 धुर जमीन दान करने की बात वासुदेव नारायण से करते हुए निशुल्क अपनी जमीन वासुदेव नारायण के नाम मंदिर बनवाने का वादा कराते हुए निबंधित कर दिया। वासुदेव नारायण ने अपने कोष से एक छोटा सा मंदिर का निर्माण कराकर काशी, अयोध्या से विद्वान ब्राह्मण पुरोहितों को आमंत्रित कर उक्त पिंडी को मंदिर में स्थापित कराया फिर कुछ माह पश्चात मूर्तिकारों से मिट्टी से बनी माता की प्रतिमूर्ति स्थापित की गई जो प्रत्येक मलमास उपरांत तीन वर्षो पर विसर्जित कर दी जाती थी।

    2013 में धार्मिक न्यास परिषद के हुआ हवाले

    मंदिर की बढ़ रही प्रसिद्धि तथा आय में बेतहाशा वृद्धि को देखकर एक पूर्णतया समर्पित मंदिर समिति की आवश्यकता पर स्व. वासुदेव के उत्तराधिकारियों ने बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद से लिखित निवेदन किया। न्यास परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष आचार्य किशोर कुणाल व जिले के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक वरुण कुमार सिन्हा के सहयोग से वर्ष 2013 के जून माह में यह प्रसिद्ध मंदिर धार्मिक न्यास बोर्ड पटना के निबंधन संख्या 4254 के तहत निबंधित हो गया। जिसके पदेन अध्यक्ष अंचलाधिकारी को बनाते हुए अवैवतनिक ग्यारह सदस्यों की नियुक्ति की गई। फिर 2016 में स्थानीय प्रह्लाद सिंह के भूमि दान करने पर दो तल्ला भवन बनाकर मंदिर में माता की मूर्ति प्रतिस्थापित की गई तथा परिसर में 51 फीट का पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित की गई। साथ ही नवग्रह मूर्ति की भी स्थापना की जा रही है।

    कहते हैं पुजारी

    मुख्य पुजारी विपिन कुमार झा कहते है कि यह मंदिर मनोकामना पूरी करने के लिए चर्चित है। यहां आने वालों की सभी श्रद्धालुओं की मुरादें पूरी होती है। यहां माथा टेकने मात्र से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं तथा असीम शांति मिलती है। आम दिनों में भी यहां सैकड़ों श्रद्धालुओं की भी भीड़ जुटती है।