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    बेतिया में अग्रेजों के जमाने में खुला हुआ है मॉल, राजा ने नाम रखा मीना बाजार

    By Ajit KumarEdited By:
    Updated: Thu, 19 Aug 2021 08:47 AM (IST)

    बेतिया महाराज ने करीब 325 वर्ष पहले ही लोगों की जरूरत को महसूस करते हुए मॉल कल्चर को बढ़ावा दिया था। इसके लिए शहर के दक्षिणी छोर पर मीना बाजार की स्थापना की थी। यहां जरूरत की सारे सामान की बिक्री के लिए अलग-अलग शेड़ बने हैं।

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    आधुनिक मॉल से भी संपन्न है बेतिया का मीना बाजार। फोटो- जागरण

    पश्चिम चंपारण, जासं। बाजारीकरण के दौर में मॉल संस्कृति हाल में तेजी से बढ़ी है। मॉल में एक ही जगह लोगों को जरूरत के तकरीबन सारे सामान मिल जाते हैं। लेकिन बेतिया महाराज ने करीब 325 वर्ष पहले ही लोगों की जरूरत को महसूस करते हुए मॉल कल्चर को बढ़ावा दिया था। इसके लिए शहर के दक्षिणी छोर पर मीना बाजार की स्थापना की थी। यहां जरूरत की सारे सामान की बिक्री के लिए अलग-अलग शेड़ बने हैं। तभी तो लोगों में किदवंती थी कि मीना बाजार में एक ही छत के नीचे सुई से लेकर जहाज तक के सामान की बिक्री होती थी। बेतिया महाराज के समय इस बाजार की ख्याति नेपाल सहित कई राज्यों में थी। वहां के व्यापारी भी आते थे। कई समान दूसरे राज्य से लाकर बेचा जाता था। अभी इस बाजार में एक ही छत के नीचे करीब 3000 दुकानें हैं। आज भी जिले के किसी भी घर में शादी ब्याह या महत्वपूर्ण उत्सव होता है तो खरीदारी के लिए जेहन में सबसे पहले मीना बाजार की ही याद आती है। 

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    महाराज दिलीप सिंह ने की थी बाजार की स्थापना

    बेतिया राजगुरु परिवार के प्रमोद व्यास बताते हैं कि महाराज दिलीप सिंह ( वर्ष 1694 से 1715) ने शहर के दक्षिणी हिस्से में इस बाजार की शुरुआत कराई थी। महाराज के जो भी अतिथि आते थे, बाजार में भ्रमण और खरीदारी करने जरूर जाते थे। बेतिया राज का अस्तित्व समाप्त होने के बाद ब्रिटिश काल में भी बाजार की रौनक बरकरार रही। कई राज्यों के व्यापारी यहां सामान की खरीद बिक्री करने आते थे। पेयजल के लिए बाजार के बीच कुआं था, जो आज भी है। सफाई के लिए महाराज की ओर से कर्मचारियों की नियुक्ति रहती थी। रोशनी के लिए जगह-जगह दीप जलाए जाते थे। बाजार में प्रवेश के लिए चारों दिशाओं में द्वार बनाए गए थे। जल निकासी का उचित प्रबंध था। इनमें से कई निशानियां आज भी मौजूद है।

    व्यापार का केंद्र है मीना बाजार

    शहर का मीना बाजार आज भी जिले के व्यापार का एक बड़ा केंद्र माना जाता है। आरएलएसवाई कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ ओम प्रकाश यादव का कहना है कि यह बाजार आज के किसी भी मॉल से ज्यादा संपन्न है। फर्क सिर्फ इतना है कि आज के मॉल बहुमंजिला, रोशनी से जगमग तथा आकर्षक हैं। जबकि मीना बाजार में इसकी कमी है। यह कपड़े, जूते-चप्पल, वस्त्र, बर्तन, सोने-चांदी, मीट-मछली, पुस्तकें, दवा, जड़ी-बूटी, बांस की सामग्री, किसानों के लिए हसुआ-खुरपी, खाद्य पदार्थ, अनाज, मंडी, साग-सब्जी, फर्नीचर, मवेशियों के उपयोग व पूजा-पाठ की सामग्री की बिक्री के लिए अलग-अलग शेड बनाए गए हैं।