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    मधुबनी: मिथिला की परंपरा झिझिया नृत्य को लगी उपेक्षा की नजर

    By Dharmendra Kumar SinghEdited By:
    Updated: Sun, 17 Apr 2022 05:14 PM (IST)

    Madhubani news मधुबनी ज‍िले में बुरी नजर से बचाने के लिए होने वाले इस लोकनृत्य का सिमट रहा दायरा। मिथिलांचल में कभी हर घर की लड़कियां इस कला को सीखती थीं अब कम ही बचीं। संकट में है लोक कला।

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    मधुबनी ज‍िले में लोकनृत्य झिझिया प्रस्तुत करतीं छात्राएं।

    मधुबनी {कपिलेश्वर साह}। बुरी नजर से बचाव को किए जाने वाले मिथिलांचल के लोकनृत्य झिझिया को उपेक्षा की नजर लग गई है। कभी हर घर में इसकी कलाकार होती थीं। अब तो इनकी संख्या सिमट गई है। अच्छी बात यह है कि इस कला को बचाने के लिए काम हो रहा है। निशुल्क प्रशिक्षण के साथ प्रोत्साहन दिया जा रहा है। नवरात्र, सरस्वती पूजा, जन्माष्टमी, रामनवमी सहित अन्य उत्सवों में झिझिया नृत्य की प्रस्तुति मिथिला की परंपरा रही है। इसमें पांच से नौ लड़कियां या महिलाएं समूह में नृत्य करती हैं। इनके सिर पर सैकड़ों छिद्र वाला मिट्टी का घड़ा होता है, जिसमें जलता हुआ दीपक रहता है।

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    कलाकार गोल घेरा बनाती हैं। बीच में मुख्य नर्तकी होती है। झिझिया करती ये कलाकार अपने आराध्य से समाज में व्याप्त कलुषित मानसिकता की शिकायत करती हैं। गीत के माध्यम से समाज में व्याप्त कुविचारों को अलग-अलग नाम देकर उसे समाप्त करने की प्रार्थना करती हैं। झिझिया के दौरान पुरुष हारमोनियम, ढोलक, खजुरी, बांसुरी व शहनाई का वादन करते हैं। झिझिया के दौरान युवतियां 'तोहरे भरोसे ब्रह्म बाबा झिझरी बनैलिये हो' गाती हैं तो मन झूम उठता है। नृत्य के दौरान वे बुरी नजर से बचाव के लिए इष्टदेव ब्रह्म बाबा और माता भगवती से प्रार्थना करती हैं।

    सरकारी पहल से मिलेगी पहचान

    राढ़ी, जाले व सिमरी सहित जिले में सौ से अधिक कलाकार हैं। वे सरकारी तथा गैर सरकारी कार्यक्रमों में प्रस्तुति देती हैं। इससे सालाना 50 हजार तक की आमदनी हो जाती है। झिझिया सहित अन्य लोक नृत्य का प्रशिक्षण देने वाली आरती कुमारी कहती हैं कि भरतनाट्य, कथक जैसे नृत्य को जो पहचान मिली, वह झिझिया को नहीं मिल सकी। इसके लिए राज्य सरकार की ओर से पहल करने की जरूरत है। इसमें कलाकार करियर बनाएं, इसके लिए काम होना चाहिए।

    चकदह की लोकरंग संस्था 1998 से झिझिया नृत्य का लड़कियों को तीन से छह माह का निशुल्क प्रशिक्षण देती है। इसके अध्यक्ष जटाधर पासवान कहते हैं कि इस नृत्य को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। प्रतिवर्ष उनकी संस्था के माध्यम से देशभर में विभिन्न जगहों पर इसकी प्रस्तुति कराई जाती है। सरकार से जरूरी मदद मिलती है। शहर के जागरण संगीत कला महाविद्यालय की प्राचार्य मंजरी मिश्रा का कहना है कि झिझिया सहित अन्य लोक नृत्य का प्रशिक्षण तो दिया जाता है, लेकिन कम ही लड़कियां आती हैं।