सुहाग की दीर्घायु को नवविवाहिताओं का मधुर पर्व मधुश्रावणी कल से
श्रावण कृष्ण पक्ष की पंचमी से शुरू होने वाली मधुश्रावणी नवविवाहिताओं के लिए खास त्योहार है।
मुजफ्फरपुर। श्रावण कृष्ण पक्ष की पंचमी से शुरू होने वाली मधुश्रावणी नवविवाहिताओं के लिए खास त्योहार है। यह मूल रूप से मिथिलांचल में मनाया जाता है, मगर दिन-प्रतिदिन इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। इस बार यह दो अगस्त से शुरू हो रहा है। बाबा गरीबनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी पं. विनय पाठक बताते हैं कि यह त्योहार अपने नाम के अनुरूप ही मधु-रस से परिपूर्ण है। इसमें पति-पत्नी साथ होकर नाग-नागिन, शिव-गौरी आदि की पूजा अर्चना करते हैं। पति कितना भी व्यस्त क्यों न हो, छुट्टी लेकर ससुराल आने का प्रयास अवश्य करता है। इस बीच हंसी-मजाक का भी दौर खूब चलता है।
दीर्घायु होता है सुहाग
कहा जाता है कि इस पर्व में जो पत्नी अपने पति के साथ गौरी-विषहर की आराधना करती है, उसका सुहाग दीर्घायु होता है। हरिसभा चौक स्थित राधाकृष्ण मंदिर के पुजारी पं. रवि झा बताते हैं कि नवविवाहिताओं के घर मनाए जाने वाले इस पर्व में नाग देवता की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मिथिला क्षेत्र में नवविवाहिता के घर विवाह के पहले साल मधुश्रावणी मनाया जाता है। इसमें जहां एक ओर नवविवाहिताएं अपनी ससुराल से आए सामान का उपयोग करती हैं, वहीं व्रत के दौरान कथा के माध्यम से उन्हें सफल दाम्पत्य जीवन की शिक्षा भी दी जाती है।
गाए जाते पारंपरिक गीत
ज्योतिषविद् राजेश उर्फ मुन्ना शास्त्री बताते हैं कि मधुश्रावणी में नवविवाहिता शाम के वक्त अपनी सखी-सहेलियों संग बाग में जाकर फूल-पत्तियां तोड़ती हैं। अगले दिन सुबह में उसी फूल-पत्तियों से पूजा-अर्चना करती हैं। कोहबर में विषहर बनाया जाता है। गौरी तैयार की जाती है। इस दौरान पारंपरिक लोकगीत भी गाए जाते हैं। महिला पुरोहित नवदंपती को शिव-पार्वती के प्रसंग की कथा सुनाकर उन्हें दाम्पत्य जीवन की जानकारी देती हैं। साथ ही, कई आध्यात्मिक जानकारियां भी दी जाती हैं। अंतिम दिन टेमी दागने तथा सुहाग मथने की परंपरा के साथ विधिवत इस लोकपर्व का समापन होता है।
इस कारण अनोखा यह पर्व
-ससुराल पक्ष से आए अन्न एवं वस्त्र का होता है प्रयोग।
-महिला पंडित संपन्न करवाती हैं पूजा।
-लोक कथाओं के माध्यम से दिया जाता है संदेश।
-व्यस्तता के बाद भी इसमें शामिल होते पति।
-अंतिम दिन टेमी दागने और सिंदूरदान की है परंपरा। अखंड सुहाग के लिए रखा मंगलागौरी व्रत
सावन मास के पहले मंगलवार को नवविवाहिताओं ने मंगला गौरी व्रत रखते हुए गौरी पूजन किया। पति की दीर्घायु व अचल सुहाग की कामना की। मान्यता है कि इस व्रत को करने से पति से कभी वियोग नहीं होता तथा दोनों को दीर्घायु व सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। बाबा गरीबनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी पं.विनय पाठक व रामदयालु स्थित मां मनोकामना देवी मंदिर के पुजारी पं.रमेश मिश्र ने बताया कि इस व्रत के प्रभाव से पति-पत्नी दोनों का प्रेम अक्षय, अटल व चिर स्थायी बना रहता है। व्रत में सावन मंगलवार से शुरू कर सोलह मंगलवार को गौरी पूजन किया जाता है। इसी कारण इसे मंगलागौरी व्रत कहते हैं। यह व्रत विवाह के बाद नवविवाहिता द्वारा पांच वर्षो तक करना शुभ फलदायक माना गया है। विवाह के बाद पहले सावन में पिता के घर (पीहर) में तथा चार वर्ष पति के घर (ससुराल) में व्रत करने का विधान है। व्रत करते हुए पांचवें साल इसका उद्यापन करते हैं। इसमें गौरी पूजा के बाद श्रेष्ठ ब्राह्माण द्वारा हवन करवाना चाहिए। फिर सोलह ब्राह्माणों को सपत्नीक भोजन कराकर सुहाग पिटारी व दक्षिणा दी जाती है। अंत में अपनी सास को सोलह लड्डू देकर उनके चरण स्पर्श कर अक्षय सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।