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    मधुबनी के भवानीपुर में भगवान शिव ने महाकवि विद्यापति को अपनी जटा से पिलाया था गंगाजल

    By Dharmendra Kumar SinghEdited By:
    Updated: Tue, 01 Mar 2022 03:45 PM (IST)

    Mahashivratri 2022 उगना महादेव के नाम से प्रसिद्ध हैं भवानीपुर स्थित उग्रनाथ महादेव यहां भगवान शिव ने उगना रुप में महाकवि विद्यापति के घर की थी चाकरी। मधुबनी ज‍िले में महाश‍िवरात्र‍ि पर श‍िवालयों में उमड़ी भक्‍तों की भीड़ ।

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    भवानीपुर स्थित उग्रनाथ महादेव स्थान में महाशिवरात्री पर उमड़ी भीड़। फोटो-जागरण

    मधुबनी, जासं। उगना अर्थात उग्रनाथ महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध शिवालय उत्तर बिहार के मधुबनी जिले के भवानीपुर गांव में स्थित है। किवदंतियों के अनुसार, यहां भगवान शिव ने मैथिली के महाकवि विद्यापति की चाकरी की थी। सन 1352 में जन्मे महाकवि विद्यापति भारतीय साहित्य की भक्ति परंपरा के प्रमुख स्तंभों में से एक और मैथिली के सर्वोपरि कवि के रूप में जाने जाते हैं। महाकवि विद्यापति भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। उन्होंने शिवभक्ति पर अनेक गीतों की रचना की। कहा जाता है कि विद्यापति की भक्ति व रचनाओं से प्रसन्न होकर भगवान शिव एक दिन वेश बदल कर उनके घर आ गए। शिवजी ने उन्हें अपना नाम उगना बताया। शिव महाकवि विद्यापति के घर सिर्फ दो वक्त के भोजन पर नौकरी करने के लिए तैयार हो गए।

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    एक दिन उगना विद्यापति के साथ राजा के दरबार में जा रहे थे। तेज गर्मी से विद्यापति का गला सूखने लगा, लेकिन आसपास पानी नहीं था। विद्यापति ने उगना से कहा कि कहीं से जल का प्रबंध करो। भगवान शिव ने कुछ दूर जाकर अपनी जटा खोल कर एक लोटा गंगाजल भर लाया। विद्यापति ने जब जल पिया तो उन्हें गंगाजल का स्वाद आयाद्ध विद्यापति को संदेह हो गया कि उगना स्वयं भगवान शिव हैं। जब विद्यापति ने उगना को शिव कह कर उनके चरण पकड़ लिए, तब उगना को अपने वास्तविक स्वरूप में आना पड़ा।

    उगना महादेव मंदिर के गर्भगृह में जाने के लिए छह सीढि़यां उतरनी पड़ती हैं। ठीक उसी तरह जैसे उज्जैन के महाकाल मंदिर में शिवलिंग तक पहुंचने के लिए छह सीढि़यां उतरनी पड़ती हैं। उगना महादेव के बारे में कहा जाता है कि यह स्वयं प्रकट हुआ यानी स्वयंभू शिवलिंग है। यहां शिवलिंग आधार तल से पांच फुट नीचे है। माघ कृष्ण पक्ष में आने वाला नर्क निवारण चतुर्दशी मंदिर का प्रमुख त्योहार है।

    वर्तमान उगना महादेव मंदिर 1932 में निर्मित बताया जाता है। कहा जाता है कि 1934 के भूकंप में मंदिर का बाल-बांका नहीं हुआ। अब मंदिर का परिसर काफी भव्य बन गया है। मुख्य मंदिर के अलावा परिसर में यज्ञशाला और संस्कारशाला बनाई गई है। मंदिर के सामने सुंदर सरोवर है। पास में ही एक कुआं है जिसे चन्द्रकूप कहा जाता है। इस कुएं के बारे में कहा जाता है कि शिवजी ने यहीं से पानी निकाला था। काफी श्रद्धालु इसका पानी पीने के लिए यहां आते हैं।