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    160 देशों की लड़कियों को पछाड़ कराटे चैंपियन बनी थीं सीतामढ़ी की ललिता, आज गुमनामी में जीवन

    By Murari KumarEdited By:
    Updated: Tue, 08 Sep 2020 05:02 PM (IST)

    सीतामढ़ी जिले की ललिता ने 2004 में दिल्ली में आयोजित कराटे चैंपियनशिप में सफलता का परचम लहराकर ख्याति पाई थी। यूनिसेफ ने इन्हें अपनी पत्रिका में पहले ...और पढ़ें

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    160 देशों की लड़कियों को पछाड़ कराटे चैंपियन बनी थीं सीतामढ़ी की ललिता, आज गुमनामी में जीवन

    सीतामढ़ी, [मुकेश कुमार 'अमन']।  'कराटे गर्ल ऑफ बिहार' आज गुमनानी में जी रही हैं। बिहार का नाम पूरी दुनिया में रोशन करने वाली  ललिता को आज सब भूल गए हैं। सीतामढ़ी जिले के सोनबरसा स्थित लक्ष्मीनिया के खोपराहा टोला निवासी महादलित भदई मांझी व स्वरूपिया देवी की यह बेटी  कभी 160 देशों की लड़कियों को पछाड़ कर बिहार की यह बेटी कराटा चैंपियन बनीं थीं। यूनिसेफ ने अपनी पत्रिका में पहले पन्ने पर जगह दी थी।  अंतरराष्ट्रीय फलक पर छाने के साथ ही तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और बाद में नीतीश कुमार ने इन्हें सम्मानित किया था। लेकिन आज इनकी कठिन परिस्थितियों की सुध लेने वाला कोई नहीं है।

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    ललिता को पहचानने से मुकर जाते अफसर 

    ललिता बताती हैं कि वह जिलाधिकारी से मिलकर अपनी समस्याएं बताना चाहती हैं, लेकिन जिलाधिकारी अभिलाषा कुमारी शर्मा से इनकी मुलाकात नहीं हो पा रही। डीएम के बॉडीगार्ड इनको मिलने नहींं देते। वहां के अधिकारी इनको पहचानने से इन्कार कर जाते हैं। परिचय देने पर अधिकारी कहते हैं कि अपनी बात लिखकर दो, डीएम मैडम तक पहुंचा देते हैं। 

    कराटे का प्रशिक्षण देने की तमन्ना

    ललिता फिलहाल सोनबरसा के खाप मध्य विद्यालय में आट्र्स शिक्षक के पद पर हैं। ललिता इस काम के साथ ही लड़कियों को कराटे का प्रशिक्षण देना चाहती हैं। कहती हैं कि 12 हजार की नौकरी में घर नहीं चलता। सरकार ने सोनबरसा में तीन डिसमिल जमीन देने की घोषणा की थी। ब्लॉक ऑफिस का चक्कर लगाने के बाद थक-हारकर छोड़ दिया। इनका कहना है कि सरकार अगर मौका दे तो वे महादलित लड़कियों को कराटे सिखाकर चैंपियन बनाना चाहती हैं। 

    संघर्षशील रहा बचपन

    ललिता बताती हैं कि वह अपने हौसले की बदौलत ऊंची उड़ान चाहती थींं। इसी चाह में वर्ष 2004 में दिल्ली में आयोजित चैंपियनशिप में 160 देशों की लड़कियां उनके आगे धराशायी हो गईं। उनकी किक के आगे किसी की नहीं चली और उन्होंने उस कराटे चैंपियनशिप में पहला स्थान पाया। हालांकि ललिता का बचपन सुखद नहीं रहा। मां-बाप सुबह-सुबह घास काटने भेज देते थे। लेकिन, वह घास की टोकरी खेत में छोड़ जगजगी केंद्र पर पढऩे चली जाया करतीं थीं। मां-बाप को जब सूचना मिलने लगी तो उन्होंने घर से निकलने पर ही पाबंदी लगा दी। आगे चलकर ब्रजेश कुमार मांझी उर्फ कमलेश से वे वर्ष 2010 परिणय सूत्र में बंधीं।

    कन्हौली जगजगी केंद्र ने आगे बढ़ाया 

    कन्हौली जगजगी केंद्र की सहेली शिक्षिका ने ललिता के माता-पिता को समझा कर पढ़ाई के लिए राजी कराया था। पहले सोनबरसा फिर मुजफ्फरपुर महिला सामाख्या में इन्होंने पढ़ाई की। इसी दौरान कराटे का प्रशिक्षण लिया। महिला सामाख्या की संयोजक संगीता दत्ता के सहयोग से कई जिलों में बच्चियों को कराटे का प्रशिक्षण दिया। यूनिसेफ पदाधिकारी अगस्तीन उन्हेंं दिल्ली ले गए। 160 देशों की लड़कियों के बीच कराटे प्रतियोगिता में ललिता एक्शन में पहले स्थान पर रहीं। यूनिसेफ ने 'दुनिया के बच्चों की स्थिति' पत्रिका में पहले पन्ने पर इन्हें जगह दी थी।