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    माता जानकी की धरती सीतामढ़ी से जैन धर्म का संदेश

    By Ajit KumarEdited By:
    Updated: Thu, 29 Nov 2018 11:02 AM (IST)

    मल्लिनाथ और नमिनाथ के भव्य मंदिर का हो रहा निर्माण, सीतामढ़ी की धरती पर अवतरित हुए थे जैन धर्म के दोनों तीर्थंकर। ...और पढ़ें

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    माता जानकी की धरती सीतामढ़ी से जैन धर्म का संदेश

    सीतामढ़ी, [रवि भूषण सिन्हा]। सीतामढ़ी केवल माता जानकी की जन्मस्थली ही नहीं, सर्वधर्म समभाव की धरती है। चाहें सनातन धर्म हो या फिर जैन धर्म, यहां फलाफूला। अब यहां से जैन धर्म का संदेश जन-जन तक पहुंचाने की तैयारी है। इसके तहत सीतामढ़ी-डुमरा पथ में शंकर चौक के पास करोड़ों खर्च कर भव्य जैन मंदिर का निर्माण हो रहा है। कुछ माह में मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा। इस मंदिर में 13 फरवरी 2015 को जैन धर्म के 19वें तीर्थंकर मल्लिनाथ और 21वें तीर्थंकर नमिनाथ की प्रतिमा स्थापित की गई थी।

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        इस अवसर पर उनके नाम पर डाक विभाग ने डाक टिकट भी जारी किया था। मंदिर का निर्माण जैन श्वेतांबर कल्याणक तीर्थ न्यास दिल्ली के ललित कुमार नाहटा और उनकी टीम करा रही है। इसमें वास्तु व स्थापत्य कला का बेजोड़ संगम दिख रहा है। वहीं बेशकीमती पत्थरों से मंदिर को संवारा जा रहा है।

        पूर्व वार्ड पार्षद शिव कुमार अग्रवाल व पंकज कुमार अग्रवाल की देखरेख में मंदिर का निर्माण अंतिम चरण में है। शिव कुमार के अनुसार यह मंदिर अंतरराष्ट्रीय धार्मिक और पर्यटक स्थल के रूप में बनेगा। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए हॉल और मंदिर के कर्मियों के रहने के लिए आवास है। गार्डेन आदि का भी निर्माण होगा। 

    सीतामढ़ी में अवतरित हुए थे 19वें और 21वें तीर्थंकर

    जैन धर्म में जैन परंपरा के तहत धर्म को प्ररूपित करने वाले महामानव को तीर्थंकर कहा जाता है। तीर्थंकर का अर्थ है- जो तारे या तारने वाला। इनको अरिहंत भी कहा जाता है। जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं। इनमें महावीर आखिरी थे। 19वें तीर्थंकर मल्लिनाथ व 21वें तीर्थंकर नमिनाथ का अवतरण सीतामढ़ी की धरती पर हुआ था। मल्लिनाथ के पिता का नाम कुंभराज और माता का नाम प्रभावती (रक्षिता) था। वहीं, नमिनाथ के पिता का नाम विजय और माता का नाम सुभद्रा (सुभ्रदा-वप्र) था। वे मिथिला के राजा थे।

    एक दशक पूर्व शुरू हुई थी पहल

    जैन मंदिर के निर्माण की पहल एक दशक पूर्व हुई थी। तकरीबन डेढ़ सौ साल पहले मिथिला के जैन स्थल गुमनामी में चले गए थे। जैन श्वेताम्बर कल्याणक तीर्थ न्यास दिल्ली के ललित कुमार नाहटा ने वर्ष 1993 से जैन तीर्थस्थलों की खोज शुरू की। इस दौरान उन्होंने पाया कि इसका केंद्र जनकपुर नेपाल में है। फिर उन्होंने अपनी जारी खोज में वर्ष 2006 में पाया कि इसका केंद्र सीतामढ़ी है।

       इसके ठोस प्रमाण मिलने के बाद उन्होंने दोनों तीर्थंकर की स्थली से विश्व को रूबरू करने की ठानी। उन्होंने डुमरा शंकर चौक निवासी शिव कुमार अग्रवाल से संपर्क किया। उनके सहयोग से ललित कुमार नाहटा ने अपनी टीम के साथ सीतामढ़ी पहुंच भूमि का चयन किया। रुक्मिनी देवी ने भूमि दान दी। चार साल पूर्व मंदिर का निर्माण शुरू हुआ।