शेख गुलाब: इन्होंने चंपारण सत्याग्रह से पहले छेड़ा था अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन
चंपारण में अंग्रेजों के खिलाफ गांधीजी के नेतृत्व में चंपारण सत्याग्रह हुआ था। लेकिन, इसके 10 साल पहले भी शेख गुलाब के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ बड़ा आंदोलन हुआ था।
पश्चिम चंपारण [जेएनएन]। जिस चंपारण सत्याग्रह ने अंग्रेजों की नींव हिला दी थी, गांधीजी को महात्मा का खिताब दिलाया था, उसकी बुनियाद चंपारण में पड़ी थी। जबरन नील की खेती के लिए तीनकठिया व पांचकठिया व्यवस्था से त्रस्त किसानों को चंपारण सत्याग्रह से करीब 10 साल पहले शेख गुलाब ने एकजुट किया था। उनके नेतृत्व में आंदोलन इतना हिंसक हुआ कि किसानों ने हरदिया कोठी के प्रबंधक ब्रूमफील्ड की जान ले ली।
इतिहासकार अशरफ कादरी की पुस्तक एवं राजकुमार शुक्ल की डायरी के अनुसार, यहां की रैयतों से दो प्रकार के टैक्स के अलावा कुल 58 प्रकार के अन्य कर लिए जाते थे। निलहों ने 1900 ई. में तीनकठिया प्रणाली लागू की। इसके तहत एक बीघा जमीन में तीन कट्ठा खेत में नील लगाना किसानों के लिए अनिवार्य कर दिया गया। निलहों के दबाव में काम करने वाली रैयत औपनिवेशिक शोषण की शिकार थी। इंग्लैंड पहुंचने वाली नील की एक-एक पेटी किसानों के खून से रंगी होती थी।
'रिपोर्ट ऑफ द कमेटी ऑन द एग्रेरियन कंडिशंस इन चंपारण' से भी इसी तरह की जानकारी मिलती है। इसमें लिखा गया है कि निलहों के शोषण से किसानों में उबाल था। किसान शेख गुलाब के नेतृत्व में एकजुट होने लगे। 1907 में शोषण से भड़के किसानों ने हरदिया कोठी के प्रबंधक ब्रूमफील्ड को दिन में ही घेर लिया। लाठी से पीटकर उनकी जान ले ली।
शुरू हुआ दमन का चक्र
इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत बौखला गई। आंदोलन दबाने के लिए दमन का चक्र शुरू हो गया। शेख गुलाब को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें यातना दी गई। इसके बाद किसान आंदोलन की बागडोर राजकुमार शुक्ल ने संभाली। उन्होंने मोहनदास करमचंद गांधी को यहां आने का न्योता दिया।
बाद में वे यहां आए और चंपारण सत्याग्रह की शुरुआत हुई। इसके बाद तो चंपारण सत्याग्रह इतिहास का वह पन्ना बन गया, जिसने ऐसे महापुरुष के लिए प्लेटफार्म तैयार किया, जिनके नेतृत्व में देश के लिए आजादी की लड़ाई लड़ी गई।
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