हिंदी दिवस: हिंदी साहित्य की उर्वर धरा को अपनी रचनाधर्मिता से सींचते मुजफ्फरपुर के साहित्यकार
Hindi Day मुजफ्फरपुर की भूमि रचनाकारों की धरती है जहाँ साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं से साहित्य को सींचा है। अयोध्या प्रसाद खत्री रामवृक्ष बेनीपुरी और अनामिका जैसे लेखकों ने समाज को दिशा दी। उनकी कृतियों ने राष्ट्रीय चेतना और मानवीय मूल्यों की नींव रखी जिससे नए लेखक प्रेरणा लेते हैं।

प्रशांत कुमार, मुजफ्फरपुर। मुजफ्फरपुर की धरती सर्जकों और रचनाकारों की रही है। यहां के साहित्यकारों ने अपनी रचनाधर्मिता से साहित्य की उर्वर धरा को सींचा है। आधुनिक काल में अनेक साहित्यकारों ने अपनी सृजनशीलता से इस भूमि की उर्वरता को पोषित और प्रसारित भी किया है।
इस सूची में अयोध्या प्रसाद खत्री, देवकी नंदन खत्री, आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री, रामवृक्ष बेनीपुरी, रामधारी सिंह दिनकर से लेकर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कवयित्री अनामिका समेत अन्य सैकड़ों नाम हैं।
इन साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं और साहित्यक कृतियों से न केवल देश और समाज को दिशा दी बल्कि राष्ट्रीय चेतना के साथ-साथ मानवीय और जीवन मूल्यों की आधारशिला रखी। नए कवि और साहित्यकार भी इनसे प्रेरणा लेते हैं।
बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक और साहित्यकार डा. राकेश रंजन ने बताया कि बाबू अयोध्या प्रसाद खत्री आधुनिक हिंदी के प्रथम योद्धा थे। खड़ी बोली को काव्यभाषा के रूप में स्थापित करने के लिए उन्होंने भारतेंदु युग में बड़ा आंदोलन चलाया और उन कवियों और काव्यप्रेमियों से कड़ा संघर्ष किया, जिनके भीतर यह धारणा बद्धमूल थी कि ब्रजभाषा को छोड़कर खड़ी बोली में कविता लिखना हिंदी कविता की प्रकृति और परंपरा के विरुद्ध होगा।
बाबू देवकी नंदन खत्री को हिंदी का प्रथम तिलिस्मी उपन्यासकार कहा जाता है। उनके चंद्रकांता और चंद्रकांता संतति जैसे ऐतिहासिक उपन्यासों ने हिंदी के प्रचार-प्रसार में बड़ी भूमिका निभाई। इनकी प्रसिद्धि का आलम यह था कि इन्हें पढ़ने के लिए असंख्य अहिंदी-भाषी लोगों ने हिंदी भाषा सीखी।
जितने हिंदी पाठक बाबू देवकी नंदन खत्री ने उत्पन्न किए उतने किसी और ग्रंथकार ने नहीं। डा. राकेश ने कहा कि उत्तर-छायावाद के प्रतिनिधि कवि आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री का संपूर्ण जीवन साहित्य-रचना को समर्पित रहा। गीत, गजल, कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध, संस्मरण, आत्मकथा, समीक्षा जैसी अनेक विधाओं में रचित उनकी अनेकानेक रचनाएं हिंदी साहित्य की धरोहर हैं।
साहित्य के आकाश में चमकते हैं रामधारी सिंह दिनकर
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर आधुनिक हिंदी के महाकवियों में गिने जाते हैं। मुजफ्फरपुर से उनका गहरा संबंध रहा। वे बिहार विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे। यहाम रहते हुए उन्होंने रश्मिरथी समेत अन्य काव्यों को रचा।
संस्कृति के चार अध्याय के लिए उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार और उर्वशी के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ। गद्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी जनता के लिए न केवल लिखते थे बल्कि उसके लिए लड़ते भी थे। उनके शब्दचित्र-संकलन माटी की मूरतें के चरित्र आज के समय में जबकि धर्म को विकृत किया जा रहा है हमें राह और रोशनी दिखाते हैं।
मदन वात्स्यायन ने 'तीसरा सप्तक' में प्रकाशित अपनी कविताओं के माध्यम से हिंदी के असंख्य कविता-प्रेमी पाठकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। समकालीन पीढ़ी में अनामिका की कविताएं लोक और शास्त्र के सुंदर सामंजस्य से संभव होती हैं।
भारतीय समाज की पुरुषवादी संरचना के बीच उनकी कविताएं स्त्री-अस्तित्व के संघर्ष और तकलीफदेह अहसास से हमें रू-ब-रू कराती हैं। टोकरी में दिगंत : थेरीगाथा नामक कविता-संग्रह के लिए उन्हें 2020 का प्रतिष्ठित साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।
जिले से जुड़े हिंदी साहित्य के रत्न
अयोध्या प्रसाद खत्री, देवकी नंदन खत्री, आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री, रामवृक्ष बेनीपुरी, रामधारी सिंह दिनकर, राम इकबाल सिंह राकेश, रामजीवन शर्मा जीवन, राजेंद्र प्रसाद सिंह, मदन वात्स्यायन, श्यामनंदन किशोर, प्रमोद कुमार सिंह, महेंद्र मधुकर, शांति सुमन, नंदकिशोर नंदन, रिपुसूदन श्रीवास्तव, रवींद्र उपाध्याय, चंद्रमोहन प्रधान, रेवती रमण, मदन कश्यप, अनामिका, पंकज सिंह, सविता सिंह, सुमन केशरी, पूनम सिंह, सतीश कुमार राय, रमेश ऋतंभर, प्रमोद कुमार, संजय पंकज, रश्मि रेखा, रामेश्वर द्विवेदी, पंकज राग, वंदना राग, प्रभात रंजन, कविता, गीता श्री, पंखुरी सिन्हा, मेधा, सुधांशु फिरदौस, रश्मि भारद्वाज, अनामिका अनु, चितरंजन कुमार समेत अनेक साहित्यकार।
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