यहां गांधीजी की हत्या के 12 वर्ष बाद किया गया था श्राद्धकर्म, जानिए
बिहार के मुजफ्फरपुर में महात्मा गांधी की हत्या के 12 साल बाद उनका श्राद्धकर्म किया गया। यह आयोजन गांधीजी के उन अनुयायियों ने बड़ा होने के बाद किया जो उनकी हत्या के समय किशोर थे।
मुजफ्फरपुर [शिवशंकर विद्यार्थी]। बिहार के चंपारण व तिरहुत के लोगों का महात्मा गांधी से गहरा जुड़ाव है। चंपारण से ही गांणीजी ने भारत में अपने अहिंसक आंदेालन की शुरूआत की थी। उनके आंदोलनों में मुजफ्फरपुर जिला अंतर्गत पारू प्रखंड के लोगों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। इसका उस समय के किशोरों के मन पर व्यापक प्रभाव पड़ा। इस कारण उन्होंने बड़ा होने पर गांधीजी की हत्या के 12 साल बाद उनका श्राद्ध कर्म किया।
गांधीजी की हत्या के बाद पूरा इलाका शोक में डूब गया था। हर वर्ष 30 जनवरी के दिन होनेवाले आयोजनों ने भी उन किशारों के मन को झकझोर कर रख दिया था। इस पीढ़ी ने जब युवावस्था में कदम रखा तो उन्होंने गांधीजी को श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए श्राद्धकर्म करने का निर्णय लिया।
श्राद्धकर्म आयोजन समिति के एकमात्र जीवित सदस्य सीताराम साह ने बताया कि उनके मन में कई वर्ष से गांधीजी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए श्राद्धकर्म आयोजित करने का विचार था। उन्होंने ये बात अपने कुछ मित्रों के सामने रखी। वे भी इससे सहमत हुए।
इसके बाद 1960 में गांधीजी के अनुयायियों की एक बैठक देवरिया स्थित रामलीला बाजार में बुलाई गई। वहां चंदेश्वर प्रसाद सिंह, चंद्रदेव पटेल, तत्कालीन विधायक नवल किशोर सिंह और सीताराम साह के नेतृत्व में श्राद्धकर्म आयोजित करने व उसी दिन गांधी पुस्तकालय स्थापित करने से संबंधित प्रस्ताव पास किया गया।
उसी बैठक में यह भी तय किया गया कि कोठी की जमीन पर यह आयोजन होगा। वहीं पुस्तकालय की स्थापना भी होगी। इस आयोजन में होने वाले खर्च को चंदा करके वहन किया जाएगा।
शामिल हुए दो स्वतंत्रता सेनानी
श्राद्धकर्म की तिथि निर्धारित होने के बाद हाथ से लिखी पर्ची स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वर्षों जेल में रहे चांदकेवारी निवासी भोला प्रसाद बख्शी और बंदी गांव के जलेशवर प्रसाद श्रीवास्तव को भी भेजी गई थी। ये दोनों श्राद्धकर्म व उसके बाद आयोजित श्रद्धांजलि सभा में शामिल हुए थे।
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अतिक्रमण की कोशिश
बाद के वर्षों में सही देखरेख नहीं होने के कारण पुस्तकालय की स्थिति खराब हो गई। अतिक्रमण की कोशिश भी की गई, लेकिन लोगों की सक्रियता से जमीन बच गई। पूर्व विधायक राजू कुमार सिंह राजू ने गांधी पुस्तकालय की जमीन पर दोमंजिला भवन बनवाया। अभी इसका लाभकारी उपयोग नहीं हो पा रहा है। हालांकि अब चीजों को नए ढंग से व्यवस्थित करने की कोशिश की जा रही है।
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