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    बिहार में पिता ने अपने 5 बच्चों के साथ लगाई फांसी, आर्थिक तंगी और अकेलापन ने तोड़ा

    By PREM SHANKAR MISHRAEdited By: Krishna Bahadur Singh Parihar
    Updated: Mon, 15 Dec 2025 07:43 AM (IST)

    बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक हृदयविदारक घटना सामने आई है। यहां एक पिता अपने पांच बच्चों के साथ फांसी लगा ली, जिसमें से चार की मौत हो गई। वहीं, दो ब ...और पढ़ें

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    मुजफ्फरपुर में एक ही परिवार के चार लोगों ने की आत्महत्या। फाइल फोटो

    संवाद सहयोगी, सकरा। थाना क्षेत्र के रूपनट्टी पंचायत अंतर्गत नवलपुर मिश्रौलिया गांव के वार्ड संख्या चार मे सोमवार की सुबह एक ऐसी दिल दहला देने वाली घटना सामने आई, जिसने पूरे इलाके को स्तब्ध कर दिया।  एक पिता ने अपने  पांच बच्चों के साथ फांसी लगाई।

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    इस दर्दनाक घटना में तीन बेटियों समेत पिता की मौत हो गई, जबकि दो छोटे बेटे किसी तरह मौत के मुंह से बाहर निकल आए। यह हादसा न सिर्फ एक परिवार के उजड़ने की कहानी है, बल्कि समाज के सामने मानसिक तनाव और अकेलेपन की भयावह सच्चाई को भी उजागर करता है। मृतक की पहचान 40 वर्षीय अमरनाथ राम के रूप में हुई है।

    अमरनाथ राम की पत्नी की पहले ही मौत हो चुकी थी, जिसके बाद से वह अपने पांच बच्चों की परवरिश अकेले ही कर रहा था। ग्रामीणों के अनुसार, पत्नी के निधन के बाद से अमरनाथ मानसिक रूप से काफी परेशान रहने लगा था। आर्थिक तंगी, बच्चों की जिम्मेदारी और अकेलेपन ने धीरे-धीरे उसे भीतर से तोड़ दिया था।

    एक सामान्य रात, फिर मौत की सुबह

    घटना से एक रात पहले तक सब कुछ सामान्य बताया जा रहा है। अमरनाथ राम और उसके बच्चों ने रविवार की रात एक साथ बैठकर खाना खाया। खाने में अंडे की भुजिया, आलू-सोयाबीन की सब्जी और चावल था। किसी को अंदाजा नहीं था कि यह परिवार की आखिरी साझा रात होगी।

    पड़ोसियों के मुताबिक, बच्चों में कोई डर या घबराहट नहीं दिख रही थी।सोमवार की अहले सुबह करीब चार बजे  अमरनाथ ने सभी बच्चों को जगा दिया। घर के भीतर पत्नी की पुरानी साड़ी से फंदा तैयार किया गया।

    सबसे पहले उसने अपनी तीन बेटियों—राधा कुमारी (11), राधिका (9) और शिवानी (7)—के गले में फंदा डाला। इसके बाद बेटों शिवम कुमार (6) और चंदन कुमार (4) को भी उसी तरह तैयार किया गया। बच्चों को ट्रंक पर खड़ा कर छत से लटकने के लिए कहा गया।

    मासूमों की छलांग और तीन जिंदगियों का अंत

    बताया जाता है कि पिता के कहने पर तीनों बेटियां और बेटा शिवम ट्रंक से कूद गए। जैसे ही फंदा कसने लगा, शिवम को घबराहट हुई और उसने सूझबूझ दिखाते हुए अपने गले से फंदा ढीला कर लिया। दर्द और घुटन के बावजूद उसने किसी तरह खुद को बचा लिया।

    इसके बाद उसने अपने छोटे भाई चंदन के गले से भी फंदा खोल दिया। चार वर्षीय चंदन को शायद यह भी समझ नहीं था कि उसके साथ क्या हो रहा है।दूसरी ओर, तीनों मासूम बेटियां फंदे के कसने से दम तोड़ चुकी थीं। अमरनाथ राम ने भी खुद फांसी लगाकर जान दे दी। घर के भीतर पसरा सन्नाटा उस भयावह दृश्य की गवाही दे रहा था।

    शोर सुनकर पहुंचे ग्रामीण, सामने आई सच्चाई

    अपनी जान बचाने के बाद शिवम और चंदन किसी तरह घर से बाहर निकले और शोर मचाने लगे। बच्चों की चीख-पुकार सुनकर आसपास के लोग दौड़कर मौके पर पहुंचे। घर के भीतर का दृश्य देखकर हर कोई स्तब्ध रह गया।

    तीन मासूम बच्चियों और पिता के शव छत से लटके हुए थे। गांव में देखते ही देखते कोहराम मच गया।यह दृश्य सबसे पहले मृतक अमरनाथ के चाचा सीताराम ने देखा । बच्चों की आवाज पर सबसे पहले वहीं उठे थे।

    उनके साथ ही घर के अन्य लोग दोडकर आए ।सूचना मिलते ही सकरा थाना की पुलिस मौके पर पहुंची। डीएसपी पूर्वी मनोज कुमार सिंह व फोरेंसिक जांच टीम भी पहूंची।करीब दो घंटे तक गहन जांच की उसके बाद पुलिस ने शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। घटनास्थल की बारीकी से जांच की जा रही है और आसपास के लोगों से पूछताछ की जा रही है।

    मां की मौत के बाद बढ़ता गया तनाव

    ग्रामीणों और रिश्तेदारों के अनुसार, अमरनाथ राम की पत्नी की मौत कुछ समय पहले बीमारी के कारण हो गई थी। इसके बाद से वह टूट सा गया था। पांच छोटे बच्चों की जिम्मेदारी उसके कंधों पर आ गई थी। वह मजदूरी करके परिवार का पालन-पोषण करता था। कई बार उसे उदास और गुमसुम देखा गया था, लेकिन किसी को अंदाजा नहीं था कि वह इतना बड़ा कदम उठा लेगा।पुलिस का कहना है कि प्रथम दृष्टया मामला मानसिक तनाव और अवसाद का प्रतीत होता है। हालांकि, सभी पहलुओं से जांच की जा रही है ताकि घटना के पीछे की पूरी सच्चाई सामने आ सके।

    गांव में मातम, हर आंख नम

    इस हृदय विदारक घटना के बाद पूरे नवलपुर मिश्रौलिया गांव में मातम पसरा हुआ है। घर के बाहर लोगों की भीड़ जुटी है, लेकिन किसी के पास बोलने के लिए शब्द नहीं हैं। तीन मासूम बेटियों की एक साथ चिताएं उठने की कल्पना से ही लोग सिहर उठते हैं। गांव की महिलाएं बच्चों की तस्वीरें देखकर रो-रोकर बेहाल हैं।

    सबसे ज्यादा चर्चा छह वर्षीय शिवम की समझदारी की हो रही है, जिसने न सिर्फ अपनी जान बचाई, बल्कि अपने छोटे भाई की भी जिंदगी बचा ली। लोग कह रहे हैं कि अगर उस मासूम ने हिम्मत और सूझबूझ न दिखाई होती, तो शायद पूरा परिवार खत्म हो गया होता।

    समाज के लिए गंभीर सवाल

    यह घटना समाज के सामने कई गंभीर सवाल खड़े करती है। मानसिक तनाव से जूझ रहे लोगों को समय पर सहारा क्यों नहीं मिल पाता? क्या गरीबी, अकेलापन और जिम्मेदारियों का बोझ किसी इंसान को इतना मजबूर कर सकता है कि वह अपने ही बच्चों की जान लेने का फैसला कर ले?

    विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में समय पर परामर्श, सामाजिक सहयोग और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बेहद जरूरी है। अगर अमरनाथ राम को समय पर मदद मिल जाती, तो शायद चार जिंदगियां बच सकती थीं।

    यह त्रासदी लंबे समय तक लोगों के दिलों में दर्द बनकर रहेगी। तीन मासूम बेटियों की असमय मौत और एक पिता का यह भयावह फैसला हमें सोचने पर मजबूर करता है कि इंसान को जीने के लिए सिर्फ रोटी ही नहीं, बल्कि सहारा और संवेदना भी चाहिए।