बिहार में बनी थी पहली नदी जोड़ो योजना, इंग्लैंड व ढ़ाका तक होता था व्यापार
नदियों को जोड़ने की परिकल्पना 20वीं-21वीं सदी की नहीं, इसकी जड़ें 17वीं सदी तक जाती हैं। तब इसकी पहल बिहार के बेतिया राज ने की थी। पूरी जानकारी के लिए पढ़ें यह खबर।
By Edited By: Published: Sun, 07 Oct 2018 10:59 AM (IST)Updated: Sun, 07 Oct 2018 10:31 PM (IST)
मुजफ्फरपुर [जेएनएन]। समय-समय पर नदियों को जोडऩे की बात सामने आती रही है। लेकिन, कम लोग जानते हैं कि इसकी शुरुआत 17वीं शताब्दी के बिहार में हुई थी। तत्कालीन बेतिया के राजा ने चंद्रावत नदी को गंडक से जोड़वाया था।
इससे यहां की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ा था। उस समय इंग्लैंड से लोहा, मिर्जापुर से पत्थर और ढाका से मलमल जलमार्ग से आते थे। वर्तमान में चंद्रावत नाले में तब्दील हो गई है। कुछ हिस्से सूख चुके हैं तो कुछ पर अतिक्रमणकारी काबिज हैं। इसे जीवंत करने के लिए अब तक कोई ठोस योजना नहीं बनी।
1659 में राजा गज सिंह ने की थी पहल
बेतिया की चंद्रावत नदी हरदिया होते हुए हरहा व राजघाट के रास्ते बूढ़ी गंडक में मिलती थी। इस रूट का उपयोग व्यापार के लिए होता था। वर्ष 1659 में बेतिया के राजा उग्रसेन के निधन के बाद राजा गज सिंह ने बेतिया को जलमार्ग से जोडऩे के लिए अपने इलाके में बहने वाली चंद्रावत नदी को पत्थरीघाट से शिवराजपुर होकर गंडक में जोड़वाने का काम किया।
बना जलमार्ग का बड़ा केंद्र
इससे बेतिया राजशाही भवन के कुछ दूरी पर निर्मित पत्थरीघाट जलमार्ग का बड़ा केंद्र बन गया। यहां जलमार्ग के जरिए विभिन्न जगहों से लाई गई सामग्री उतारी जाती थी। ढाका से मलमल के कपड़े मंगाए जाते थे, वहीं उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर से पत्थरों को लाया जाता था। इंग्लैंड से कोलकाता बंदरगाह के रास्ते जहाज से गंगा नदी, फिर गंडक के रास्ते लोहा लाया जाता था। 'चंपारण की नदियां' नामक पुस्तक के लेखक व राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित डॉ. देवीलाल यादव भी नदी जोडऩे की बात की पुष्टि करते हैं। फायदे को भी रेखांकित करते हैं।
बेतिया के जलमार्ग के जुड़े होने के हैं प्रमाण
पटना विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर डॉ. जयदेव मिश्र बताते हैं कि बेतिया राजा के जमाने में चंद्रावत नदी जलमार्ग के लिए उपयुक्त थी। इसका सीधा संपर्क गंडक से था। मंदिरों के निर्माण में बड़े-बड़े पत्थरों के खंभों का उपयोग इस बात का गवाह है कि इसे जलमार्ग से लाया गया था। उस समय सड़क मार्ग से ज्यादा जलमार्ग ही विकसित था।
अब मृतप्राय हो गई चंद्रावत नदी
कभी अविरल बहती चंद्रावत नदी अब मृतप्राय हो गई है। बेतिया शहर के दक्षिणी भाग से गुजरने वाली नदी का अधिकांश भाग अतिक्रमित हो चुका है। सिल्ट जमा होने के कारण पत्थरीघाट के बाद नदी अपना स्वरूप खो चुकी है। गंडक नदी से अब इसका संबंध नहीं। अब जिलाधिकारी डॉ. निलेश रामचंद्र देवरे ने नदी से अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया है।
इससे यहां की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ा था। उस समय इंग्लैंड से लोहा, मिर्जापुर से पत्थर और ढाका से मलमल जलमार्ग से आते थे। वर्तमान में चंद्रावत नाले में तब्दील हो गई है। कुछ हिस्से सूख चुके हैं तो कुछ पर अतिक्रमणकारी काबिज हैं। इसे जीवंत करने के लिए अब तक कोई ठोस योजना नहीं बनी।
1659 में राजा गज सिंह ने की थी पहल
बेतिया की चंद्रावत नदी हरदिया होते हुए हरहा व राजघाट के रास्ते बूढ़ी गंडक में मिलती थी। इस रूट का उपयोग व्यापार के लिए होता था। वर्ष 1659 में बेतिया के राजा उग्रसेन के निधन के बाद राजा गज सिंह ने बेतिया को जलमार्ग से जोडऩे के लिए अपने इलाके में बहने वाली चंद्रावत नदी को पत्थरीघाट से शिवराजपुर होकर गंडक में जोड़वाने का काम किया।
बना जलमार्ग का बड़ा केंद्र
इससे बेतिया राजशाही भवन के कुछ दूरी पर निर्मित पत्थरीघाट जलमार्ग का बड़ा केंद्र बन गया। यहां जलमार्ग के जरिए विभिन्न जगहों से लाई गई सामग्री उतारी जाती थी। ढाका से मलमल के कपड़े मंगाए जाते थे, वहीं उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर से पत्थरों को लाया जाता था। इंग्लैंड से कोलकाता बंदरगाह के रास्ते जहाज से गंगा नदी, फिर गंडक के रास्ते लोहा लाया जाता था। 'चंपारण की नदियां' नामक पुस्तक के लेखक व राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित डॉ. देवीलाल यादव भी नदी जोडऩे की बात की पुष्टि करते हैं। फायदे को भी रेखांकित करते हैं।
बेतिया के जलमार्ग के जुड़े होने के हैं प्रमाण
पटना विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर डॉ. जयदेव मिश्र बताते हैं कि बेतिया राजा के जमाने में चंद्रावत नदी जलमार्ग के लिए उपयुक्त थी। इसका सीधा संपर्क गंडक से था। मंदिरों के निर्माण में बड़े-बड़े पत्थरों के खंभों का उपयोग इस बात का गवाह है कि इसे जलमार्ग से लाया गया था। उस समय सड़क मार्ग से ज्यादा जलमार्ग ही विकसित था।
अब मृतप्राय हो गई चंद्रावत नदी
कभी अविरल बहती चंद्रावत नदी अब मृतप्राय हो गई है। बेतिया शहर के दक्षिणी भाग से गुजरने वाली नदी का अधिकांश भाग अतिक्रमित हो चुका है। सिल्ट जमा होने के कारण पत्थरीघाट के बाद नदी अपना स्वरूप खो चुकी है। गंडक नदी से अब इसका संबंध नहीं। अब जिलाधिकारी डॉ. निलेश रामचंद्र देवरे ने नदी से अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया है।
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