पूर्वी चंपारण : पीपराकोठी में जलवायु अनुकूल खेती से किसानों को मिल रहा लाभ
East Champaran News कृषि माॅडल विकास परियोजना के तहत जिले के चार गांव के किसान वैज्ञानिक तरीके से प्रशिक्षण प्राप्त कर जलवायु अनुकूल खेती कर लाभ उठा रहे हैं। मिली जानकारी को अपने कृषि प्रक्षेत्र में प्रयोग कर सफलतापूर्वक बाजार आधारित फसलों का अच्छा उत्पादन कर रहे है।
पीपराकोठी (पूचं), जासं। कृषि माॅडल विकास परियोजना के तहत जिले के चार गांव के किसान वैज्ञानिक तरीके से प्रशिक्षण प्राप्त कर जलवायु अनुकूल खेती कर लाभ उठा रहे हैं। मिली जानकारी को अपने कृषि प्रक्षेत्र में प्रयोग कर सफलतापूर्वक बाजार आधारित फसलों का अच्छा उत्पादन कर रहे है। इसके लिए पूर्व केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह का सराहनीय योगदान रहा है। भारत सरकार के राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन द्वारा प्रायोजित आजीविका उन्नयन के लिए जलवायु के अनुकूल कृषि माॅडल का विकास परियोजना में जिले के चार गावों खैरीमल जमुनिया, जसौलीपट्टी, चिंतामनपुर और चंद्राहिया का चयन विगत चार वर्ष पूर्व आइसीएआर के पूर्वी अनुसंधान परिसर पटना द्वारा किया गया था।
परियोजना के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. मो. मोनोबुरूल्लाह बताते हैं कि शुरुआत में इन ग्राम पंचायतों के किसानों में परियोजना के प्रति जारूकता नहीं थी। परन्तु धीरे-धीरे परियोजना के अंतर्गत किसानों को समेकित कृषि प्रबंधन, वैज्ञानिक तरीके से खाद्यान्न उत्पादन, सब्जी उत्पादन, मुर्गी पालन, बकरी पालन तथा मत्स्य पालन इत्यादि का प्रशिक्षण दिया गया। प्रक्षेत्र भ्रमण हेतु पटना एवं दिल्ली ले जाया गया। इससे किसानों के मन में खेती के प्रति उत्साह बढ़ा। किसान प्रशिक्षण प्राप्त कर मिली जानकारी को अपने कृषि प्रक्षेत्र में प्रयोग कर सफलता पूर्वक बाजार आधारित फसलों का अच्छा उत्पादन ले रहे है।
परियोजना के प्रभारी वैज्ञानिक बताते है कि किसानों को समय समय पर प्रशिक्षण दिया जाता है। परियोजना से जुड़े एसआरएफ एवं प्रक्षेत्र सहायकों द्वारा समय समय पर किसानों को समयानुसार खेत की तैयारी, बुआई, सिंचाई, कीट नियंत्रण, रोग नियंत्रण और खर-पतवारवार प्रबंधन हेतु उचित मार्गदर्शन दिया जाता है। इससे किसानों को अपनी फसल में पहले की अपेक्षा अधिक उत्पादन मिल रहा है। जसौली पट्टी के किसान रविन्द्र सिंह बताते है कि वे परियोजना से पहले परंपरागत तरीके से खेती कर सब्जी उत्पादन करते थे। जिससे सही उत्पादन न मिल पाने से मुनाफा कम होता था।
परन्तु परियोजना से जुड़ने के बाद उचित प्रशिक्षण और परियोजना के माध्यम से उच्च गुणवत्ता वाला बीज दिया जाता है। उसको अपने खेती में समावेशित कर अच्छा लाभ ले रहा हूं। साथ ही पशुपालन एवं मुर्गी पालन कर अधिक लाभ ले रहे हैं। चंद्रहिया निवासी शीतल साह कहते है कि परियोजना के पहले मैं खेती को करने के बाद भी उचित उत्पादन नहीं मिलता था। आज परियोजना से जुड़ने के बाद काफी लाभ हो रहा है। यह परियोजना प्रमुखतः आइसीएआर के पूर्वी अनुसंधान परिसर पटना द्वारा चलाई जा रही है। स्थानीय महात्मा गांधी समेकित कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों एवं परियोजना के सभी पदाधिकारियों के सतत प्रयास से जिले के चार पंचायतों के किसानों को लाभ मिल रहा ह।