पूर्वी चंपारण : शून्य जुताई विधि से किसान नंदेश्वर ने की प्रति हेक्टेयर 25-30 हजार की बचत
East Champaran News किसान शून्य जुताई विधि से खेती करें तो लागत भी कम लगेगी व उन्हें बेहतर उपज भी प्राप्त होगा। कृषि की इस नई तकनीक को अपनाने वाले किसान कृषि के क्षेत्र में एक नया इतिहास कायम किया है।

मेहसी (पूर्वी चंपारण), जासं। किसान शून्य जुताई विधि से खेती करें तो लागत भी कम लगेगी व उन्हें बेहतर उपज भी प्राप्त होगा। कृषि की इस नई तकनीक को अपनाने वाले किसान कृषि के क्षेत्र में एक नया इतिहास कायम किया है। वही अन्य किसानों के लिए प्रेरणा के श्रोत भी बन रहे हैं। इस कड़ी में एक नाम आता है मेहसी के भुड़कुड़वा गांव निवासी किसान श्री नंदेश्वर सिंह का। उन्होंने आत्मा के निर्देशन में किसान पाठशाला व कृषि विभाग की संयुक्त देखरेख में चार एकड़ भूमि में इस विधि से गेहूं का प्रत्यक्षण किया है। सामान्य बुआई की अपेक्षा शून्य जुताई का असर गेंहू के फसल पर स्पष्ट देखने को मिल रहा है। गेंहू के पौधों में लगनेवाली बाली पुरातन तकनीक से की गई खेती के वनिस्पत काफी अच्छे हैं।
हालांकि, कृषि विभाग का मानें तो अगर मौसम का प्रतिकूल प्रभाव फसल पर नही पड़ा तो इसका बेहतर परिणाम क्रॉप कटिंग के बाद किए जाने वाले तुलनात्मक अध्ययन से सामने आ पाएगा। किसान नंदेश्वर सिंह ने बताया कि उन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद आत्मा के परियोजना निदेशक रणविजय सिंह से प्रोत्साहित होकर कृषि समन्वयक संजय कुमार व तकनीकी प्रबंधक पवन कुमार के संयुक्त सुझाव पर परम्परागत खेती से हट कर इस तकनीक को अपनाया। परम्परागत खेती के वनिस्पत जुताई व मजदूरी में लागत भी काफी कम लगी। प्रति हेक्टेयर 25 से 30 हजार रुपए की बचत हुई। आरम्भ में तो संशय बना रहा। लेकिन, फसल को देखकर यह विश्वास होने लगा है कि प्रत्यक्षण हर हाल में सफल होगा।
क्या शून्य जुताई विधि
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुसहरी के प्रधान अन्वेषक डॉ. संजय कुमार सिंह ने बताया कि शून्य जुताई विधि गेहूं की बुवाई की एक बहुपयोगी और लाभकारी तकनीक है। धान की फसल कटाई के उपरांत उसी खेत में बिना जुताई किये शून्य जुताई कम फर्ट्री ड्रिल मशीन द्वारा गेहूं की बुवाई करने को शून्य जुताई तकनीक कहते है।
विधि से लाभ
शून्य जुताई मशीन से बुवाई करना पर्यावरण के दृष्टिकोण से बहुत ही लाभदायक है। इसके द्वारा बुवाई करने पर खेत की तैयारी करने की लागत में शत प्रतिशत की बचत है। अर्थात बिना जुताई किये सीधे बुवाई का कार्य सम्पन्न हो जाता है। इसके कारण 18 से 45 लीटर डीजल की बजत प्रति हेक्टेयर होती है। इस विधि से वातावरण में कार्बनडाईआक्साइड एवं अन्य हानिकारक गैसे जैसे सल्फर डाईआक्साइड आदि कुप्रभाव से बचा जा सकता है। जबकि परम्परा ढंग से बुवाई करने पर 3-5 बार खेत की जुताई करनी पड़ती। इससे वातावरण भी दूषित होता है और श्रम भी अधिक लगता है।
सिंचाई, जल व समय की बचत
शून्य जुताई विधि द्वारा बोई गई फसल में 30-40 फीसद सिंचाई की बचत होती है। परम्परागत विधि से बोई गई फसल में पहली सिंचाई के बाद पौधो में पीलापन आना एक समस्या है। चूंकि अच्छी तरह तैयार किये गये खेत की भुरभुरी मिट्टी की जल धारण क्षमता अधिक होती है। इसलिए सिंचाई जल के अतिरिक्त मात्रा का उपयोग स्वतः ही हो जाता है। इसमें मृदा में हवा का आवागमन बाधित हो जाता है। परिणामस्वरूप फसल पीली पड़ जाती है। ठीक उसी तरह जीरो टिलेज के अंतर्गत बिना जुताई की नमी भूमि में पानी अवांछित रूप से नही रुकता है, जिसके कारण गेहूं की फसल में पीलापन आने की समस्या नही होती है।
बीज की भी बचत
शून्य जुताई से बुवाई करने से 30-40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की बचत होती है। इससे करीब 600 से 800 रुपये की बचत हो जाती है। इस तकनीक का प्रयोग कर गेहूं की पैदावार में तकरीबन 6 से 8 फीसद की बढ़ोत्तरी की जा सकती है। इस तकनीक से एक घंटे में 0.3 से 0.4 हेक्टेयर खेत की बुवाई की जा सकती है। जबकि परम्परागत ढंग से एक हेक्टेयर की बोवाई करने में 10 से 12 घंटे लगते हैं। इस प्रकार इस तकनीक से तीगुना समय की बचत होती है। इस तकनीक को अपनाने से मिट्टी में फसल के अवशेषो के योगदान के कार्बनिक पदार्थों के साथ-साथ पौधो के लिए आवशयक पोषक तत्वो की वृद्धी होती है तथा भूमि की उर्वरा शक्ती बनी रहती है। भूमि के रासायनिक तथा भौतिक गुणो पर भी इस तकनीक का लाभदायक प्रभाव पड़ता है।
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