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Dussehra 2022: यह डांस तो बेहतरीन है, मां दुर्गा की आराधना के साथ-साथ बुरी नजर से भी बचाए

Dussehra 2022 बिहार के मिथिलांचल में काफी प्रसिद्ध है यह नृत्य नवरात्र के दिनों में इसे विशेष तौर पर प्रस्तुत किया जाता है। इसमें महिलाएं छिद्र वाले घड़े में जलते दीप को सिर पर रखकर नृत्य को प्रस्तुत करती हैं। इस दौरान उनका संतुलन हैरान करने वाला होता है।

By Ajit KumarEdited By: Published: Wed, 21 Sep 2022 11:56 AM (IST)Updated: Wed, 21 Sep 2022 11:56 AM (IST)
Dussehra 2022: यह डांस तो बेहतरीन है, मां दुर्गा की आराधना के साथ-साथ बुरी नजर से भी बचाए
Dussehra 2022: इसके पीछे का अभ्यास दर्शकों को दंग कर देता है। फाइल फोटो

मधुबनी, [कपिलेश्वर साह]। Dussehra 2022: नृत्य या आधुनिक रूप से कहें तो डांस को सामान्य रूप से मनाेरंजन का एक साधन माना जाता है। जब यह कहा जाए कि इसके माध्यम से मां दुर्गा की भक्ति भी हो सकती है तो कुछ लोगों को आश्चर्य हो सकता है। यदि हम मान्यताओं को भी जोड़ लें तो भक्ति के साथ ही साथ बुरी नजरों से बचने का फायदा भी इसमें है। यह नृत्य बिहार के मिथिलांचल में काफी लोकप्रिय है। नवरात्र के समय इसकी विशेष रूप से प्रस्तुति होती है। दुर्गा पूजा के दौरान पूरे मिथिला में लोकनृत्य झिझिया का प्रचलन है।

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एक-दूसरे से सामंजस्य

'तोहरे भरोसे ब्रह्म बाबा झिझरी बनैलिये हो...' बोल के साथ पेश किए जाने वाले लोकनृत्य झिझिया की प्रस्तुति में पांच से नौ महिलाएं होती हैं। इनके के सिर पर चहुंओर छिद्र वाले मिट्टी का घड़ा होता है। जिसमें जलता दीप होता है। बगैर हाथ का सहारा लिए महिलाएं एक-दूसरे से सामंजस्य स्थापित कर नृत्य का प्रदर्शन करती हैं। जलते दीप को घड़ा में रखने के बाद उसको सिर पर रखकर नृत्य की प्रस्तुति काफी कठिन है। इसके लिए विशेष सामंजस्य की आवश्यकता होती है। इसके पीछे के अभ्यास के बारे में तो कहना ही क्या है। जब कोई दर्शक इसे देखता है तो वह दंग हो जाता है। एक तरह से साधना ही है।

तेजी से बढ़ रहा क्रेज

रंग-बिरंगी पोशाक में झिझिया की प्रस्तुति के वाद्य यंत्रों में हारमोनियम, ढोलक, खजुरी, बांसुरी व शहनाई का वादन पुरुष कलाकारों द्वारा किया जाता है। जिले की ज्योति प्रिया, कुमारी प्रीति प्रिया, कमलाक्षी, मीनाक्षी, आरती कुमारी, मंजू कुमारी चौधरी, पूजा कुमारी, पायल दत्ता, सोनी कुमारी, गुड़िया कुमारी सहित एक सौ से अधिक कलाकार एक दशक से देश के विभिन्न हिस्सों में झिझिया की प्रस्तुति करती रहीं हैं।

देशभर में देती झिझिया नृत्य की प्रस्तुति

बुरी नजर से छुटकारा के लिए इष्टदेव ब्रह्म बाबा और माता भगवती से प्रार्थना के प्रतीक के रूप में परंपरागत लोकनृत्य झिझिया सामाजिक कुरीतियों पर भी चोट करता है। मधुबनी सहित मिथिला के घरों से शुरू होकर गांव के ब्रह्म बाबा स्थल और फिर सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं द्वारा झिझिया की आकर्षक प्रस्तुति ने देश-दुनिया में अपनी अलग पहचान बना ली है। विगत एक दशक से देशभर के सरकारी, गैर सरकारी कार्यक्रम, सांस्कृतिक समारोह में मंचों पर इसकी धूम है। दर्शकों में झिझिया नृत्य का क्रेज बढा है। दुर्गा पूजा के अलावा सरस्वती पूजा, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, श्रीरामनवमी सहित अन्य आयोजनों में झिझिया की प्रस्तुति का दर्शकों को इंतजार रहता है। वहीं प्रशासनिक स्तर पर राज्य व जिला स्तरीय युवा महोत्सव व मिथिला महोत्सव सहित अन्य समारोहों में झिझिया को तरजीह दिया जाने लगा है।

लोकपरंपरा की प्रस्तुति और प्रचार-प्रसार

लोक परंपरागत और लोक नृत्य को बढावा देने के लिए जिले में कई संस्थाएं कार्य कर रही हैं। संस्था द्वारा झिझिया सहित परंपरागत लोक नृत्य को बढ़ावा के लिए बालिकाओं को तीन से छह माह तक का प्रशिक्षण दिया जाता है। शहर चकदह की लोकरंग संस्था पारंपरिक लोक नृत्य, गीत नाट्य को आगे बढ़ाने के लिए वर्ष 1998 से काम कर रही है। भारत सरकार के गीत और नाटक प्रभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, रांची से वर्ष 2004 में पंजीकृत लोकरंग के तहत फोक ट्रेडिशनल थिएटर एंड रिसोर्स इकाई के द्वारा लोक परंपरा की प्रस्तुति कर इसका प्रचार-प्रसार कर रही है। लोकरंग जिला सहित देशभर में 100 से अधिक मंचों पर लोक नृत्य झिझिया की प्रस्तुति कर चुकी है। जिसमें दिल्ली के इंडोर स्टेडियम, कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर के पटेल स्टेडियम, पश्चिम चंपारण, रवि भारती आडिटोरियम पटना, जीकेपी कॉलेज समस्तीपुर, मधुबनी के बिस्फी, ललित कर्पूरी स्टेडियम झंझारपुर, श्रावणी मेला बांका सहित अन्य शहर शामिल हैं।

लोकनृत्य-संगीत को सरकार दे रही बढ़ावा

झिझिया सहित अन्य लोक गीत-संगीत व नृत्य को बढ़ावा भारत सरकार द्वारा दिया जाता है। इसकी एक प्रस्तुति के लिए भारत सरकार द्वारा 11 हजार दो सौ रुपये का भुगतान किया जाता है। इसके अलावा कलाकारों को कार्यक्रम स्थल तक आने-जाने व रहने की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। कोरोना के बाद आजादी के अमृत महोत्सव पर एसएसबी कैंप जयनगर व हरना में इसकी प्रस्तुति की गई। लोकरंग के अध्यक्ष जटाधर पासवान ने बताया कि सरकार द्वारा प्रतिवर्ष उनके संस्था को देशभर में 50 से अधिक जगहों पर लोक गीत-संगीत, नृत्य की प्रस्तुति कराई जाती है। वहीं शहर के बालीवुड डांस स्कूल छात्राओं को फोक डांस का प्रशिक्षण देकर उन्हें करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। वहीं शहर के जागरण संगीत कला महाविद्यालय के प्राचार्य मंजरी मिश्रा ने बताया उनके यहां झिझिया सहित अन्य लोक नृत्य का प्रशिक्षण दिया जाता है।

लोकगीत व नृत्य से अपनी जीवन की शुरुआत

लोकगीत व नृत्य से अपनी जीवन की शुरुआत करने वाली शहर की कलाकार रंजू कुमारी दिल्ली में झिझिया सहित अन्य लोक नृत्य का प्रशिक्षण दे रही हैं। जिले के अन्य कलाकार लोक नृत्य को करियर बनाकर आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। रंजू ने बताया कि परंपरागत लोक नृत्य को करियर के रूप में अपनाने के लिए सरकारी स्तर पर विशेष पहल की जरूरत है। इससे लोक नृत्य के प्रति छात्राओं का रुझान और बढ़ेगा।

भोजपुरी व मैथिली फिल्मों में भी जगह

लोककला कुंज के तहत संचालित बालीवुड डांस स्कूल के निदेशक विक्रांत ने बताया कि झिझिया का प्रचार-प्रसार बढ़ा है। भोजपुरी फिल्म कोठा, मैथिली फिल्म बबितिया में झिझिया को जगह दी गई है। द स्टेशन आफ कलर टेली फिल्म में झिझिया को बेहतर ढंग से दर्शाया गया है। वर्ष 2004 से झिझिया को बढावा देने के लिए मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी, सुपौल, सहरसा सहित अन्य जिलों के पांच हजार से अधिक छात्राओं को झिझिया का निशुल्क प्रशिक्षण दिया है। झिझिया को लेकर आगे बढ़ने वाली छात्राएं गीत-नृत्य के क्षेत्र में करियर बनाने की ओर अग्रसर है। 


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